Categories
People Social

कैसे महामारी में भी ज्ञानप्रकाश और उनके साथियों ने कोटड़ा में ज्ञान का प्रकाश बुझने नहीं दिया

साल 2020

लॉकडाउन हट चुका था। लेकिन महामारी का कहर जारी था। देश में हज़ारों की संख्या में मामले सामने आ रहे थे। राजस्थान भी इससे अछूता नहीं था। जयपुर, जोधपुर, उदयपुर, कोटा, भीलवाड़ा और भरतपुर जैसे शहर सबसे ज़्यादा प्रभावित शहरों की लिस्ट में शामिल थे। जब लॉकडाउन था तब केवल बेहद आवश्यकताओं वाली सेवाएं ही बहाल थीं, लॉकडाउन के बाद भी ज़िन्दगी सामान्य नहीं हुई थी। सरकारी दफ़्तर, प्राइवेट कंपनियाँ खुल गयी थीं, लेकिन अपनी आधी क्षमता से ही। कुछ ने तो साल भर के लिए, वर्क फ्रॉम होम की सुविधा कर दी। दुकाने भी खुलने लगी थीं। लोग आहिस्ता-आहिस्ता महीनों सूनी पड़ी सड़कों पर आने लगे थे।

लेकिन, शिक्षा के क्षेत्र का हाल बुरा था। शहरी विद्यालयों – कॉलेजों ने ऑनलाइन क्लासेज़ लेना शुरू कर दिया था। लेकिन जो सबसे अधिक प्रभावित थे, पूरी महामारी में, उनकी ज़िंदगी आसान होती नज़र नहीं आ रही थी।

मैं बात कर रहा हूँ। सुदूर, गाँवों में बसे लोगों की। इनमें आप शहर की कच्ची बस्तियों में रहने वाले या दिहाड़ी पर ज़िंदा रहने वालों को भी गिन सकते हैं।

मानसून आधे से ज़्यादा राजस्थान को विदा कर चुका था और दक्षिणी राजस्थान में उसके चंद आख़िरी दिन बचे थे। बारिशों का दौर थम-सा गया था। हालाँकि, आसमान बादलों से भरा रहता था लेकिन वे मुश्किल से कहीं बरसते थे।

उन्हीं दिनों, मेरा उदयपुर ज़िले के आदिवासी अंचल में जाना हुआ। राजस्थान में सबसे ज़्यादा आदिवासी, दक्षिणी राजस्थान में रहते हैं। उदयपुर में, कोटड़ा तहसील आदिवासी बहुल क्षेत्र है।

मैं कोटड़ा तहसील के, गोगरूद गाँव में था और वहाँ शोध के दौरान, कई लोगों से मिल कर रहा था। देवला से 3 किलोमीटर आगे गोगरूद गाँव के बाहर, एक चाय की दुकान है। एक दिन वहाँ बैठा मैं चाय पी रहा था, तभी मेरे पीछे से, बच्चों की कतार कहीं से निकलती हुई आयी। वे संख्या में 30 के आसपास होंगे। चेहरे मास्क में छुपे हुए थे और हाथों में किताबें-कॉपियाँ थीं।

मैंने दुकानदार से पूछा कि ये बच्चे कहाँ से आ रहे हैं तो उसने बात को टाल दिया। लेकिन मेरा ध्यान उन्हीं पर था। कुछ ही देर में वे सारे बच्चे गायब हो गये। मैं कुछ दिन लगातार उसी गाँव में जाता रहा। अब दुकानदार मुझे पहचानने लगा था। बातचीत आगे बढ़ी तो मुझे उनका नाम पता लगा, ज्ञानप्रकाश। मैंने दुबारा उनसे वही सवाल पूछा, “ये इतने बच्चे कहाँ से आ रहे हैं?”

“पीछे स्कूल चलता है। ये सभी वहीं से पढ़कर आ रहे हैं।”

“लेकिन, स्कूल तो बंद है?”

“हाँ… सरकारी स्कूल बंद है। प्राइवेट भी बंद है। वैसे वह स्कूल नहीं… एक ट्यूशन की तरह है”

“कौन लेता है ट्यूशन?”

“हम ही गाँव के लोग”

“थोड़ा समझायेंगे? मैं अभी तक समझ नहीं सका..”

“सर जी, कोरोना ने बहुत नुकसान पहुंचाया है। बड़े तो परेशान हुए ही है, बच्चों की भी पढ़ाई पर असर पड़ा है। अब शहर के बच्चे तो मोबाइल पर पढ़ रहे हैं। हमारे यहाँ मोबाइल कहाँ? मोबाइल हो तो नेटवर्क नहीं आता, मोबाइल और नेटवर्क दोनों हो तो इतने पैसे नहीं होते की हर महीने इंटरनेट डलवा सकें।

इसलिए, हम ने सोचा कि अपने गाँव के बच्चों को खुद ही पढ़ाया जाये। हम ने हमारे गाँव के तीन लोग चुने जो खुद भी पढ़े लिखे हो और वे बच्चों को पढ़ाना भी चाहते हो। ऐसे में तीन लोग सामने आये। वे तीनों भी स्कूल से नहीं, संस्था से पढ़े हैं। पहले यहाँ स्कूल नहीं थे तो एनजीओ काम करते थे, वहीं से पढ़े और बी.ए. की। वे भी चाहते थे कि अपने गाँव के बच्चों की किसी तरह मदद करे। फिर ये कोरोना आ गया… उन्होंने सोचा यही समय है मदद करने का। कुल 80 बच्चे आते हैं। एक जगह इतने बच्चों को पढ़ाना मुश्किल है इसलिए दो अलग-अलग जगह पढ़ाया जाता है। बच्चों के जो जगह नज़दीक पड़ती है वह वहाँ पढ़ने जाता है।”

“अभी कोई एनजीओ नहीं काम कर रहा?”

“तभी तो परेशानी है। कोटड़ा में कर रहे हैं लेकिन…कोटड़ा बहुत बड़ा है। हमारी साइड कोई नहीं कर रहा है।”

“महामारी में इस तरह पढ़ाना रिस्की हो सकता है।”

“तो आप ही बताओ क्या करें हम?… यह साल ऐसे ही जाने दें? पढ़ायेगा कौन इन्हें? किसको पता कब स्कूल खुलेंगे? शहर में तो बच्चे पढ़ रहे हैं, हमारे बच्चे पीछे रह जाएंगे। वैसे भी कोटड़ा को शहर के लोग अच्छी जगह नहीं समझते हैं। लेकिन, अब कोटड़ा बदल रहा है। जैसे हमनें किसी तरह से स्कूल पूरी की, हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे हम से भी ज़्यादा पढ़ें। अब उसके लिए तो रिस्क लेना पड़ेगा ना।

और वैसे भी हम सोशल डिस्टेंसिंग के साथ बिठाते हैं। सभी को मास्क दिए हुए हैं। हर बच्चे से महीने की फीस लेते हैं जो बहुत ही मामूली है ताकि हम पढ़ाने वालों को भी मेहनताना दे सकें और बचे पैसों से इनके हर महीने के लिए पेंसिल-किताबें-कॉपियाँ ला सके।”

मैंने जा कर वह जगह भी देखी जहाँ बच्चे पढ़ रहे थे। उन्होंने मुझसे एक मदद मांगी कि मैं किसी एनजीओ से कनेक्ट करवा दूँ तो बच्चे बिना किसी परेशानी के, लंबे समय तक पढ़ पाएंगे।

यह बात मेरे दिमाग में रह गयी थी। उदयपुर आकर मैंने कुछ छोटे-बड़े एनजीओ से बात भी की लेकिन बात बनी नहीं। कुछ के पास फण्ड की कमी थी तो कुछ ने इस बात का हवाला दिया कि यह एक लंबा प्रोसेस है जो कि इतनी जल्दी पूरा नहीं हो सकता।

मैं विवश था। तब मैंने एक फेसबुक पोस्ट लिखा और उसे पढ़ कर कुछ लोग मदद को आगे आये। इतना पैसा जुट गया था कि एक बार की ज़रूरत की चीज़ें लायी जा सके। हम लंबे समय तक उनकी मदद नहीं कर सकते थे, इसलिए हम ने एक लिस्ट बनायी जिसमें उन सभी चीजों को रखा जो लंबे समय तक बच्चों के काम आ सके, मसलन, उनके पास बैग नहीं थे तो बैग खरीद लिये। किताबें खरीद ली, कॉपियाँ खरीद ली और बॉक्स ले लिए जिसमें सभी ज़रूरत की सामग्री थीं। यह सिर्फ छोटी सी कोशिश थी ताकि उनका हौसला बना रहे। हम नहीं जानते थे कि वे कितने दिन और इस तरह उन्हें पढ़ा पाते। लेकिन जिस दिन उन बच्चों को यह सब मिला, वे बहुत खुश थे।




इस बात को महीने बीतने आये। 2020 ख़त्म हो गया। 2021 का पहला महीना भी बीत गया। अभी कुछ ही दिन पहले, ज्ञानप्रकाश जी का फ़ोन आया। वे बहुत खुश लग रहे थे। वे बोले, ” अभी – अभी एक एनजीओ वाले से मिलकर आया हूँ। वे यहाँ आये थे। वे हमारी मदद को तैयार हो गये हैं। मैंने घर आते ही सबसे पहले आप ही को फ़ोन लगाया, सोचा सर जी को बता दूँ।”

इसके बाद भी हमारी बहुत बातें हुई। लेकिन मुझे शब्दशः अगर कुछ याद है तो, वह है,

“वे हमारी मदद को तैयार हो गये। मैंने घर आते ही सबसे पहले आप ही को फ़ोन लगाया, सोचा सर जी को बता दूँ…”

Categories
Places to Visit

उदयपुर का ‘कोणार्क’ : 9वी शताब्दी पुराने सूर्य मंदिर की कहानी

उदयसागर झील से निकलती नदी, बेड़च। इसके किनारे एक बेहद पुराना मंदिर बना है। यह मंदिर आपको तब भी नज़र आता है, जब आपका प्लेन महाराणा प्रताप इंटरनेशनल एअरपोर्ट पर उतरने ही वाला होता है, उस क्षण से कुछ ही पहले, यह मंदिर आपको अपनी और खींच लें तो कोई बड़ी बात नहीं होगी और तब मुमकिन है, आपका मन इसके बारे में जानने को उत्सुक हो जाए।

Sun temple udaipur
Photo Courtesy: Sharad Vyas

9वी शताब्दी में बना यह सूर्य मंदिर ‘उदयपुर का कोणार्क’ भी कहलाता है। मंदेसर गाँव में बने इस मंदिर की कहानी, शहर के इतिहासकार- अध्यापक डॉ श्रीकृष्ण ‘जुगनू’ की ज़ुबानी है। उनकी लिखी किताब ‘मेवाड़ का इतिहास – श्रीकृष्ण जुगनू’ के चौथे अध्याय में इस मंदिर का ज़िक्र मिलता है।

sun temple udaipur
Photo Courtesy: Sharad Vyas
“मंदेसर का सूर्य मंदिर उसकी स्‍थापत्‍य रचना के आधार पर 10वीं सदी का माना गया है, किंतु यह 9वीं सदी का होना चाहिए। क्‍योंकि इसमें दिक्‍पाल(दिशाओं का पालन करने वाले देवता) दो भुजाओं वाले हैं, और उनका विधान(निर्माण) प्राचीन शिल्‍प की परंपरा को लेकर हुआ है। उनके आभरण-अलंकरण भी उसी काल के दिखाई देते हैं। निश्चित ताल-मान के आधार पर ही यहां की मूर्तियां बनी हैं, जिनमें सभा-मंडप की सुर-सुंदरियों पर तस्‍करों की बराबर नज़र रही है। मूल प्रतिमा तो सालों पहले ही नदारद हो गई, उसकी जगह गांववालों ने बंसी वाले श्‍याम की प्रतिमा विराजित कर रखी है। हवाई अड्डे पर हवाई जहाज से उतरते समय इस मंदिर की एक झलक दिखाई देती है।

sun temple udaipur
Photo Courtesy: Sharad Vyas
पूर्वमुखी का यह मंदिर प्रवेश मंडप, सभा मंडप और गर्भगृह- इन तीन स्‍तरों पर नागर शैली में बना है। मूलशिखर अब नहीं रहा लेकिन, मंडप से लेकर, गर्भगृह की बाहरी भित्तियों पर मूर्तियां खंडित ही सही, मगर मौजूद है। इनमें ‘सूर्य के स्‍थानक’ और ‘सप्‍ताश्‍वों पर सवार’ मूर्तियां अपने सुंदर सौष्‍ठव-सुघड़ता और भव्‍य भास्‍कर्य के लिए पहचानी जाती हैं। निर्माण काल के करीब एक हज़ार साल बाद भी इनका भास्‍कर्य और दीप्ति वही जान पड़ती है जो कभी रही होगी क्‍योंकि जिस श्‍वेत पाषाण का इसमें प्रयोग हुआ है, वह बहुत विचार और परीक्षण के साथ काम में लिया गया है। जिन शिल्पियों ने इस मंदिर का निर्माण किया, वे विश्‍वकर्मीय विद्या को प्रतिस्‍पर्द्धा की तरह प्रयोग लाने के प्रबल पक्षधर थे। इसी कारण दिक्‍पालों और उनके आजू-बाजू सुर-सुंदरियों का तक्षण किया गया। उनके अंग-प्रत्‍यंग को पूरी तरह ताैल कर उभारने का प्रयास हुआ है। दिशानुसार दिक्‍पालों के उनकी दोनों भुजाओं में आयुध बनाए थे और नीचे तालानुसार उनके वाहन को भी उकेरा गया है।

sun temple udaipur
Photo Courtesy: Sharad Vyas
सुर-सुंदरियों के निर्माण कुछ इस तरह हुआ है कि वे गतिमयता के साथ प्रदर्शित होती हैं। पद, कटि, अंगुलियों, कलाइयों, भुजाओं, गलाें, कान, नाक से लेकर सिर तक आभूषणों को धारण करवाया गया है। केश विन्‍यास बड़ा ही रोचक है। कहीं अलस-कन्‍या सी अंग रचना तो कहीं त्रिभंगी रूप में स्‍थानक रूप। आंखों की बनावट भी अनुपम लगती है। उनके इर्द-गिर्द सिंह-शार्दूलों को उछलकर कायिक वेग को साकार करने का जो प्रयास यहां हुआ, वह बहुत ही राेमांचकारी लगता है। मंदिर के पीछे प्रधान ताक में सूर्य की अरुण सारथी सहित सप्‍ताश्‍व रथ पर सवार प्रतिमा है जबकि उत्‍तर-दक्षिणी ताकों में स्‍थानक सूर्य की प्रतिमाएं हैं। इन पर आकाशीय देवताओं, नक्षत्रों का मानवीकरण करते हुए मूर्त्‍यांकन किया गया है। शिल्‍प और स्‍थापत्‍य की कई विशेषताएं और भी गिनाई जा सकती हैं।

sun temple udaipur
Photo Courtesy: Sharad Vyas
यह सूर्यमंदिर सालों पहले सूर्य आदि ग्रहों व नक्षत्रों के आधार पर आने वाले समय के सुकाल-अकाल होने की उद्घोषणा का केंद्र रहा है। यह मान्‍यता मेवाड़ के लगभग सभी सूर्य मंदिरों के साथ जुड़ी है, मगर अब ऐसी उद्घोषणाएं लोकदेवताओं के देवरों में होने लगी है। न यहां मगविप्र रहे न ही ज्‍योतिषीय अध्‍ययन होता है। वर्तमान में यह मंदिर राजस्‍थान पुरातत्‍व विभाग के अधिकार में है। विभाग के अधीक्षक मुबारक हुसैनजी का आभार कि उन्‍होंने इस संबंध में देर तक चर्चा की और चित्र उपलब्‍ध करवाए तो लिखने का मन बन गया। कभी फुर्सत मिले तो इस सूर्यायतन को भी देखियेगा और फिर स्‍वयं कहियेगा कि इसे शिल्‍पकारों ने बनाया या शिल्पकारों को इसने बनाया।”
– डॉ. श्रीकृष्‍ण ‘जुगनू’
sun temple udaipur
Photo Courtesy: Sharad Vyas
यदि आप इस मंदिर को देखने का मन बना रहे हैं तो यह डबोक एअरपोर्ट से कुछ आगे मंदेसर गाँव में मिलेगा। जाना आसान है। लोकल ट्रांसपोर्ट की मदद से आप गाँव तक पहुँच सकते हैं और यदि ख़ुद की गाड़ी से जा रहे हैं तब सिर्फ गूगल मैप्स की ज़रूरत पड़ेगी। मंदिर बहुत पुराना है, यदि देखने का मन बना रहे हैं तो जल्दी जाइएगा। क्या पता कल हो न हो!
Special Thanks to Sharad Vyas
Categories
News

राजस्थान में एक नए ‘जानलेवा बुखार’ ने दस्तक दी!

मौसम के बदलते ही स्वाइन फ्लू का डर बढ़ जाता है। लेकिन अब एक नए ‘जानलेवा बुखार’ ने राजस्थान में दस्तक दे दी है।

कई दिनों से ‘कांगो फीवर’ (Congo Fever) नाम ने अखबार-टीवी की हेडलाइंस में अपनी जगह बना रखी हैै। इसका कारण अहमदाबाद और जोधपुर में हुई कुुुछ मौतों का सामने आना है। इस बीमारी का अभी तक कोई ठोस उपाय नहीं निकाला जा सका है। मरने वालों की दर भी इस बुखार में बहुत ज़्यादा है। स्वाइन फ्लू से लोगों के मरने का एक बहुत बड़ा कारण जागरूकता की कमी रहा है। सरकारी स्तर पर भी और उसके बाद चलाए गए जागरूकता-अभियान को हल्के में लेना भी इसकी एक वजह है।

world map of congo fever
Courtesy: CDC

चूंकि भारत में अभी कांगो फीवर अपने शुरुआती दौर में ही है। इसलिए, यदि हम इसके बारे में जान लें, इसके लक्षण और उपचार को समझ लें तो इसे बड़े स्तर पर फैलने से रोका जा सकता है।

कांगों फीवर:

Crimean Congo
Courtesy: NICD south africa/ R. Swanepoel via WHO

इस बुखार के मरीज सबसे पहले यूरोपियन और अफ्रीकन देशों में मिले। वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन के मुताबिक सन् 1944 में क्रीमिया में इसकी पहचान की गई। इसके बाद 1969 में कांगों में भी इस वायरस के होने के सबूत मिले और पता लगा कि 1956 में कांगों में हुई एक साथ कई मौतों के पीछे इसी वायरस का हाथ था। तभी से इसका नाम ‘क्रीमियन कांगों’ रख दिया। साल 2001 में इस वायरस ने अफ्रीकी देशों के साथ-साथ ईरान और पाकिस्तान में भी जड़े जमाई।

आमतौर पर जानवर ही इसके शिकार होते हैं। अब तक कि स्टडी बताती है कि जानवरों के ऊपर बैठने वाली पिस्सू से यह वायरस जानवरों को संक्रमित कर देता है लेकिन यह इंसानों को भी संक्रमित कर देता है। अक्सर गांवों में पशुपालन करने वाले इसकी चपेट में आ जाते हैं और बाद में उनके आसपास के लोगों को भी ये अपनी चपेट में ले लेता है।

बीमारी के लक्षण:

Congo fever affected patient
Courtesy: Pakistan today
  • अचानक से बुखार आ जाना
  • गर्दन में दर्द
  • सिरदर्द
  • आंखों में जलन
  • फोटोफोमिया
  • पीठ में दर्द
  • गले का बुरी तरह से बैठ जाना
  • किसी अंग का काम करना बंद हो जाना
  • मूड स्विंग
  • तनाव
  • दिल की धड़कन का बढ़ना
  • स्किन पर रैशेज़ पड़ जाना

उपचार:

इस बीमारी से ग्रसित लोगों को एक एंटीवायरल दवा रीबाविरिन दी जाती है। लेकिन फाइनल स्टेज तक पहुंच चुके मरीज को बचा पाना मुश्किल हो जाता है। इस बुखार से मरने वालों की दर काफी ज़्यादा है। इसलिए यदि आपमें से भी किसी को ये लक्षण दिखें तो तुरंत डॉक्टर को दिखाएं। पालतू जानवरों का समय-समय पर चेकअप करवाते रहें।

इस बुखार से अब तक गुजरात-राजस्थान में क्रमशः तीन और दो लोगों की मौत हो चुकी है।

Facts and Information: World Health Organization

 

Categories
News

“पैंथर जोड़ा हमारे घरों तक पहुँचा या हमनें उनका घर छीन लिया?” – सच क्या है?

पिछले कई दिनों से लोकल मीडिया, आबादी क्षेत्र में पैंथर के आ जाने की खबर लगातार छाप रहे हैं। स्थानीय अख़बारों से लिए आकड़ें बताते हैं कि साल 2019 में अबतक, पैंथर के आबादी क्षेत्र में आने और उनके द्वारा शिकार करने की लगभग सात से आठ घटनाएँ सामने आ चुकी हैं। सभी घटनाएँ शहर के आसपास के गाँवों की थी, इसलिए ये लाइमलाइट में नहीं आ सकी। इन सभी घटनाओं में जान-माल का नुकसान ग्रामीणों का हुआ, इसलिए ये घटनाएँ चर्चा का विषय नहीं रही।Panther in gulab bagh

तीन दिन पहले शहर के स्मार्टफोंस पर एक विडियो वायरल हुआ जिसमें एक पैंथर को माछला मगरा की पहाड़ियों पर घुमते देखा गया और बिजली की गति से गली-गली यह बात पहुँच गई कि “पैंथर आया हुआ है दूध-तलाई मत जाना।”, “करनी माता साइड पैंथर दिखा, उधर मत जाना।”

दो दिन पहले गुलाब-बाग़ के चौकीदार ने एक पैंथर जोड़े को गुलाब-बाग़ में देखने का दावा किया। सभी के होश उड़ गए। क्यों उड़े होश? कौन है पैंथर के शहर में इतने अन्दर तक आ जाने, के पीछे का ज़िम्मेदार? मेरा तो यह कहना है कि पैंथर में दिमाग होना चाहिए कि वह गुलाब बाग़ कैसे आ धमका? उसके जैसों को तो यहाँ पिजरों में रखा जाता था। अब इतनी हिम्मत की गुलाब-बाग़ में वह खुले में घूमे? उसे पता होना चाहिए कि यह इंसानों का इलाका है, यहाँ उसकी कोई जगह नहीं है।

Panther in gulab bagh
Courtesy: toi

यह सब आपको वकालतनामा तो नहीं लग रहा न! अगर नहीं लग रहा है तो आप ग़लत हैं। लेकिन यह कोई कोर्ट-रूम ड्रामा नहीं है। उस छोटे से कमरे के बाहर का ड्रामा है, जहाँ इन्सान और जानवर एक ऐसे कोंफ्लिक्ट में फंस चुके हैं जिसका अब कोई अंत दिखलाई नहीं पड़ता।

सारे साँप ज़हरीले नहीं होते ठीक वैसे ही सभी इंसान भी गिरे हुए नहीं होते। लेकिन साँप होना बदनाम होना है चाहे वह ज़हरीला हो या न हो और यही बात अब इंसानों पर भी लागू होती है। दोनों को यदि एक ही कहावत में पिरोया जाए तो “एक मछली पूरे तालाब को गन्दा करती है ” कहावत एकदम सटीक बैठेगी।

Panther in gulab bagh
Courtesy: Manhotel

कुछ दिनों पहले परसाद में एक बच्ची को मार डालने वाले पैंथर को मार दिया गया। बच्ची का मरना वाकई एक दुखद घटना थी लेकिन उस पैंथर को मार देना कहाँ तक सही था? क्या ‘प्रशासन’ जो कि अपने आप में बेहद भारी-भरकम शब्द है, पहले सचेत नहीं हुआ? वन-विभाग की क्या ज़िम्मेदारी बनती थी? क्या उनके पास और विकल्प मौजूद नहीं थे?

मुझे कोई उम्मीद नहीं है कि इन प्रश्नों के उत्तर मुझे मिल ही जायेंगे और यदि मिल भी जाते हैं तब भी एक इंसान होने के खातिर इतनी समझ तो है कि उस पैंथर को मार गिराने का काम, कोई बहादुरी का काम नहीं माना जाएगा।

हम विकास और स्मार्ट बनने की दौड़ में अंधे हो चले हैं। सिक्स लेन, अहमदाबाद ब्रॉडगेज़, होटल, अपार्टमेंट्स सभी अरावली की छाती को चीरकर बनाए जा रहे हैं। इस दौरान लाखों पेड़ इस तरह से काटे गए जैसे किसी युद्द में भयंकर नरसंहार हुआ हो। उनके कटने से वहाँ की ज़मीने लाल नहीं हुई लेकिन उसका असर अब दीखने लगा है। गर्मी का हद से ज़्यादा बढ़ना, बारिश की कमी, जंगली जानवरों का आबादी क्षेत्रों में आना, इसके उदाहरण हैं।

Aravalli Destroyed
Courtesy: Down to Earth

मैं अमेज़न के जंगलों की बात नहीं करूँगा और न ही मैं अपने आप को इस लायक मानता हूँ। मैं अपना ही घर नहीं संभाल पा रहा तो दूसरों के घरों की चीज़ें क्या सही करूँगा! सभी उदाहरण यहीं के हैं। इसी अरावली के, जो हमें मानसून आते ही आकर्षित करने लग जाती है और हम उसपर कुदाल चलाने पहुँच जाते हैं।

हम अधिकारियों-अफसरों की बात नहीं करें तो बेहतर है। वे क्या समझेंगे! उन्हें तो AC के रिमोट मिले हुए हैं, कारें मिली हुई हैं और बंगलों में उनके निवास हैं। मैं, मेरे जैसे लोगों से बात कर रहा हूँ। जिनके मन में शहर और शहर की प्राकृतिक धरोहर के लिए प्यार तो है पर वे इसे कहीं दिल में दबाए बैठे हैं।

Aravalli Destroyed
Courtesy: Down to Earth

मैं आपको बता दूँ, जिस समय मैं यह आर्टिकल लिख रहा हूँ, मेरे एक-एक शब्द पर एक-एक पेड़ कट रहा होगा और उसकी चीख़ तक नहीं निकलेगी। हो सकता है, इस आर्टिकल के अंत तक यहीं आसपास एक और पैंथर को त्रेन्क्युलाइज़ कर, मार दिया जाए और फिर जश्न की तैयारियां शुरू कर दें। लेकिन उस पैंथर का कराहना, इन पेड़ों को काटती, ज़मीनों को चीरती मशीनों की चिन्गाड़ में दब जाए।

यह भी हो सकता है कि आने वाले समय में इन बेज़ुबानों की आवाज़ बनने वालों पर भी कुदाल चला दी जाए। लेकिन हक़ीकत की दहाड़ दूर तक जाने वाली है। वह आज नहीं निकलेगी लेकिन आने वाले कल में, अगली पीढ़ी के कानों में ज़रूर गूंजेगी और तब वे हमें दुत्कारेंगे और कहेंगे, “हमारे पूर्वज बहुत दोयम दर्जे के थे यार।”

Categories
Social

ईशा अम्बानी की शादी के चलते जियो स्पीड चौगुनी हो सकती है, शहर के युवाओं में ख़ुशी की लहर

उदयपुर की जनता में इन दिनों भयंकर कन्फ्यूज़न चल रहा है। ख़ासकर युवा-वर्ग बहुत ज्यादा प्रभावित है। उन्हें समझ नहीं आ रहा कि ‘राजस्थान विधानसभा चुनाव’ पर फ़ोकस किया जाए या अंबानी परिवार की लाडली की शादी पर।

7 दिसंबर को ‘विधानसभा चुनाव’ है और 8-9-10 दिसंबर को “ईशा अंबानी-आनंद पीरामल” के प्री-वेडिंग प्रोग्राम। शहर में दोनों ही अति-महत्वपूर्ण कार्यक्रम के चलते तैयारियां भी जोर-शोर से की जा रही है। जहाँ बड़े-बुज़ुर्ग प्रत्याशियों के जाति-गौत्र, उनके ब्राह्मण-दलित, अपर कास्ट-लोअर कास्ट होने का हिसाब लगा रहे हैं तो वहीं युवा-वर्ग नए कपड़ों, डीयो की आदि के मोलभाव में उलझा नज़र आ रहा है। कुछ तो इन तीन दिनों तक डबोक एअरपोर्ट पर ही रहने वाले है।

लेकिन इन सब के बीच कुछ जागरूक युवा भी है जो समस्याओं की लिस्ट बना रहे है। एक ने बताया कि कुछ मुद्दे बहुत ही गंभीर हैं जैसे:

  • उदयपुर में कई जगहों पर जियो ढंग से नहीं चलता। ढीकली रोड, दुर्गानर्सरी रोड, ओल्ड-सिटी के कुछ स्थानों पर जियो स्पीड 2g जितनी ही आ पाती है? इस वजह से उन्हें Airtel और Vodafone वालों से हॉटस्पॉट लेना पड़ता है।
  • पुराने शहर के युवाओं में आक्रोश ज्यादा है, वो कहते हैं हिरन मगरी वालों में ऐसा क्या है जो उनके 5 mbps की स्पीड आ जाती है? अब क्या हम ‘Game Of Thrones’ का नया सीजन डाउनलोड करने हिरन मगरी जायेंगे?
  • कुछ की जियो स्मार्टफोन को लेकर भी शिकायतें है।
  • कुछ के ये भी सवाल थे कि सरकार बदलते ही जियो के इन्टरनेट प्लान्स भी महंगे हो जायेंगे?

हमारे यह पूछने पर कि आप अपनी शिकायतें पहुचायेंगे कैसे? तो एक ने कहा हम लिफ़ाफ़े में 151 रुपयों की जगह एक कागज़ पर अपनी शिकायतें लिख कर देंगे और स्वागत-द्वार पर खड़े मुकेश अंबानी और नीता अंबानी को पकड़ा आयेंगे।

लेकिन जब हमनें उन दुखी युवाओं को बताया कि मुकेश अंबानी डबोक एअरपोर्ट पर आते ही उदयपुर के प्रभावित जगहों पर जियो स्पीड चौगुनी करने की घोषणा कर सकते हैं तो उनकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा।

उत्साहित जनता
घोषणा सुनते ही खुश हुए

कई युवा अलग-अलग टोली बनाकर शहर के अति-व्यस्तम चौराहों पर पटाखे फोड़ते हुए, जियो कॉलरट्यून पर नाचते हुए नज़र आए। इस प्रकार से जश्न मनाने से पार्टी कार्यकर्ताओं में उलझन की स्थिति पैदा हो गयी। उन्हें लगा चुनाव हुए नहीं, परिणाम आया नहीं, तो कौनसी पार्टी जीत का जश्न मना रही है? इन सब उधेड़बुन के बीच वो भी साथ में नाचने लग गए।

बाद में आपसी वार्तालाप करने से स्थिति साफ़ हुई, सारे कन्फ्यूज़न दूर हुए तब जाकर वो फिर से प्रचार-प्रसार में मशगूल हुए।

This article is just for some good tickling in your belly. Hope you Enjoy!

Categories
News

रेस्पेक्टेड भावी नेता, चुनाव से पहले उदयपुर की इन समस्याओं को भी सुन लेना, प्लीज़।

7 दिसम्बर, 2018 की सुबह होने में मात्र 6 दिन बचे है। वैसे दिसम्बर, 2018 की इस तारीख़ के बारे में बताने की ज़रूरत तो है नहीं, वो भी राजस्थान के लोगो को। वैसे ही काफ़ी शोरगुल हो ही रहा है। सोशल मीडिया पर भी और गली-कूंचो में भी। लेकिन फिर भी हम बताए देतें हैं, 7 दिसम्बर को राजस्थान विधानसभा चुनाव है। सभी पार्टियाँ और उम्मीदवार तन, मन और धन के साथ लगे हुए हैं। ऐसा जुनून हर पाँच साल बाद ही देखने को मिलता है।

rajasthan legislative assembly election 2018
photo courtesy: udaipurtimes

नुक्कड़ों पर सुबह शुरू होती है चाय और चक्कलस के साथ। एक हाथ गरमा-गरम चाय संभालता है तो दूसरा हाथ अख़बारों को फ्रंट पेज से टटोलना शुरू करता है और फिर शुरू होती है गुफ़्तगू जिसका कोई अंत नज़र नहीं आता।

chai aur akhbaar
photo courtesy: The Hindu

इस बार कौनसी सरकार आएगी? पिछली वाली ने कितना काम किया? क्या-क्या वादे पुरे किए, कितने अधूरे रह गए? विपक्ष का मैनिफेस्टो क्या है? जैसे प्रश्नों पर बहस होती है जो कि बताता है कि हमारे शहर का मतदाता जागरूक है। लेकिन हम इन प्रश्नों को मतदान केंद्र तक लेकर नहीं ले जाते हैं। अखबार के पन्ने पलटते-पलटते जब तक खेल-पृष्ठ आता है तब तक हम वो सभी बातें भूल चुके होते हैं और चाय के कप के साथ उन मुद्दो को भी दुकान पर ही छोड़ कर लौट आते हैं।

ऐसे ही कुछ प्रश्न है जो हम आपके सामने रखने जा रहे हैं। जिनका उत्तर आप ही को सोचना होगा। ये सभी वही प्रश्न है जो आप और हम हर दिन सोचते रहते हैं। हर दिन इन्ही मुद्दों को लेकर डाइनिंग टेबल पर बात होती है। उदयपुर का हर नागरिक यही सब बातें करता मिल जाएगा….

  1. शहर की सड़कें – इन दिनों अगर सबसे बड़ी समस्याओं में से कोई एक है तो वो है उदयपुर की सड़कों की हालत। आजकल सड़कें ऐसी लगती है जैसे फटे कपड़े को पैबंद लगा कर दुरुस्त कर दिया हो। पड़ोसी राज्य में अभी चुनाव हुए ही हैं। वहाँ के मुख्यमंत्री श्रीमान् शिवराज सिंह चौहान ने कहते हैं कि मध्यप्रदेश की सड़कें अमरीका से भी बेहतर है। अब उदयपुर वाले इतना भी नहीं मांग रहे वो तो बस इतना चाहते हैं कि इन सड़कों को फिर से पहली जैसी बना दिया जाए, जब बाहर का टूरिस्ट आकर कहता था कि सड़कें हो तो उदयपुर जैसी।
  2. उड़ती धूल-चिपकती मिट्टी – इसका सीधा कनेक्शन ऊपर वाली समस्या से है। उसमें सुधार आएगा तो इस से भी अपने आप निजात मिल ही जाएगी।
  3. बढ़ता ट्रैफिक जाम – इसमें हम जल्दी ही देशभर में नाम रोशन करने वाले है। दुर्गा-नर्सरी रोड, ओल्ड सिटी, फ़तेहसागर और लगभग सभी बड़े चौराहों का यही हाल है। सड़कें वैसी की वैसी, लोग बढ़ते गए और व्यवस्थाएं बिगड़ती चली गयी।
  4. गंदी होती झीलें – जिनकी बदौलत उदयपुर का नाम विश्वभर में हुआ है हम उसी को गन्दा करने में लगे हुए हैं। जिसकी वजह से उदयपुर टॉप-10 शहरों में आया उसी की हत्या करने में मज़ा आ रहा है। सोचकर देखिए, आने वाले कुछ सालों में थोड़ी बहुत साफ़ बची झीलों में तैरता कचरा ही नज़र आने लगा, तब? झीलों में गिरते सीवरेज के पानी से झीलों में बदबू आने लगेगी, तब? ना गणगौर घाट पर लोग आएँगे, ना ही फतेहसागर किनारे शामें बीता करेगीं, ना कोई टूरिस्ट आएगा ना ही आसपास की दुकानों पर लगता मेला देखने को मिलेगा… 2 मिनट का टाइम लेकर सोचिएगा ज़रूर, क्या ऐसे भविष्य की कल्पना हम कर सकते हैं?
  5. शहर में घूमते आवारा पशु – ये आज की समस्या नहीं है। बावजूद इसके, अब तक किसी भी सरकार ने, मंत्रियों ने, उदयपुर के नागरिकों द्वारा चुने हुए प्रत्याशियों ने इस समस्या को गंभीरता से लिया है। हर बार यही कहा जाता है काईन हाउस बनाये जायेंगे। इन्हें वहाँ शिफ्ट किया जायेगा। लेकिन ये समझ नहीं आता अगर ये शिफ्ट कर दिए गए हैं तो वापस शहर में कैसे आ जाते हैं? आए दिन ऐसी खबरें आती रहती है, फलाना टूरिस्ट को सांड ने मारा लेकिन हम ‘ओ हो’ कर भूल जाते है। किसी दिन हम में से कोई टारगेट बन गया तब कोई और ‘ओ हो’ कर रहा होगा। मुद्दा गंभीर है, हॉस्पिटल पहुँचाने वाला है, हल्के में मत लीजिएगा।

ये तो हो गए वो मुद्दे जिससे शहर की जनता बहुत परेशान है और बात करनी ज़रूरी थी, लेकिन लिस्ट लम्बी है –

  1. सफ़ाई के मामले में कई हद तक सुधार आया है लेकिन गुंजाइश हमेशा रहती है।अब भी कचरे के ढेर नज़र आ ही जाते हैं।
  2. कई जगह दिन में रोड लाइट्स जलती है लेकिन रात में वही बंद हो जाती है।
  3. चेतक सर्किल जैसे बड़े चौराहों की ट्रैफिक लाइट्स कई महीनो से बंद पड़ी है।
  4. झीलें सूखने लगी है। ऐसा वादा किया था कि अब कभी झीलें नहीं सूखेगी। वो पूरा होता नज़र नहीं आ रहा।
  5. पार्किंग एक बहुत बड़ी समस्या है। ट्रैफिक और टूरिस्म के बढ़ने की वजह से अब ना सिर्फ लोकल बल्कि टूरिस्ट भी पार्किंग की समस्या से परेशान है।
  6. चौराहों और पार्कों में लगे फाउंटेन में अब पानी नहीं गिरता। इस वजह से उन जगहों पर सेल्फी लेने की दर में गिरावट आई है।

ये कुछ गंभीर समस्याएं हैं जिनकी वजह से आप और हम परेशान हैं। चुनाव में अब सिर्फ़ 7 दिन बचे हैं। ये हमारी लिस्ट थी आप इनमें अपनी कुछ और समस्याएं/मुद्दे/प्रश्न जोड़ या घटा सकते हैं।

after voting
photo courtesy: redcarpetvoter

याद रखिए – इस चुनावी शोर के बीच अपनी आवाज़ बुलंद रखना। क्योंकि मेरे और आपके मत पर ही निर्भर करेगा कि विजयी नेता हमारी आवाज़ को लोकतंत्र के उस मंदिर तक पहुँचाता है या नहीं?

rajasthan chunaav - vote
म्हारो कहनो, वोट देनो photo courtesy: newsd

जय लोकत्रंत जय भारत। 

Categories
People

उदयपुर के उस लड़के की कहानी जिसके सामने लन्दन, रूस और अमेरिका के डांसर्स भी पानी भरते थे.

हमनें एक कड़ी शुरू की थी जिसमें हमनें हमारे शहर के उन लोगों के बारे में लिखना शुरू किया था जिन्होंने हमारे शहर का खूब नाम किया है, लेकिन अब हम उन्हें भुला चुकें हैं या फिर कुछ ही लोग हैं जो उन हस्त्तियों को जानते हैं, जैसे वैज्ञानिक दौलत सिंह कोठारीराहुल सिंह और ऐन्द्रिता रे.

अब इसी कड़ी में आज हम उदयपुर की एक ऐसी हस्ती के बारे में आपको बताने जा रहे है जिनके इशारों पर यूरोप नाचा करता था. उसकी धाक ऐसी थी कि रूस के कलाकार उनके साथ काम करना चाहते थे. जो बाद में इंडियन फिल्म इंडस्ट्री यानि के बॉलीवुड का पहला कोरियोग्राफर बना. उनका नाम है, उदय शंकर. ये वही उदय शंकर हैं जिनके स्टूडेंट्स गुरुदत्त साहब, ज़ोहरा सहगल, शांति बर्धन आदि रह चुकें हैं. उम्मीद करता हूँ कुछ लोगों की यादों में यह पढ़ते ही एक धुंधला चेहरा उभरने लगेगा और वो जो अब तक इन्हें नहीं जानते थे आर्टिकल पढ़ने के बाद उनका नाम गूगल कर रहे होंगे.Uday Shankar

आइये देखें कैसे उदयपुर की गलियों में दौड़ते ‘उदय’ एक दिन ‘द ग्रेट उदय शंकर’ बन गए :-

बचपन :-Uday Shankar

उदयपुर शहर और दिसम्बर की ठण्ड वैसे भी फेमस है. लेकिन सन् 1900 की दिसम्बर ऐतेहासिक होने वाली थी. 8 दिसम्बर, 1900 के दिन शहर के ही एक बंगाली परिवार श्री श्याम शंकर चौधरी के घर एक बच्चे का जन्म हुआ. नाम रखा गया ‘उदय’. कोई नहीं जनता था कि इस बच्चे के जन्म के साथ ही चौधरी परिवार का भी उदय होने वाला था. श्याम शंकर चौधरी, झालावाड़ रियासत में बैरिस्टर थे. लेकिन परिवार उदयपुर रहता था.

चौधरी परिवार मूलतः नरेली से था, जो कि विभाजन के बाद अब बांग्लादेश का हिस्सा हैं. इन्हें नवाबों ने ‘हरचौधरी’ की उपाधि दी हुई थी लेकिन ये सिर्फ़ ‘चौधरी’ ही लगते थे.

Uday_Amala
उदय शंकर अपनी पत्नी अमला के साथ

पढ़ाई-लिखाई :-uday shankar dance

पिता श्याम शंकर चौधरी की नौकरी की वजह से परिवार को कई जगह रहना पड़ा. इस वजह से उदय शंकर की तालीम भी एक जगह न होकर अलग-अलग शहरों में हुई जैसे नस्रातपुर, गाज़ीपुर, बनारस और झालावाड़ आदि. इस दौरान गाज़ीपुर में उन्होंने अपनी ड्राइंग एंड क्राफ्ट टीचर, अम्बिका चरण मुखोपाध्याय से म्यूजिक और फोटोग्राफी सीखी. स्कूल खत्मः हो जाने के बाद 18 बरस की उम्र में फाइन आर्ट्स पढनें के लिए बम्बई (अब मुंबई) के जे.जे. स्कूल ऑफ़ आर्ट्स में दाख़िला ले लिया. 2 साल बाद वे लन्दन चले गए और रॉयल कॉलेज ऑफ़ आर्ट्स में एडमिशन ले लिया. वहां उन्होंने सर विलियम रोथेंस्टें के मार्गदर्शन में पेंटिंग की बारीकियां सीखीं. फ्रेंच गवर्मेंट द्वारा स्कॉलरशिप मिलने बाद वे आर्ट की एडवांस फॉर्म पढनें के लिए रोम चले गए.Uday-Shankar1

उदय शंकर के ‘उदय’ होने की शुरुआत :-uday shankar 5

इसकी शुरुआत लन्दन से ही हुई. जब उदय शंकर की मुलाक़ात दुनिया की सबसे बड़ी बैले डांसर (ballet dancer) ‘एना पव्लोवा’ से हुई. ये तब की बात है जब उदय शंकर रॉयल कॉलेज को आर्ट्स में पढ़ ही रहे थे. रशियन सेलेब्रिटी उन दिनों आर.सी.ए. में अपने ग्रुप में कुछ इंडियन लड़कों-लड़कियों की खोज में आई हुई थी. वहां किसी ने उनको उदय शंकर के बारे में बताया. हालाँकि उदय शंकर तब तक डांस और डांस फॉर्म्स से कोई लेना-देना नहीं था. लेकिन वे जिनिअस माने जाते थे. उन्हें समझ ज़रूर थी. उसकी वजह ये थी उनका भारत के लोक न्र्त्यों और नाटकों को करीब से देखना. इस वजह से एना पव्लोवा भी उनकी फेन हो गयी और उदय शंकर को अपने ग्रुप में शामिल कर लिया. दो क्रिएटिव माइंड और दो बिलकुल अलग कल्चर/फॉर्म्स जब एक साथ स्टेज पर उतरी तो लन्दन और अमेरिका जैसे देशों में तहलका मचना शुरू हो गया. लम्बे समय तक चला ये कोलैबोरेशन बहुत फेमस हुआ. इसके बाद उदय शंकर ने पेरिस में अपना एक अलग ग्रुप खोल लिया.Uday_Shankar_and_Ana_Pavlova_in_'Radha-Krishna'_ballet,_ca_1922

उदय शंकर का भारत लौटना :-uday shankar04

सन् 1929 में उन्होंने भारत आने का निश्चय किया और अपना खुद का एक ग्रुप खोलने की सोची. सन् 1938 में अल्मोड़ा, उत्तर प्रदेश में उन्होंने स्कूल खोला. जो आगे चलकर उदय शंकर इंडियन कल्चर सेंटर के नाम से फेमस हुआ. इस दौरान उन्होंने अपने ग्रुप के साथ कई परफॉरमेंस दीं जो न सिर्फ़ इंडिया में बल्कि वेस्टर्न कन्ट्रीज में भी पोपुलर हुई. वो अपने स्कूल में कई फेमस गेस्ट फेकल्टीज़ भी बुलाते थे. इसी स्कूल के नोटेबल अलुमिनी की बात करें तो उनमें शामिल है, हिंदी सिनेमा के महान डायरेक्टर/एक्टर ‘गुरुदत्त साहब’ और महान अदाकारा ‘ज़ोहरा सहगल’.

Uday_Shankar_Ballet_Troupe,_ca_(1935-37)
उदय शंकर अपने ग्रुप के साथ

रबिन्द्रनाथ टैगोर और उदय शंकर :-

नोबल प्राइज़ विनर ‘श्री रबिन्द्रनाथ टैगोर’ उदय शंकर के बहुत बड़े फेन रहे हैं. वो उनकी इतनी इज्ज़त करते थे कि जब उदय शंकर भारत लौट रहे थे तो उनके स्वागत के लिए टैगोर खुद पहुँच गए. एक और बात रबिन्द्रनाथ टैगोर ने ही उदय शंकर को भारत में स्कूल खोलने के लिए कहा ताकि यहाँ के लोग उनसे सीख सकें.

कुछ और बातें :- 

uday shankar and alice boner
ऐलिस बोनेर और उदय शंकर
  • सन् 1931 में उदय शंकर की ऐलिस बोनेर से मुलाकात हुई, ऐलिस बोनेर स्विस पेंटर और स्कलप्चर आर्टिस्ट थे जिन्हें उदय शंकर के साथ पुरे यूरोप में इंडियन डांस अकादमी खोलने का श्रेय जाता है.
  • महान सितार वादक पंडित रवि शंकर, उदय शंकर के सबसे छोटे भाई हैं.

    Uday shankar_Ravi shankar_1970
    भाई उदय शंकर को तिलक लगाते पंडित रवि शंकर
  • उदय शंकर ने भारत की पहली हिंदी फिल्म ‘कल्पना’ बनाई जिसमें क्लासिकल डांसर्स लीड एक्ट्रेस थी.uday shankar 05
  • सत्यजीत रे और उदय शंकर ने साथ मिलकर डॉक्युमेंट्री भी बनाई है.
  • उदय शंकर को पद्म विभूषण के अलावा संगीत नाटक अकादमी और संगीत नाटक अकादमी फेलोशिप जैसे ढेर सारे अवार्ड्स और सम्मान मिले हैं.
  • उदय शंकर की बेटी ममता शंकर भी बहुत अच्छी डांसर के साथ-साथ एक्ट्रेस भी है, वो खुद एक डांस टीचर है और अपने पिता की लिगेसी को ज़ारी रखे है.Uday_shankar03

uday shankar4

Categories
News

मिठाइयाँ बांटो – दुनिया के सबसे अच्छे शहरों में उदयपुर को तीसरा स्थान

अब तो ऐसी ख़बरों की उदयपुर वालों को आदत हो गयी है। फिर भी बधाइयाँ तो बनती है। इसके हक़दार हैं हम सभी उदयपुरवाले। Travel & Leisure, एक ट्रेवल मैगज़ीन है जो हर साल दुनिया भर के शहरों का सर्वे करती है और उनमें से चुनिन्दा शहरों की रैंकिंग हम तक पहुँचाती है। इस बार T+L (Travel & Leisure) ने दुनिया के टॉप 15 शहरों की रैंकिंग निकली है। इसमें उस शहर का कल्चर, आसपास की स्थिति, खाने-पीने से लेकर शौपिंग तक यानि की ओवरआल वैल्यू को परखा जाता है। ये सभी 15 शहर दुनिया भर से उठाये हैं जिसमें उदयपुर ने बाजी मारकर 3rd रैंक हासिल की है. यह मैगज़ीन अपने रीडर्स से वोटिंग करवाती है।

ये वही मैगज़ीन जिसनें उदयपुर को 2009 में दुनिया का सबसे बेहतरीन शहर घोषित किया था। इस बार भी टॉप फिफ्टीन में इंडिया से सिर्फ़ उदयपुर का ही नाम आया है। दिल्ली और मुंबई जैसे टूरिस्ट डेस्टिनेशन भी पीछे छूट गए हैं।

Sheesh Mahal overlooking Lake Pichola
Photo By: The Leela Palace

उदयपुर न सिर्फ़ यहाँ पर बने पैलेस, होटल्स, म्यूजियम और आर्किटेक्चर की वजह से फेमस है इन सबके अलावा प्राकृतिक रूप से भी उदयपुर धनवान है।

MMCF के चेयरमैन और मैनेजिंग ट्रस्टी, श्रीजी अरविन्द सिंह जी मेवाड़ का कहना है कि, “ये सभी शहरवासियों के लिए गर्व की बात है। मैं सभी गवर्मेंट एजेंसी और टूरिज्म डिपार्टमेंट को बधाई देना चाहता हूँ जिनके लगातार प्रयासों से उदयपुर इस मुकाम को हासिल कर पाया है।”

udaipur
Photo Courtesy: Trvl-media

हर साल बढ़ते टूरिस्ट इस बात की गवाही देते है कि वाक़ई उदयपुर ये मुकाम हासिल करने योग्य है। उदयपुर न सिर्फ़ देसी यहाँ तक की विदेशी पर्यटकों की पहली चॉइस बनता जा रहा है। इस बात का सबूत  है ये आंकड़े :-

सन् 2017 में मई  महीने तक कुल देसी पर्यटकों की संख्या 2,74,742 थी वहीँ 2018 में बढ़कर 3,11,442 हो गई। अगर विदेशी पर्यटकों की बात की जाए तो लगभग 89,000 के मुकाबले सन् 2018 में लगभग 96,000 विदेशी पर्यटक अब तक उदयपुर घूमने आ चुके हैं।

udaipur
Photo Courtesy: d1ljaggyrdca1l

इनके पीछे कई कारण है जैसे झीलों का भरे रहना, टूरिस्ट डिपार्टमेंट और गवर्मेंट का लगातार इस सेक्शन पर फोकस्ड रहना। सिटी पैलेस म्यूजियम का खुद आगे चल कर इनिशिएटिव लेना, म्यूजियम कल्चर को बढ़ावा देना वगैरा-वगैरा।

लेकिन अब जिम्मेदारी बढ़ जाती है। इतने से खुश होने वाली बात नहीं है। सुधार की गुंजाइश हमेशा बनी रहती है। हमारी और आपकी कोशिश यही रहेगी कि सन् 2009 का इतिहास दुबारा दोहराया जाए। 🙂

T+L की रैंकिंग देखने के लिए इस लिंक को क्लिक कर सकते है :- https://www.travelandleisure.com/worlds-best/cities#palace-and-lake-pichola-udaipur-rajasthan-india-03

 News Courtesy: NDTV Beeps

Categories
Udaipur Speaks

पिपलिया जी – वह गाँव जहाँ कभी फूल खिला करते थे, अब चारो-ओर काँच के टुकड़े मिला करते हैं।

एक इंसान अपनी ज़रूरतें/इच्छाएं पूरी करने के लिए जब दायरा बढ़ाता है, तब-तब इस धरती पर कांड होता है. कभी बहुत ही साफ़-सुथरा जन्नत सा एहसास दिलाने वाला ‘पिपलिया जी’ गाँव आज वहाँ तरह-तरह की ब्रांडेड पीकर फैंकी गयी बोतलों के काँच से अटा पड़ा है. हालत ये है कि वहाँ बैठो तो मुमकिन है वहाँ फैला काँच उसके वहाँ होने का सबूत ज़रूर देगा. चुभकर.

peepliya ji, udaipur
Photo By: Kunal Nagori

यह सबकुछ शुरू होता है शहर से ही. खुद ही के बनाए शहरी जंगल से ऊब जाने की स्थिति में लोग आसपास की जगहों में मदर नेचर/ प्रकृति की गोद, जो भी कहना चाहो, ढूढ़ने निकल पड़ते है. इसमें कोई बुराई नहीं है. लेकिन हम इंसानों की फ़ितरत है कि जिसे सबसे ज़्यादा चाहते है उसे ही सबसे ज़्यादा जाने-अनजाने में नुकसान पहुँचा देते है.

Peepliya ji
Photo By: Kunal Nagori

किसी भी नए पर्यटन स्थल/टूरिस्ट पॉइंट के उभरने से स्थानीय लोगों को फ़ायदा पहुँचता है, बेशक. लेकिन उससे होने वाले नुकसान भी उन्हें ही उठाने पड़ते हैं. क्योंकि हम तो ‘मनोरंजन कर’, ‘फील कर’, ‘सेल्फी लेकर’, ‘खा-पी कर’ निकल लेते हैं, पर इन सब की निशानी छोड़ जाते हैं.

Peepliya ji
Photo By: Kunal Nagori

मानाकि ये उमंगो भरी उम्र है पर इसका मतलब ये तो क़तई नहीं निकलता की इस उम्र को बेफिक्री और नाशुक्री के साथ जिया जाए. हमें इतना ख़याल तो रखना ही चाहिए कि कम से कम वहाँ रहने वाले लोगों को हमारी वजह से कोई परेशानी न उठानी पड़े.

Peepliya ji
Photo By: kunal Nagori

ऐसा नहीं है कि उन्हें हमारी मौजूदगी से कोई परेशानी है. वो बाक़ायदा खुश है की उन्हें अब कमाने के लिए शहर/मंडी नहीं आना पड़ता. यहीं बैठे-बैठे दिहाड़ी का जुगाड़ हो जाता है.

peepliya ji
Photo By: Krishna Mundra

वो मासूम है, हमारी तरह चालाक नहीं है (आप मानो या न मानो लेकिन सच है), वो सन् 2025-50 की नहीं सोचते. ये गाँव वाले आज में जीते हैं. और हम इन्हें भविष्य के धुंधले, बादलों के समान सपने दिखा रहे हैं. हम इन गाँवों को शहर बना रहे हैं और गाँव-वालों को शहरी.

Categories
Social

वह रोती रही बिलखती रही… लेकिन उसकी बात सुनने वाला कोई नहीं था…

समाज बहुत राजनैतिक जगह है। अगर आप समाज में रह कर खुद को ज़िंदा रख पा रहे हैं तो यकीन मानिए आप बहुत ही अच्छे राजनेता हो। हम सभी बहुत अच्छे राजनेता है। क्योंकि हम इस समाज रूपी राजनीति में खुद को बचाने में सफ़ल रहे हैं।

Mob lynching
प्रतीकात्मक चित्र

लोग कहते है समाज ने हमें बांधे रखा है इंसानों को बचाए रखा है। पर किस कीमत पर? इस कीमत पर कि एक माँ को उसके बच्चे से अलग कर दिया गया, केवल शक़ के आधार पर?

पुलिस को जानकारी दिए बिना, किसी संस्थान को बताए बगैर, उन 2-4-8-10-100-200 लोगो की भीड़ ने आपसी बात कर उस औरत को ‘बच्चा-चोर’ घोषित कर दिया और फिर पीट-पीटकर उसके बच्चे से अलग कर दिया और भी न जाने कितनी ही और यातनाएं दी होगी।

भीड़ को एक पल भी इस बात का एहसास नहीं हुआ होगा कि वह औरत बच्चे के नाम को चीख़ कर रो रही है, एक बार भी यह नहीं महसूस हुआ कि बच्चा अपनी माँ से बिछड़ कर किस क़दर रो रहा है?

Mob lynching
मामले की संवेदनशीलता देखते हुए आर्टिकल में प्रतीकात्मक चित्र यूज़ किये गए हैं।

ये है हमारा समाज और यही हक़ीक़त है इस समाज की। जो कुछ लोग असल मायनों में ‘समाज’ को बचाने में लगे हैं वो सिर्फ़ ‘चारे में राई’ के समान है। उन्हें अंग्रेजी में एक्ससेप्शन कहा गया है। नहीं तो अब तक हमनें इंसानो को कभी का लड़-झगड़ कर ख़त्म कर दिया होता।

पति के हाथों गर्म जलती लकड़ीयो से कई बार दागने, उसके हाथों पीटने के बावजूद पीहर वालों ने वहां से भागी ‘कौशल्या’ को फिर ससुराल भेज दिया। आख़िरकार तंग आकर वो ‘पागल-बच्चा चोर’ बच्चे को कमर से बांधे मध्य-प्रदेश के सतना जिले से उदयपुर आ गई। लेकिन इस दौरान भीड़ ने ऊपर वाली लाइन में लिखी सामाजिक गाली का उपयोग करते हुए उससे बच्चा छीन लिया। इतना सबकुछ होने के बाद भी हमारे द्वारा बसाए समाज ने उसे कुछ दिया तो वो थी गाली – घूरती नज़रें – पीटते हाथ।

परेशां, भागती-दौड़ती जैसे तैसे अपने बच्चे को उन लोगो से बचाने में सफ़ल हुईं। लेकिन एक दिन थक-हारकर उसनें आत्महत्या का फ़ैसला ले लिया। क्योंकि ये उस राजनीति के राजनेता नहीं थी।

तभी 2-4 लोग, ये वो भीड़ थी, ‘चारे में राई के समान’ वाली। उन लोगो ने तुरंत दोनो को वहां से उठाया। cws और आशाधाम ने उसके शरीर पर लगे दाग़ भी देखे।

इस तरह की घटनाएं बहुत तेजी से बढ़ रही है चाहे वो आसाम की हो या महाराष्ट्र-पश्चिम बंगाल की या कहीं की भी हो। पूरा भारत इस तरह की घटनाओं से झकड़ा जा रहा है। यह घटना हमारे लिए एक सबक थी।

मैं यह सब लिखने से पहले आप लोगों के सामने एक प्रश्न रखना चाह रहा था लेकिन अब जब आप इस आर्टिकल को पढ़ कर इसके समाप्ति की ओर होंगे तब-तक उस प्रश्न ने आपकी आंखों के सामने एक पेंडुलम की तरह झूलना शुरू कर दिया होगा।