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जानिए उदयपुर की ऐसी जनजाति जिसने हल्दी घाटी युद्ध में दिया था अपना महत्वपूर्ण योगदान

भील यह राजस्थान की सबसे प्राचीन जनजाती हैं। भील शब्द की उत्पति “बिलू” शब्द से हुई है, जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘कमान’। यह जनजाति तीर कमान चलाने में काफी निपुण होती हैं। मुख्यतः यह जनजाति उदयपुर के साथ-साथ बांसवाड़ा, डूंगरपुर, चित्तौड़गढ़ और प्रतापगढ़ में रहती है।। ये मेवाड़ी, भील तथा वागड़ी भाषा का प्रयोग करते हैं।

भीलों की जीवनशैली बहुत ही अलग ढंग की होती हैं, यह उबड़-खाबड़ पहाड़ी क्षेत्र तथा वन में रहते हैं। इनके मकानों को टापरा, कू, फलां और पाल भी कहते हैं।

पौराणिक कथाओं के अनुसार भील जनजाति की उत्पत्ति भगवान शिव के पुत्र निषाद द्वारा मानी जाती है। कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव जब ध्यान मुद्रा में बैठे हुए थे, तब निषाद ने अपने पिता के प्रिय बैल नंदी को मार दिया था तब दंडस्वरूप भगवान शिव ने उन्हें पर्वतीय क्षेत्र पर निर्वासित कर दिया था, वहां से उनके वंशज भील कहलाये। इसके साथ यह भी कहा जाता है की रामायण के रचयिता वाल्मीकि भी भील पुत्र थे। महाभारत में वर्णित गुरु द्रोणाचार्य के भक्त एकलव्य भी भील जनजाति के थे। रामायण में शबरी जिसने राम को अपने झूठे बेर खिलाए थे वह शबरी भी भील जाति से ही थी। इस जाति की कर्त्तव्यनिष्ठा, प्रेम और निश्छल व्यवहार के उदाहरण प्रसिद्ध है। 

हल्दी घाटी युद्ध के समय महाराणा प्रताप की सेना में राणा पुंजा और उनकी भील सेना का महत्वपूर्ण योगदान था। इसी कारण से मेवाड़ राजचिन्हों में एक तरफ महाराणा प्रताप तो दूसरी तरफ राणा पुंजा भील का नाम भी आता है। महाराणा प्रताप को भील लोगो द्वारा पुत्र भी कहा जाता है इसके पीछे भी एक कहानी है, दरअसल मुस्लिम आक्रांताओं द्वारा बार-बार आक्रमण किए जाने पर महाराणा प्रताप के पिता महाराणा उदय सिंह समझ चुके थे कि, चित्तौड़गढ़ दुर्ग अब सुरक्षित नहीं रहा इसलिए उन्होंने सुरक्षा के लिए पहाड़ियों के बीच एक नया शहर बसाया। इसमें पहले से ही वहां रह रहे भील बस्तियों के निवासियों ने महाराणा उदय सिंह का यथोचित सहयोग किया। इसी दौरान भीलों के बच्चे व महाराणा प्रताप एक साथ रहते थे। महाराणा प्रताप ने भीलो को इतना प्रेम, स्नेह व अपनत्व दिया था कि भील उन्हें “कीका” कहने लगे जिसका सामन्य अर्थ पुत्र होता है। भीलों के साथ महाराणा प्रताप के संबंध अंत तक बने रहे। इसी वजह से सीमित संसाधनों के होते हुए भी भीलों के सहयोग से महाराणा प्रताप ने मुस्लिमों के विरुद्ध अनेक युद्धों में विजय प्राप्त की। भीलों के साथ महाराणा प्रताप के संबंध मेवाड़ राज्य के लिए बहुत लाभकारी सिद्ध हुए। महाराणा प्रताप भीलों के साथ राजा- प्रजा का नहीं बल्कि बंधुत्व का संबंध रखते थे। भीलों द्वारा किये गये सहयोग एवं वीरतापूर्ण कार्यो के सम्मान स्वरूप उन्होंने भीलों को मेवाड़ के राज चिह्न में जगह दी।

आइये जानते है और भी बहुत कुछ भील जनजाति के बारे में –

वस्त्र – भील पुरुष सामान्य तंग धोती पहनते है जिसे भील भाषा में ठेपाडु कहते है और सर पर साफा पहनते है जिसे पोत्या और फाडिंयु कहते है। भील स्त्रियों की वेशभूषा आम तौर पर वे लुगडी, घाघरा और चौली पहनती है। 

नृत्य– गैर नृत्य, घूमर,गवरी नृत्य इस जनजाति के प्रसिद्ध नृत्य हैं। 

मेले– गौतमेश्वर मेला, बेणेश्वर का मेला, ऋषभदेव का मेला 

 प्रमुख प्रथाए-

  • दापा प्रथा – इस प्रथा के अनुसार विवाह के समय लड़के के पिता द्वारा लड़की के पिता को कन्या का  मूल्य चुकाना होता है।  
  • गोदना प्रथाइस प्रथा के अनुसार भील पुरुष और महिलाएं अपने चेहरे व शरीर पर गोदना गुदवाते हैं जिसमे महिलाएं अपने आँखों के ऊपर सर पर दो आड़ी लकीरे गुदवाती हैं जो उनके भील होने का प्रतिक माना जाता हैं। 
  • गोल गोधेड़ा प्रथाभील जनजाति में एक प्रथा है जिसे गोल गोधेड़ा प्रथा कहते है, इस प्रथा के अनुसार यदि कोई भील युवक अपनी वीरता और शौर्य को प्रमाणित कर देता है तो वह युवक अपनी पसंद की लड़की से शादी कर सकता है। 

भील जनजाति में लोकगीतों, लोकनृत्य, लोकनाट्य का काफी प्रचलन है – इसमें से एक गवरी नृत्य जो उदयपुर संभाग में सावन-भादो के समय किया जाने वाला एक धार्मिक नृत्य है, जो केवल पुरुषों द्वारा किया जाता है। इस नृत्य को राइ नृत्य भी कहते है क्योंकि इसमें नृत्य के साथ मादल व थाली भी साथ में बजाई जाती है। 

भील लोग देवी-देवताओं का बहुत मानते हैं और उनकी पूजा करते हैं। ये लोग साहसी, वचन के पक्के, निडर और स्वामिभक्त होते हैं। आर्थिक दृष्टि से देखा जाए तो भील जनजाति अत्यंत निर्धन होते हैआर्थिक व सामजिक रूप में यह जनजाति समाज का बहुत ही पिछड़ा वर्ग है पर फिर भी इनका इतिहास अति रोचक साहसी एवं प्राकृतिक वातावरण से पूर्ण रहा है। इतिहास के पन्नो पर अगर देखो तो भील समाज की सम्पन्नता शूरवीरता एवं आर्थिक सम्पनता के बखान मिलते है।

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उदयपुर में 5800 जरुरतमंदो को मिलेगा रोजगार

उदयपुर में इंदिरा गाँधी शहरी रोजगार गारंटी योजना के तहत 5800 जरूरतमंद लोगों को रोजगार मिलेगा। इस गारंटी के अंतर्गत 100 दिन का कार्य दिया जाएगा जिसमे 579150 मानव दिवस स्वीकृत किए गए है। प्रति व्यक्ति को 259 रूपए का प्रतिदिन भुगतान किया जाएगा। योजना में आवेदन करने के लिए जॉब कार्ड, ई- मित्र पर या स्वयं भी पोर्टल पर अपलोड कर सकते है एवं नगर निगम जा कर भी आवेदन कर सकते है। इसके लिए वार्ड पार्षदों से अपील भी की गई है की जो भी बेरोजगार लोग है उन्हें इस योजना से जुड़ने के लिए लिए प्रेरित करे।

स्वास्थ्य समिति अध्यक्ष पारस सिंघवी ने बताया की इस योजना के अंतर्गत 259 मजदूरी तय की गई है। शहरी क्षेत्र में निवास कर रहे है प्रत्येक परिवार के 18 से 60 वर्ष के सदस्य इस योजना के अंतर्गत आ सकेंगे। रोजगार के अंतर्गत तालाब बावड़ी से मिट्टी निकालने का कार्य, पानी वातावरण संरक्षण से जुडी प्रक्रियाए, पौधरोपण नर्सरी का काम एवं अन्य शहरी साफ़ सफाई के कार्य करवाए जाएंगे। महापौर गोविन्द सिंह टांक के निर्देश पर नगर निगम आयुक्त हिम्मत सिंह बारहठ ने जिला परियोजना अधिकारी शैल सिंह को पूरी तैयारी को लेकर निर्देशित किया है।

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उदयपुर में शुरू A.C. बसे पहुचाएंगी एयरपोर्ट

उदयपुर शहर में सिटी ट्रांसपोर्ट सर्विसेज लिमिटेड (यूसीटीएसएल) की ओर से जनता को सस्ती व सुलभ ट्रांसपोर्ट की व्यवस्था उपलब्ध करवाने के लिए शहर में मिडी लो फ्लोर की 4 नई बसें एयरपोर्ट के लिए चलेंगी। इसमें दो AC और दो नॉन AC बसें होंगी। AC बसों में सिर्फ एयरपोर्ट जाने वाले यात्री ही बैठ सकेंगे। इनके रूट में कही से भी बैठने पर 100 रूपए का किराया ही लिया जाएगा। विदेशी यात्रियों के लिए इसका शुल्क 500 रुपए होगा। इसके अलावा नॉन AC बसों का किराया प्रति किलोमीटर के हिसाब से ही होगा।

इन बसों का परिवहन एवं सड़क सुरक्षा विभाग जयपुर से रूट स्वीकृत हो चुका है और अब परमिट के लिए जिला परिवहन कार्यालय में इसके कागज पहुँच चुके है। परमिट मिलते ही यह बसे चेतक से डबोक एयरपोर्ट मार्ग तक जाएगी। यूसीटीएसएल के चेयरमैन व महापौर गोविन्द सिंह टांक व सीईओ हिम्मतसिंह बारहठ एयरपोर्ट पर आने जाने वाली फ्लाइट के अनुसार ही इनका टाइम तय कर रहे है ताकि यात्रियों को फ्लाइट से उतरते ही बस मिल सके और अनावश्यक परेशानियों का सामना न करना पड़े। वही चेतक से एयरपोर्ट जाने वाले यात्री भी एक से डेढ़ घंटे पहले पहुँच सके। सहायक अभियंता यांत्रिकी व प्रभारी अधिकारी लखन लाल बैरवा ने बताया कि चारों नई बसें सिटी बस डीपो में ही खड़ी है। रूट स्वीकृत होने के बाद अभी इनकी परमिट की कार्यवाही चल रही है।

एयरपोर्ट जाने के लिए यहाँ-यहाँ रुकेगी बसें
पहाड़ी बस स्टैंड, कोर्ट चौराहा, चेतक सर्किल, ठोकर चौराहा, देहली गेट, देबरी चौराहा, प्रतापनगर चौराहा, जिंक चौराहा, सूरजपोल चौराहा, फतह स्कूल, कुम्हारो का भट्टा ,बी.एन.कॉलेज , सेवाश्रम चौराहा, राणा प्रताप नगर रेलवे स्टेशन, मांझी की सराय, ठोकर स्कूल,गिलास फैक्ट्री, M.B. हॉस्पिटल, सुंदरवास, आईटीआई कॉलेज, राजस्थान विद्यापीठ, गीतांजली कॉलेज,डबोक चौराहा, तुलसीदास जी की सराय, तुलसीनगर/बेड़वास, राजस्थान विद्यापीठ, धूणिमाता,पावर हाउस, गुडली चौराहा, पुराना आर.टी.ओ. रोड।

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अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस – 2022

अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस प्रत्येक वर्ष 21 जून को मनाया जाता है। योग का अभ्यास एक बेहतर इंसान बनने के साथ एक तेज दिमाग, स्वस्थ दिल और एक सुकून भरे शरीर को पाने के तरीकों में से एक है। योग अपने अद्भुत स्वास्थ्य लाभों के लिए जाना जाता है। हमारे ऋषि-मुनि भी कह गए हैं, ‘पहला सुख निरोगी काया’। योग, मन, शरीर और आत्मा की एकता को सक्षम बनाता है। योग के विभिन्न रूपों से हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को अलग-अलग तरीकों से लाभ मिलता है। अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस इस अनूठी कला का आनंद लेने के लिए मनाया जाता है।

हमारे दैनिक जीवन में योग को जन्म देने से हमारे जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आ सकता है। यह हमारे तनावपूर्ण जीवन के लिए एक बड़ी राहत प्रदान करता है। योग अभ्यास करने के मुख्य लाभों में से यह एक है कि यह तनाव कम करने में मदद करता है। आज कल की जो युवा पीढ़ी है जो हर छोटी-छोटी बातो का तनाव लेती रहती है जो किसी प्रकार की कठोर स्थिति से जीवन में आए तनाव से मुक्ति पाने के लिए वे आत्महत्या जैसे कदम उठाने को बाध्य हो जाते हैं।

दैनिक जीवन में योग को जन्म देने से हमारे जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आ सकता है। यह हमारे तनावपूर्ण जीवन के लिए एक बड़ी राहत प्रदान करता है योग एक व्यक्ति को ध्यान और साँस लेने के व्यायाम से तनाव कम करने में मदद करता है और एक व्यक्ति के मानसिक कल्याण में सुधार करता है। योग नियमित अभ्यास मानसिक स्पष्टता और शांति बनाता है जिससे मन को आराम मिलता है।

international yoga day
International day of yoga illustration

आंतरिक शांति
आंतरिक शांति जो मनुष्य को ऊपरी मन से खुश होने से ज्यादा उसे आतंरिक खुश रहने से ख़ुशी मिलती है पर वो शांति आज कल की व्यस्त जिंदगी और शहर के चकाचोंध में कही खो सी गई है। इंसान अंदर से खुश रहेगा तो वह स्वस्थ रहेगा। सिर्फ 10-20 मिनट का योग हर दिन आपके स्वास्थ्य को अच्छा रहने में मदद कर सकता है। बेहतर स्वास्थ्य का मतलब बेहतर जीवन है।

बीमारियों से बचाव
जिस प्रकार आजकल के लोगो का खान पान उस तरीके से तो इंसान कितनी सारी बीमारियों को साथ ले रहा है। योग गंभीर से गंभीर बीमारियों से हमारा बचाव करने में मददगार होता है। इतना ही नहीं अगर कोई व्यक्ति गंभीर बीमारी से पीड़ित है, तो योग उससे भी लड़ने की शक्ति देता है।

शरीर को लचीला बनाए
योग पूरे शरीर में ब्लड सर्कुलेशन को बेहतर बनाता है, जिससे सभी अंग सुचारू रूप से काम करते हैं।

हमारे ऋषियों और आयुर्वेद द्वारा दी गयी क्रियाओं और चिकित्सों का लाभ उठाएं इसी से तनाव कम होगा और देश की प्रगति भी होगी और युवाओं की मौतें भी नहीं होंगी और यह बीमारियाँ पूरी तरह ख़त्म हो जायेंगी और देश के युवा निरोग रहेंगे और तनाव भी ख़त्म हो जाएगा। 21 जून को मनाया जाने वाला अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस प्राचीन भारतीय कला के लिए एक अनुष्ठान है।

इस रोज की भाग दौड़ मर्रे वाली जिंदगी में अगर खुश रहना है तो दिन में सिर्फ थोड़ा समय निकल कर 15 से 20 मिनट योगा करना ही चाहिए जो हमारे शरीर के साथ हमारे मन को भी स्वस्थ रखेगा। जीवन के तनाव को कम करने में मदद करेगा, चेहरे पर निखार लाएगा, फ्लेक्सिबल बॉडी बनाएगा जो हमे जल्दी बूढ़ा नहीं बनाएगा। मन को दिमाग को शांत रखेगा कई सारी गंभीर बिमारियों को आने से रोकेगा, रोग प्रतिरोध क्षमता को बढ़ाएगा।

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आरएनटी अस्पताल में मजबूत हो रही हेल्थ सर्विस

उदयपुर आरएनटी मेडिकल कॉलेज के 3 अस्पतालों (एमबी, जनाना और सुपर स्पेशिएलिटी ) में 300 से ज्यादा सीसीटीवी कैमरे लगाए गए है। जनरल वार्ड से लेकर ऑक्सीजन प्लांट,आईसीयू वार्ड, ओपीडी, आईपीडी, कोविड वार्डो तक मरीजों और स्टाफ की हर छोटी से बड़ी गतिविधियां स्क्रीन पर है। सर्वर रूम में प्रिंसिपल कार्यालय से नोडल अधिकारी 3 पारियों में 24 घंटे निगरानी कर रहे जबकि एनालिस्ट कम प्रोग्रामर एक शिफ्ट में। इन सीसीटीवी लगाने का मकसद मरीजों और तीमारदारों के लिए व्यवस्था के साथ स्टाफ के कामकाज पर नजर रखना है ताकि कोई गड़बड़ी या असुविधाजनक गतिविधि और चोरियां के साथ स्टाफ की हरकते होने पर उन पर कार्यवाही की जा सकती है। इसके साथ ही और सुरक्षा बढ़ाने के लिए हॉल, गैलरी, पोर्च, प्रवेश द्वार और पार्किंग तक 100 से भी ज्यादा और कैमरे लगाए जाएंगे। कोविड काल में 180 कैमरे लगाए गए थे व्यवस्था में सुधार होने पर 120 कैमेरे और बढ़ाए है।

आरएनटी मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ लाखन पोसवाल का कहना है की कोरोना के दूसरे चरणों में मरीजों की संख्या ज्यादा होने से आपाधापी जैसे हालात हो रहे थे। वजह यह थी की आईसीयू में तीमारदारों के जाने की मनाही थी और कई सारी शिकायते भी मिल रही थी की स्टाफ ध्यान नहीं दे रहा है इसलिए मारीजों और कर्मचारियों की निगरानी के लिए सिसिटीवी कैमरे लगाए थे। कैमरे लगाने से सफलता मिली तो कैमरे बढ़ाने के साथ कंट्रोल रूम को स्थायी किया है।

सीसीटीवी से कायम अनुशासन
सीटीवी सर्विलैंस से आईसीयू में भर्ती मरीज,गार्ड की मौजूदगी, स्टाफ की ड्यूटी, समय की पालना आदि में अनुशासन कायम हुआ है। इसके साथ ही अस्पताल परिसर में चोरियों की शिकायत अब थमने लगी है और स्टाफ को लेकर शिकायत भी घटने लगी है। प्रिंसिपल कार्यालय में सीसीटीवी की नोडल अधिकारी डॉ रिचा पुरोहित ने बताया की कोविड के दूसरे चरण में ऑक्सीजन प्लांट,आईसीयू आदि पर निगरानी रखी गई है। सोशल मीडिया ग्रुप पर हर घंटे में प्लांट के प्रेशर मीटर की रीडिंग, मरीज के पास मॉनिटर पर हेल्थ पैरामीटर (पेशेंट का नांम, बीपी – प्लस, ऑक्सीजन सेचुरेशन आदि) की शीट मंगवाई थी। अब मरीज के बेड के आसपास रिश्तेदारों की भीड़, नर्सरी या डॉक्टरो के नजर नहीं आने पर वार्ड इंचार्ज या अधीक्षक को फ़ोन कर व्यवस्था करवा रहे है। आरएनटी में 2018 से सीसीटीवी से निगरानी है, लेकिन तब कमरे कम थे, जिस वजह से रोज चोरी के मामले सामने आ रहे थे। कैमरे बढ़ने से अब चोरी के मामले बिलकुल भी नहीं आ रहे है।

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1993-2015 तक संघर्ष उदयपुर के साथ, झील प्राधिकरण जयपुर में क्यों?

पूरी दुनिया में मशहूर उदयपुर नगर झीलों के लिए सुप्रसिद्ध शहर हैं। यहाँ कई सारी झीलें स्थित हैं, इसलिए इसे झीलों की नगरी भी कहा जाता है। यहां पर फतेहसागर, पिछोला, स्वरुपसागर, कुमहारी तालाब, दूधतलाई, गोवर्धन सागर, रंगसागर, उदयसागर, रूपसागर, बड़ी, जयसमन्द, राजसमंद जैसी आदि झीलें हैं जिनके आस-पास ही पूरा नगर बसा हैं। ये झीलें कई शताब्दियों से उदयपुर की जीवनरेखा हैं, जो एक-दूसरें से जुड़ी हुई हैं।

अगर किसी प्रदेश में इतनी सारी झीले हैं, तो उसके संरक्षण व विकास के लिए प्राधिकरण भी होना जरुरी है। उदयपुर संभाग में प्रदेश की सबसे ज्यादा 35 झील-जलाशय है। 1993-1994 में करीब 29 साल पहले उदयपुर से ही झील संरक्षण और प्राधिकरण की मांग उठी थी जिसकी स्थापना भी उदयपुर में ही होनी थी और ड्राफ्ट भी माँगा गया था। 1996 में प्रदेश सरकार की एडमिनिस्ट्रेटिव एंड रिफार्म कमिटी ने इस ड्राफ्ट को स्वीकार किया, लेकिन प्राधिकरण की स्थापना नहीं हुई।  हालाँकि यह मामला हाई कोर्ट तक भी पहुंचा और 2007 में झील विकास के प्राधिकरण की स्थापना के निर्देश भी दिए। इसकी लम्बी लड़ाई के बाद 2015 में राजस्थान झील विकास प्राधिकरण अस्तित्व में आया लेकिन इसका मुख्यालय तो जयपुर में खोल दिया जबकि जयपुर संभाग में तो केवल 8 झीले-जलाशय ही हैं। हालाँकि इस प्राधिकरण के अधिनियम के ड्राफ्ट में साफ़-साफ़ उल्लेख है कि मुख्यालय किसी और जिले में भी खोला जा सकता है। 

उदयपुर से जयपुर की सड़क मार्ग दूरी करीब 400 किमी है

उदयपुर से जयपुर की सड़क मार्ग दूरी करीब 400 किमी हैंऐसे में प्राधिकरण जयपुर होने की वजह से उदयपुर की झीलों पर इनकी नजऱ नहीं रहेगी। गन्दगी-बदहाली, मलिनता, दुर्गंंध, अतिक्रमण, अवैध गतिविधि और अवैध निर्माण से दम तोड़ रहे और ख़राब दुर्दशा का यही बड़ा कारण है इन पर प्राधिकरण बने तो इस पर काफी हद तक अंकुश लग जाएगा। उदयपुर में जलाशयों के प्राधिकरण व संरक्षण-संवर्धन का काम कलेक्टर के हाथों में हैं पर कलेक्टर के पास अन्य गतिविधियां होने की वजह से उनका उतना फोकस नहीं है जितना होना चाहिए।

प्रमुख 85 झीलों के जलाशय कुछ इस प्रकार है- 

  • उदयपुर-35
  • कोटा-14
  • अजमेर-12 
  • जयपुर-8 
  • भरतपुर-6 
  • जोधपुर-6
  • बीकानेर-4  

उदयपुर में क्यों होना चाहिए प्राधिकरण ?

प्रदेश के सातो संभाग में कुल 85 प्रमुख झीले-जलाशय हैं। इनमे से सबसे ज्यादा 41 प्रतिशत झीले उदयपुर संभाग में है बाकि 59 प्रतिशत प्रदेश के 6 संभागो में है। अधिकतर बड़े-बड़े बांध भी उदयपुर में है और बन भी रहे हैं। सबसे ज्यादा जरुरत भी यही है क्योंकि यहाँ का पानी जोधपुर और जयपुर तक पहुंचने की तैयारी में है, इसका मतलब राजस्थान के आधे से ज्यादा आबादी को पानी उदयपुर संभाग ही पहुंचाता है। ज्यादा झीले है तो उसकी रखरखाव की भी जरुरत ज्यादा ही होती है।  उदयपुर से जयपुर की दुरी करीब 400 किमी की है, अगर कुछ शिकायत है तो इसकी शिकायत लेकर जयपुर जाना मुश्किल है और ना ही इस प्राधिकरण के मुखिया झील जलाशयों की दुर्दशा देखने इतने दूर से आते है। 

 

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क्या उदयपुर शहर में भी आ गया है वीरप्पन ?

भारत की पुलिस को इस आदमी ने जितना दौड़ाया था, उतना शायद किसी ने नहीं दौड़ाया। वीरप्पन के नाम से प्रसिद्ध कूज मुनिस्वामी वीरप्पन दक्षिण भारत का कुख्यात चन्दन तस्कर था जो 1970 से पुलिस और फाॅर्स के लिए चुनौती बना रहा। चन्दन के हर पेड़ पर उसकी तिरछी नज़र रहती थी। 18 वर्ष की उम्र में वह एक अवैध रूप से शिकार करने वाले गिरोह का सदस्य बन गया जिसका एक वक्त चंदन तस्कर वीरप्पन के नाम से तमिलनाडु जंगल में ख़ौफ़ पसर जाया करता था जो 2004 में मारा गया। वीरप्पन के बाद जंगलों से ख़ौफ़ तो खत्म हो गया लेकिन तस्करी का खेल कई गुना बड़ा हो गया।

क्या कोई वीरप्पन हमारे शहर में भी आ गया है ?

उदयपुर शहर की विश्व प्रसिद्ध झील फतहसागर के किनारे बनी काले किवाड़ के आगे मेवाड़ दर्शन दीर्घा पार्क में आए दिन चन्दन के पेड़ के चोरी होने की ख़बरे आ रही थी। कला दीर्घा पार्क में चन्दन के कुल 66 पेड़ थे। चोर इसी जगह से कई पेड़ आधुनिक हथियारों से काटकर लेकर गए थे और कुछ पेड़ो पर आरी से निशान बनाकर चेतावनी भी दे गए थे की ये पेड़ काटकर भी ले जाएंगे और नतीजा यह था की चोर उसमे से कुछ पेड़ आखिरकार लेकर ही गए। कुछ पेड़ो को तो इतना तक काट दिया था की हल्का सा धक्का देते ही वे निचे गिर पड़ेंगे।

ये पेड़ वीरप्पन जैसे अनगिनत तस्करों को शरण दे रहे हैं। दरअसल चोर चन्दन के पके पेड़ लेकर जाते है, जानकर बताते है की चन्दन की खुशबू पेड़ की जड़ से लेकर ऊपर तक के 4-5 फीट तक के तने में रहती है। इसके लिए चोर पेड़ो के ऊपरी हिस्से को आसपास के पेड़ या जालियो से बाँध देते है। इसके बाद ज़मीन से चार से पांच फीट का हिस्सा काटकर अलग कर देते है। चोरो की नज़र अब कटे पेड़ो की जड़ो पर भी है इसलिए कई चबूतरों तक को तोड़ दिया गया है।

इस ख़बर के बाद चेते नगर निगम ने चन्दन के पेड़ को सुरक्षित करने के लिए करीब-करीब सभी पेड़ो के चारो और लोहे के एंगल लगा दिए है। नगर निगम इन पर भी ध्यान नहीं देता तो चंदन तस्कर सभी पेड़ो को गायब कर देंगे। चन्दन तस्करो की निगाहें तो अभी भी पेड़ पर जमी है। जिले में लगातार चन्दन के पेड़ घटते जा रहे है , क्या विभाग की और से चन्दन तस्करी रोकने के लिए और कड़े प्रकरण करने की आवश्यकता नहीं है?  क्या पार्क में चौकीदार बढ़ाने की जरुरत नहीं है ? क्या पार्क में सीसीटीवी कैमरे की जरुरत नहीं?

कितने साल में तैयार होता है एक पेड़ ?

  •  15 साल में तैयार होता है एक पेड़ ।
  • हर साल चंदन का तना बढ़ता है – 12 से.मी ।
  • 12 से 15 साल के पेड़ की ऊंचाई होती है – 5 फीट (तने का व्यास करीब 80 से.मी.) ।
  • 15 साल के पेड़ से मिलती है लकड़ी – 20 से 35 किलो (लसदार) ।
  • मौजूदा लकड़ी की कीमत 6000 से 12,000 रुपए प्रतिकिलो।( 6000 रुपए प्रतिकिलो के मान से 20 किलो लकड़ी की कीमत ही बाजार में 1 लाख 20 हजार रुपए होती है) ।
  • चंदन चार तरह का होता है सफेद, लाल, मयूर और नाग चंदन।

एक चन्दन के पेड़ की कीमत करीब 10 लाख होती है, करीब 10 पेड़ किसी को भी करोड़पति बना सकते है। सवाल हजारों पेड़ों की तस्करी का हो तो अंदाजा लगाइए कितनी बड़ी रकम का खेल होगा। ये धंधा इतने शातिर तरीके से किया जाता है कि इसमें सिर्फ छोटे मोहरे ही फंसते हैं। बड़े खिलाड़ी कानून के चंगुल से दूर रहते हैं। हालात नहीं सुधरे तो आशंका ये भी है कि अगले 15-20 साल में चन्दन के पेड़ की प्रजाति पूरी तरह खत्म हो सकती है।

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Mewar and Marwar- Differences you must know!

“Mhaaro Rang Rangeelo Rajasthan” is truly blessed with vivacious cultures, royal heritages, holy traditions, communities living in harmony and enchanting nature. It is also, literally and in every sense, the “Land of Kings.” This time we are here to tell you the difference between two major regions of Rajasthan that are the Mewar Province and the Marwar Province. Mewar and Marwar are pretty much similar on the basic level, but when scrutinized, they have some contrasting features. Let’s find out more about the

‘two regions with a sole soul.’

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“Territories of the “Land of Kings”

Mewar, the south-central region of the state of Rajasthan includes:

➤ Bhilwara,

➤ Rajsamand,

➤ Chittorgarh,

Udaipur,

➤Tehsil Pirawa of Jhalawar District,

➤Neemuch and Mandsaur districts of Madhya Pradesh

➤and some parts of Gujarat.

 

Marwar region includes:

➤ Barmer

➤ Sirohi

➤Jalore

➤Nagaur

➤ Jodhpur

➤Pali

➤and parts of Sikar.

mewar_marwar_region

“What’s in a name they say, but then everything has a name”

The word “Mewar” is loosely extracted from the word ‘Medapata’ which is the ancient name of the region. ‘Meda’ refers to the Meda Tribe who used to reside in the region (now called Badnor) and ‘pata’ refers to the administrative unit.

The word “Marwar” comes from the word ‘Maru,’  a Sanskrit word, which means desert and from a Rajasthani slang‘wad’ which means a particular area. Marwar is basically known as ‘The Region of Desert’.  

“The richest histories in the country”

History of both Mewar and Marwar is quite rich and somewhat similar as both were founded by Rajputs. On one hand, where Mewar has a history of wars, defeats, successions, and establishments, Marwar’s history is complex with no direct successions and Mughals and Rajputs ruling now and then.

After the establishment of both Mewar and Marwar, the timeline of monarchy witnessed a number of kings and Britishers as well.

Here we have a timeline of reigns of the famous monarchs of Mewar:

Kings

Known for

Reign-   period

Bappa Rawal founder of Mewar 734-753
Maharana Kumbha ➤his reign is considered as the “golden period of Mewar”

➤Was the only Hindu king of his time in India

1433-1468
Maharana Udai Singh ➤Murdered his own father, Rana Kumbha and turned out to be an abominated king.

➤Was struck by lightning just before his daughter’s marriage and died on the spot.

1468-1473
Maharana Udai Singh II ➤Founder of Udaipur, the city of lakes 1537-1572
Maharana Pratap ➤Only ruler to not give up in front of Mughals.

➤Fought the famous “Battle of Haldighati” against Akbar, the then Mughal ruler

1572-1597
Maharana Jagat Singh ➤57th ruler of Mewar

➤The famous Jagmandir Palace and Jagdish temple in Udaipur was built during his reign.

1628-1652
Maharana Swaroop Singh ➤Britishers started settling in India during his reign and he supported Britishers in every way possible. 1842-1861
Maharana Sajjan Singh ➤He did everything in his power for Udaipur and its environment

➤Udaipur became the second city in the country to have a municipality, after Bombay, under his rule

➤He built a beautiful monsoon palace in Udaipur, that is Sajjangarh Fort, to complement the beauty of Udaipur in the backdrop.

1874-1884
Maharana Bhupal Singh ➤Founded many colleges and schools, especially for girls and also worked towards the betterment of lakes and environment of Udaipur 1930-1955
Maharana Bhagwat Singh ➤Last ruler of Mewar

➤Sold off most of his properties like Fateh Prakash, Jagmandir and other architectures on the banks of Lake Pichola so that all of them are well maintained

➤Even though the financial situation of the Royalties was depleting, he worked towards the betterment of Mewar.

1955-1984

 

Marwar was established by the Gurjara Pratihara, a Rajput clan. They first settled their kingdom in the 6th century in Marwar with the capital at Mandore which is 9 km from Jodhpur.

Here we have the timeline mentioning famous rulers of Marwar:

Kings

Known For

Reign Period

Rao Sheoji ➤first ruler to rule over Marwar from Rathore dynasty 1226-1273
Rao Ranmal ➤Was helped by Sisodias of Mewar to rule over Marwar

➤Was assassinated on the orders of Rana Kumbha of Mewar.

1427-1438
Rao Jodha ➤Founder of Jodhpur 1438-1489
Maharaja Jaswant Singh ➤Fought the Battle of Dharmatpur against Aurangzeb 1638-1678
Maharaja Ajit Singh ➤Became ruler of Marwar after 25 years of war against Aurangzeb. 1679-1724
Maharaja Bakhat Singh ➤Fought the Battle of Gangwana against Mughals and Kachhawa 1751-1752
Maharaja Sir Hanwant Singh ➤Last ruler of Marwar before independence 9 June 1947-15 August 1947

 

During the famine of 1899-1900, Marwar suffered terribly and seeing the terrible fate Marwar underwent, Maharaja of Jodhpur decided to join the dominion of Pakistan but  Lord Mountbatten warned him that majority of his subjects were Hindus and joining Pakistani dominion may create problems for him and the kingdom. In 1950, Rajputana ultimately became the state of Rajasthan.

Maharana Pratap

Proud communities of Mewar and Marwar

Rajputs are a well-known warrior clan of Rajasthan. Their trenchant identity is usually described as “proud Rajput tribes of Rajputana”. Their lineage is traced from the Fire family, the Sun Family and the Moon Family.

The Sun Family includes:

➤ Sisodias of Chittaur and Udaipur

➤Rathores of Jodhpur and Bikaner and

➤Kachawas of Amber and Jaipur.

While the Moon Family includes the Bhattis of Jaisalmer.

The trading communities include Khandelwal, Agrawal, Maheshwari, Jains, and Gahoi of Marwar. Birlas, Bajajs, Goenkas Singhanias are some top business groups in India, who are famous Marwaris from Rajasthan.

The artisan’s communities like Sonar, Lohars, Bhils etc. are majorly found in Mewar.

“Reflection of valor- Mewari, and Marwari”

Mewari should not be confused with Marwari as both the languages are different. People who have been into both the regions can easily identify the boldness of Mewari and the Sweetness of Marwadi.

Mewari is inspired by Devanagari script while maximum words of Marwari are adopted from Sanskrit language and is traditionally associated with Mahajani language.

Mewari- 5 million speakers coming from Bhilwara, Chittorgarh, Udaipur, and Rajsamand districts of the state of Rajasthan.

Marwari-  20 million speakers (most-spoken)

 

“Aah, the food”

Dal Bati Churma is the signature dish that opts for both the kitchens of Mewar and Marwar. Although,  very few people know that Mewar ’s cuisine includes both vegetarian and non-veg food.

Whereas, Marwari cuisine generally follows vegetarian food. Some authentic dishes like

➤Laal Maas and Khad Khargosh

are non-vegetarian delights and are relished by the people of Mewar.

Whereas, the people of Marwar enjoys vegetarian delights such as:

➤Bajre ki roti

➤Pyaaz Kachori

➤Bharwa Besan Mirch

➤Panchmel Daal

and many more fabulous recipes.

Apart from this, the richness in Mewari authentic Thali can be seen with the use of dried spices (Masalas) and dry fruits like cashews and almonds. Whereas the palette of Marwari food is a little dry reflecting the regional conditions.

Marwari Thali focuses more on ingredients like gram flour (Besan) and vegetables like Ker Sangri, Gavarfali, and more.

But, in both the culinary concepts, the common things are cooking techniques, Spicy flavor and the use of ghee.

 Food Festival in Udaipur

“The Great and Glorious Festivals” 

Besides the culture and region, festivals can also let anyone recognize the distinctive feature of both the heritage. Whether it’s Diwali, Holi or Bhaidooj, all the festivals are significant in  Rajasthan. Mewar festival, primarily known as ‘Gangaur,’ is celebrated with lots of enthusiasm amongst women of the region.

And, considering the parts of Marwar, the festival which is widely celebrated by women of the region is “Teej.” which is celebrated in the monsoon season and determined by the cycle of the moon.

Despite these differences, a thing worth remembering is that both the regions and their cultures are blended so well that people always say, and forever say, that not Mewar or Marwar but Rajasthan is Enchanting!

Mewar_Festival_2012_Gangaur_Udaipur

 

Sources:

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राजस्थान बजट 2022- जानिए उदयपुर को मिली कौन-कौन सी सौगातें!

उदयपुर को बीजेपी का गढ़ कहा जाता है। परन्तु एक बार फिर उदयपुर को सबसे बड़ी सौगात कांग्रेस सरकार से  मिली है। 10 साल पहले भी कांग्रेस सरकार में मुख्यमंत्री रहे अशोक गहलोत ने उदयपुर को नगर परिषद से अपग्रेड कर नगर निगम बनाया था। 

अब ठीक 10 साल बाद गहलोत ने अपनी तीन वर्षों की सरकार के चौथे बजट में उदयपुर को UIT से अपग्रेड कर उदयपुर विकास प्राधिकरण (UDA ) बना दिया है। 

अब जयपुर, अजमेर और जोधपुर की तर्ज पर उदयपुर को उदयपुर विकास प्राधिकरण कहा जाएगा। यहां काम भी विकास प्राधिकरण के तौर पर ही होगा। उदयपुर को प्राधिकरण बनाने की मांग लम्बे समय से की जा रही थी।

केवल यही नहीं, उदयपुर को बजट से काफी कुछ मिला है। राजस्थान बजट उदयपुर के लिए निम्न सौगाते लाया है। 

  1. उदयपुर को विकास प्राधिकरण बनाया गया।  
  2. वल्लभनगर में रीको इंडस्ट्री बनाई जाएगी।
  3. खेरवाड़ा में एग्रीकल्चर कॉलेज खोला जाएगा।
  4. उदयपुर में अतिरिक्त सीएमएचओ ऑफिस खोला जाएगा।
  5. झल्लारा पीएचसी को सीएचसी में क्रमोन्नत किया।
  6. महाराणा प्रताप खेलगांव में सिंथेटिक एथलेटिक ट्रैक बनाया जाएगा।
  7. गिर्वा में एक खेल स्टेडियम भी बनाया जाएगा।
  8. सुपर-स्पेशियलिटी में सुविधाएं बढ़ाई जाएंगी।
  9. कोटड़ा तहसील में नए बांध बनाने की घोषणा।
  10. सेमारी उदयपुर में नया उपखंड कार्यालय बनाया जाएगा।
  11. उदयपुर में मिनी फूड पार्क बनाने की घोषणा हुई।
  12. दिल्ली के उदयपुर हाउस में 250 कमरों का हॉस्टल बनेगा।
  13. नगर निगम क्षेत्र में 40 करोड़ से नई सड़कें बनाई जाएंगी।
  14. उदयपुर-बांसवाड़ा रोड़ पर माही नदी पर पुल का निर्माण।
  15. 89 करोड़ से झल्लारा-धरियावद, प्रतापनगर सड़क, ऋषभदेव से झामेश्चर सड़क, झाड़ोल-देवास-गोगुंदा सड़क निर्माण।
  16. 150 करोड़ से प्रतापनगर से बलीचा फोर लेन रोड, आयुर्वेद चौराहे ( राड़ाजी चौराहा) से सुभाष (नेता जी सुभाष चंद्र बोस) सर्किल, सज्जनगढ़ तिराहा, रामपुरा होते हुए सीसारमा-झाड़ोल एलिवेटेड रोड़ बनायीं जाएंगी। 
  17. उदयपुर में 400 केवी ग्रिड सब स्टेशन स्थापित किया जाएगा।
  18. उदयपुर में बॉटनिकल गार्डन स्थापित किया जाएगा।
  19. भाणदा में नई चौकी, पाटिया चौकी को थाना बनाया जाएगा।
  20. उदयपुर में खुलेगा फैमेली कोर्ट। 
  21. बावलवाड़ा में उप-तहसील खोली जाएगी।
  22. घाटकोन में 9.65 करोड़ से सिंचाई परियोजना।
  23. गामदरा में 4.57 करोड़ से सिंचाई परियोजना।
  24. बेड़ा का नाका में 3.27 करोड़ से सिंचाई परियोजना।
  25. बजरिया, भूराव, हसूला और देवेंद्रा में 17 करोड़ से सिंचाई परियोजना।

यदि सभी घोषणाओं का पालन किया गया, तो हमें उदयपुर का एक नया रूप देखने मिलेगा।  


Article by: Paridhi Mehta

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उदयपुर के इंदिरा आईवीएफ हेड ऑफिस पर सेंट्रल जीएसटी (CGST) की टीम ने मारा छापा

उदयपुर स्थित इंदिरा आईवीएफ के हेड ऑफिस पर सेंट्रल जीएसटी (CGST) की टीम ने छापा मारा है। उदयपुर पहुंची टीम कर चोरी को लेकर जांच कर रही है। संभावनाएं यह जताई जा रही है की इंदिरा आईवीएफ की बड़ी कर चोरी का खुलासा हो सकता है।

सेंट्रल जीएसटी की दिल्ली से आई टीम व राजस्थान की टीम संयुक्त कार्यवाही कर रही हैं। इस संयुक्त टीम ने इंदिरा आईवीएफ के कुम्हारों का भट्‌टा स्थित सेंटर पर छापा मारा है और कार्यालय से महत्वपूर्ण दस्तावेज़ भी हासिल किए हैं। उन दस्तावेज़ों की अभी जांच जारी है।

संभावनाएं जैसी जताई जा रही है उसके मुताबिक बड़ी कर चोरी का मामला हो सकता है। इसमें इंजेक्शन में खरीद के अतिरिक्त अन्य कई चीजों में कर से जुड़ी गड़बड़ियों की आशंका जताई जा रही है। सीजीएसटी से मिली सूचना के अनुसार कार्रवाई मंगलवार पूरी रात और बुधवार सुबह तक की गई।

इंदिरा आईवीएफ के देशभर में कई ब्रांच हैं, मगर इनका मुख्यालय उदयपुर स्थित कार्यालय ही है। इसलिए अभी सेंट्रल जीएसटी की टीमें कुम्हारों का भट्‌टा स्थित इंदिरा आईवीएफ सेंटर के हेड ऑफिस पर है। अबतक मिली जानकारी में सामने आया है कि सीजीएसटी अपनी कार्रवाई पूरी होने के बाद अधिकारिक जानकारी जारी करेगा, जिसमें कर चोरी से जुड़ी जानकारी सामने आएगी।


यह डाटा दैनिक भास्कर से प्राप्त किया गया है।  

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