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टीटी ने सीट नहीं बदली, उपभोक्ता मंच ने रेलवे से 24,000 रुपये दिलवाए।

किसी भी देश का आदर्श नागरिक वह व्यक्ति होता है जो जागरूक हो, अपने कर्तव्यों को लेकर। कोई भी सरकार या तंत्र भी तभी आदर्श माना जाता है जब वो अपने नागरिक या उपभोक्ता के अधिकारों का सम्मान और रक्षा करें। लेकिन जब दोनों के बीच की केमेस्ट्री गड़बड़ा जाती है तब ऐसी ख़बरों का जन्म होता है। ये बात कहीं गीता में नहीं लिखी है लेकिन ऐसा हमारा मानना है।

बात है सन् 2014 की। लेकिन आप सोच रहे होंगे कि 2014 की बात अब क्यों बताई जा रही है? तो उसकी वजह हमारी ‘न्याय-प्रणाली’ है पर ये दूसरा विषय है।

कहानी कुछ यूँ है कि अभिषेक भंसाली (बेदला रोड निवासी), सन् 2014 की सर्दियों में अजमेर से उदयपुर हॉलिडे स्पेशल के ए.सी. चेयर कार में सफ़र शुरू करने वाले थे। रेलवे टिकेट ऑनलाइन करवाया हुआ था। लेकिन ज्यों ही वो अपनी सीट नंबर 66 पर गए तो उन्हें सीट टूटी हुई मिली। कुछ देर एडजस्ट करने के बाद उन्होंने टीटी से सीट बदलवाने की गुजारिश की तो टीटी ने इग्नोर कर दिया। कुछ देर बाद फिर से बोलने पर भी करवाई नहीं की तो अभिषेक भंसाली ने टीटी से कंप्लेंट रजिस्टर माँगा तब टीटी ने जवाब दिया कि अगले स्टेशन पर उतरकर कंप्लेंट कर देना। सीट बैठने लायक नहीं होने की वजह से अभिषेक भंसाली को पुरे सफ़र के दौरान खड़े रहना पड़ा।

उसके बाद जो हुआ उससे हम सभी को कुछ सीखना चाहिए। अभिषेक भंसाली ने जिला उपभोक्ता मंच पर अपनी शिकायत दर्ज करवाई। जिला उपभोक्ता मंच ने रेलवे से 4000 रुपये पेनेल्टी के रूप में अभिषेक को देने को कहा। हालाँकि अभिषेक सिर्फ इतने से खुश नहीं हुए और वो इस केस को राज्य उपभोक्ता मंच लेकर गए। मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए राज्य उपभोक्ता मंच ने उत्तर-पश्चिम रेलवे को राशि 4000 से बढ़ाकर 24,000 रुपये करने को कहा। 

यह बात हमें माननी चाहिए कि भले अभिषेक भंसाली को न्याय मिलने में देरी हुई लेकिन उन्हें अपने अधिकार पता थे। उन्हें ये भी पता था, अपने अधिकारों की रक्षा कैसे की जाती है। ये आपके हमारे लिए एक सबक है जिसे सिखने की ज़रूरत है। हम अक्सर ऐसी बातों को जाने देते है और बेवजह परेशां होते रहते है। jago grahak jaago

एक बात ध्यान रखने योग्य है। हम लोगो से तंत्र है, तंत्र से हम लोग नहीं। 🙂 

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कटाक्ष : #missingschooldays जैसे हैशटैग डालने वालो को अब स्कूल की याद नहीं सताएगी।

बारहवी की परीक्षा चल रही है। परीक्षा ख़त्म होते ही कॉलेज की दौड़-भाग शुरू हो जाएगी। कुछ लड़के-लड़कियां अभी से ही स्कूल को मिस करने लग गए है, लेकिन कुछ ऐसे भी है जो परीक्षा समाप्ति पर मिस करना शुरू करेंगे, उन्हें जैसे ही ये कॉन्फिडेंस आ जायेगा कि ‘हाँ… बेड़ा पार हो जायेगा’ और मिस करना शुरू कर देंगे।

लेकिन अब स्कूल की याद नहीं सताएगी। अगर याद नहीं सताएगी तो बहुत मुमकिन है कि सोशल मीडिया पर #missingschooldays, #alreadymissingschooldays जैसी आपदाएं भी नहीं नज़र आएगी। हमारी सरकार ने हमेशा हमारे दुःख-दर्द को सुना है और उसे कम करने की कोशिश की है। इस बार भी हमारी यह हैशटैग वाली पुकार सुन ली गयी है और ऐसा तोहफ़ा दिया है कि सुन लोगे तो खुशी से नाच उठोगे।

अब कॉलेज में भी स्कूलों की तरह ड्रेसकोड रहेगा। लड़कियां सलवार-कमीज़-दुप्पटा पहनी नज़र आएँगी तो लड़के पैंट-शर्ट-बेल्ट-टाई पहने नज़र आएँगे। राजस्थान के सभी गवर्मेंट कॉलेज के लिए यह आदेश लागू हो सकता है। अब तक तो शायद आपने नाचना भी शुरू कर दिया होगा।

dress code for college
photo courtesy: College dekho

आइये हम साथ में मिलकर इसके फायदे-नुकसान की बात करते है :

इसके क्या फायदे है –

  1. रोज-रोज के नए कपड़े पहनने की झंझट से निजात मिलेगी।
  2. “उसने तो वैसा पहना है, मैंने तो ऐसा पहना है” जैसा राष्ट्रिय मुद्दा ख़त्म हो जाएगा। 
  3. सप्ताह की दो ड्रेस गन्दी होगी। धोने-धुलवाने की माथापच्ची नहीं रहेगी।
  4. स्कूल की याद नहीं सताएगी।
  5. सरकार ने इतना कर ही दिया है, फिर भी स्कूल की याद आती है तो मेरी एक सलाह मान लीजिए। गले में प्लास्टिक की लटकने वाली बोतल और शर्ट की ऊपर वाली जेब पर पिन से रुमाल बांध देना। मैं गारंटी देता हूँ कॉलेज पूरी तरह से स्कूल लगने लगेगा। 

इसके क्या नुकसान है –

  1. अलमारी में पड़ी नयी ड्रेस वही पड़ी रह जाएगी। ड्रेस बिना पहने छोटी और टाइट हो जाने के आसार बढ़ जाएँगे।
  2. नए फैशन को फॉलो करने और दूसरों को दिखाने के लिए कोई प्लेटफॉर्म नहीं बचेगा।  
  3. शो-ऑफ करने वाले शो-ऑफ नहीं कर पाएँगे। उनकी सेहत पर विपरीत असर पड़ सकता है।
  4. हर क्लास के सलमान, शाहरुख़, कटरीना… भीड़ में खो से जाएँगे।
  5. जिसका बर्थडे होगा वो नयी ड्रेस पहनकर कॉलेज नहीं आ सकेगा। एक्लीयर्स/पारले जी की चॉकलेट बांटकर ही दुसरे छात्र-छात्राओं को दिखाना होगा कि आज उसका बर्थडे है।

 अब थोड़े सीरियस हो जाते है –

  1. हम सभी जानना चाहते है कि ड्रेस कोड कैसे हमारी पढाई में सुधार ला सकता है?
  2. हम सभी जानना चाहते है कि क्या ड्रेस कोड हमारा प्लेसमेंट करवाएगा?
  3. हम सभी जानना चाहते है कि ड्रेस कोड, अनुशासन कैसे ला सकता है?
  4. हम यह भी जानना चाहते है कि क्या ड्रेस कोड की वजह से हमारे कॉलेज के इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार आ सकता है?
  5. हमें यह भी जानना है कि क्या ड्रेस कोड कॉलेज में खाली पड़ी लेक्चरार की सीटों को भर पाएगा? उनकी कमी की पूर्ति कर पाएगा?
  6. हम अंत में यह जानना चाहते है कि क्या ड्रेस कोड हमारे भारतीय एजुकेशन सिस्टम की कमियों में सुधार ला पाएगा?

धन्यवाद

– एक छात्र

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श्रीनाथजी के दाढ़ी में लगे हीरे के पीछे की दिलचस्प कहानी

नाथद्वारा, श्रीनाथ जी के मंदिर की वजह से पुरे विश्वभर में अपनी एक अलग छवि रखता है। हर साल लाखो-करोड़ो लोग श्रीनाथ जी के दर्शन हेतु नाथद्वारा आते है। दर्शन के दौरान श्रद्धालु श्रीनाथ जी की दाढ़ी में लगे हीरे को भी देखना पसंद करते है। लेकिन उस हीरे के दाढ़ी में होने के पीछे की क्या कहानी है? shreenathji

हम बताते है…

नाथद्वारा में हर साल धुलंडी पर एक सवारी निकलती है, नाम बहुत दिलचस्प है ‘बादशाह की सवारी’। यह सवारी नाथद्वारा के गुर्जरपुरा मोहल्ले के बादशाह गली से निकलती है। यह एक प्राचीन परंपरा है जिसमें एक व्यक्ति को नकली दाढ़ी-मूंछ, मुग़ल पोशाक और आँखों में काजल डालकर दोनों हाथो में श्रीनाथ जी की छवि देकर उसे पालकी में बैठाया जाता है। इस सवारी की अगवानी मंदिर मंडल का बैंड बांसुरी बजाते हुए करता है।

Badshah ki sawaari
photo courtesy : patrika

यह सवारी गुर्जरपुरा से होते हुए बड़ा बाज़ार से आगे निकलती है तब बृजवासी सवारी पर बैठे बादशाह को गलियां देते है। सवारी मंदिर की परिक्रमा लगाकर श्रीनाथ जी के मंदिर पंहुचती है, जहां वह बादशाह अपनी दाढ़ी से सूरजपोल की सीढियाँ साफ़ करता है जो कि लम्बे समय से चली आ रही एक प्रथा है। उसके बाद मंदिर के विभाग-प्रमुख बादशाह को पैरावणी भेंट करते है। इसके बाद फिर से गालियों का दौर शुरू होता है, मंदिर में मौजूद लोग बादशाह को खरी-खोटी सुनते है और रसिया गान शुरू होता है। तब आसपास का माहोल ऐसा हो जाता है मानो मथुरा-वृन्दावन में होली खेल रहे हो।

इस सब के पीछे की वजह –

नाथद्वारा में मान्यता है कि जब औरंगजेब श्रीनाथ जी की मूर्ति को खंडित करने मंदिर में आया था तो मंदिर में पंहुचते ही अँधा हो गया था। तब उसने अपनी दाढ़ी से मंदिर की सीढियाँ साफ़ करते हुए श्रीनाथ जी से विनती की और वह ठीक हो गया। उसके बाद औरंगजेब ने बेशकीमती हीरा मंदिर को भेंट किया जिसे हम आज श्रीनाथ जी के दाढ़ी में लगा देखते है। 

Badshah ki sawaari, Beawar
photo courtesy : the baltimore sun darkroom

बस इसी घटना को हर साल धुलंडी पर ‘बादशाह की सवारी’ निकालकर याद किया जाता है। यह सवारी नाथद्वारा के अलावा ब्यावर, पली और अजमेर में भी निकली जाती है।

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शिल्पग्राम में ‘ऋतू वसंत’, होगा क्लासिकल डांस और म्यूजिक फेस्टिवल

अगर आप उदयपुर में रहते हो तो भाग्यशाली हो। भाग्यशाली इसलिए क्योंकि यह शहर आपको कभी यह सोचने पर मजबूर नहीं करेगा कि ‘कुछ है नहीं करने को तो क्या किया जाए’? यह शहर त्योहारों और उत्सवो का शहर है। शायद ही साल का कोई ऐसा एक महिना भी होगा जो बिना किसी त्यौहार, उत्सव या मेले के जाता हो।

ऐसा ही एक और उत्सव मार्च में आने वाला है, ‘ऋतू वसंत’। जिसे पश्चिमी क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र आप लोगो के सामने लेकर आ रहा है। शिल्पग्राम इस फेस्टिवल को होस्ट करेगा। यह एक तीन दिवसीय फेस्टिवल है जिसमें देश के ख्यातनाम, विश्व प्रसिद्ध शास्त्रीय कलाकारों की प्रस्तुतियां होंगी। यह सभी प्रस्तुतियां शाम 7 बजे से शुरू होंगी। इस दौरान पद्म विभूषण सम्मानित डॉ सोनल मानसिंह भी आएगी।

कुछ इस तरह रहेगा ‘ऋतू वसंत’ –

dr. sonal mansingh at ritu vasant, shilpram
photo credit: shilpgram

9 मार्च पहला दिन: पद्म विभूषण सम्मानित डॉ सोनल मानसिंह की कथाअट्टम प्रस्तुति होगी।

 

 

shuchismita das at ritu vasant, shilpram
photo credit: shilpgram

10 मार्च दूसरा दिन: शुचिस्मिता दास की शास्त्रीय गायन प्रस्तुति होगी ।

 

 

anupama bhagwat at ritu vasant, shilpram
photo credit: shilpgram

11 मार्च तीसरा दिन: सितार वादन की प्रसिद्ध कलाकार अनुपमा भागवत अपनी कला से लोगों को लुभाएँगी साथ ही जयपुर घराने के प्रसिद्ध कलाकार हरीश गंगानी व दल के द्वारा होगी शानदार कत्थक प्रस्तुति।

 

9 मार्च तक होली का पक्का कलर भी उतर ही जाएगा। तो क्यों न क्लासिकल डांस और म्यूजिक के सात रंगों में खुद को रंग लिया जाए, उम्मीद है यह रंग लम्बे समय तक आपके दिलो-दिमाग पर छाया रहेगा। 🙂

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अच्छी खबर : उदयपुर-मैसूर के बीच अब ‘हमसफ़र’

जिस ‘हमसफ़र’ की हमें ज़रुरत थी आख़िर उस ‘हमसफ़र’ का साथ मिल ही गया। 19 फरवरी से उदयपुर से मैसूर तक साप्ताहिक ट्रेन शुरू होने जा रही है जिसका नाम ‘हमसफ़र’ रखा गया है। रेलवे बोर्ड ने उत्तर-पश्चिम रेलवे को यह सौगात दी। यह राजस्थान की दूसरी हमसफ़र ट्रेन है, पहली ट्रेन पिछले ही दिनों गंगापुर सिटी से तिरुचरापल्ली के मध्य चली थी।

Udaipur mysore humsafar express
Photo Credit : Shivam Sadhu/ raah_chalta_

उदयपुर-मैसूर हमसफ़र एक्सप्रेस में कुल 18 डिब्बे होंगे जिनमें 2 डिब्बे पॉवर कार बाकि के सभी 16 डिब्बे वातानुकूलित(ए.सी.) के होंगे। यह ट्रेन उदयपुर से 19 फरवरी को मैसूर के लिए रात में 9 बजे निकलेगी और 43 घंटो का सफ़र करते हुए बुधवार की शाम 2:25 बजे मैसूर पहुंचेगी। मैसूर से यही ट्रेन 22 फरवरी को सुबह 10 बजे चलेगी और उदयपुर तड़के 4:55 उदयपुर आएगी।

इस ट्रेन के चलने से उदयपुर और मैसूर जैसे दो महत्वपूर्ण शहर जुड़ेंगे। साथ ही साथ उदयपुर से पुणे और बंगलुरु जाने वाले लोग जो विभिन्न आईटी कंपनियों में काम करते है, उनके लिए भी इस ट्रेन का चलना फायदेमंद साबित होगा।

इस ट्रेन की मांग लंबे समय से की जा रही थी जो अब जाकर पूरी हुई है। इसका सीधा फायदा उदयपुर के पर्यटन पर होगा जो एक अच्छी बात है।

खजुराहो-उदयपुर एक्सप्रेस अस्थाई तौर पर सोनागिरी में रुकेगी – जैन मेले में होने वाले यात्रिभर को देखते हुए रेलवे बोर्ड ने खजुराहो-उदयपुर का अस्थाई ठहराव सोनागिरी में रखवाया है। यह ट्रेन 28 फ़रवरी से 3 मार्च तक अस्थाई तौर पर रुकेगी। इसका 2 मिनिट का हालत रहेगा।

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धार्मिक कट्टरता ने एक और ‘शंभूलाल’ को जन्म दिया, माउंट आबू की घटना

धार्मिक कट्टरता का शिकार हुए ‘अफराजुल’ की निर्मम हत्या को अभी तक देश भुला नहीं पाया है और ठीक वैसी एक और घटना दोहराई गयी है। माउंट आबू से 30 किलोमीटर दूर एक और ‘शंभूलाल’ ने जन्म लिया।

सूत्रों की माने तो विजय मीणा नाम के शख्स ने एक बुजुर्ग मुस्लिम आदमी को पीट पीटकर ‘जय श्री राम’ बुलवाया, और उसका वीडियो बनाया। ये वाक़या तब सामने आया जब उसी के द्वारा बनाया गया ये वीडियो वायरल हो गया। लोकल पुलिस ने एक्शन लेते हुए 18 वर्षीय विजय मीणा को धार्मिक भावनाएं आहत करने और शांति भंग के आरोप में गिरफ्तार कर लिया है। विजय मीणा ने ये वीडियो सोमवार रात को बनाया और खुद ने ही सर्कुलेट भी किया।

इस तीन मिनिट के वीडियो में विजय मीणा 45 साल के मोहम्मद सलीम को मार मारकर ‘जय श्री राम’ बुलवाते हुए साफ़ दीख रहा है। जवाब में मोहम्मद सलीम बार बार ये कहते सुने जा सकते है कि, “परवरदिगार सबसे बड़ा है।”

मुस्लिम लीडर्स ने FIR दर्ज करवाई फिर विजय मीणा को पकड़ लिया गया। ये जानकारी पुलिस ऑफिसर ओम प्रकाश ने बताई।

The Muslim Man who was forced to say Jai Shri Raam

माउंट आबू राजस्थान के सबसे फेमस टूरिस्ट डेस्टिनेशन में गिना जाता है और वहां पर ऐसी घटना का होना प्रश्न उठाता है कि आखिर माउंट आबू, राजसमन्द जैसे छोटे शहर के युवा क्यों इस क़दर इन सब गतिविधियों में शामिल हो रहे है? इसका जवाब भी ‘शंभूलाल’ के केस में सामने आया ही था। व्हाट्सएप्प, फेसबुक के जमाने में तब जब इनटरनेट इतना सस्ता हो चला है। कोई भी कैसे भी पोस्ट, वीडियो को बना कर इस पर डाल सकता है और सर्कुलेट कर सकता है। ये बात भले ही चुभे लेकिन सच भी है कि बेरोज़गारी के इस दौर में आज का युवा अपना ज्यादातर समय सोशल साइट्स पर ही निकलता है। बिना जांचे परखे मैसेज फारवर्ड कर देता है। उसके परिणाम बहुत बुरे होते है। ‘शंभूलाल’ इसका उदाहरण था और अब विजय मीणा का भी उदाहरण बनना इस बात की गवाही देता है। मुझे नहीं लगता कि पढ़े लिखे लोग चाहेंगे कि ऐसे उदाहरण हमारे समाज में बढ़ते रहे।

ये सब पढ़ने सुनने के बाद सआदत हसन मंटो की एक लाइन याद आती है जिसमें वो कहते थे, ” ये समाज पहले से नंगा है उसे कपड़े पहनाना मेरा काम नहीं है, वो तो एक दर्जी का है। मैं तो बस उसे आईना दिखा रहा हूँ।”

ये घटनाएं हमारे लिए आईने का ही काम कर रही है अब भी हम नहीं संभले तो अगले विजय मीणा या सलीम मोहम्मद कहीं हम खुद ही ना हो, और मेरे जैसा कोई और फिर यही सब कुछ लिख रहा हो।

https://youtu.be/vS6GhP0eZgk

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स्वच्छ सर्वेक्षण 2018: नगर निगम ने खुद को दिये 1017/1400, आप कितने नंबर देंगे?

udaipur nagar nigam2014 में शुरू हुए स्वच्छ भारत अभियान में इस साल उदयपुर नगर निगम ने खुद को 1400 में से 1017 नंबर दिये है।पिछले साल देश भर में 310वे स्थान पर रहा उदयपुर, इस बार निगम उम्मीद कर रहा है कि रैंकिंग में ज़बरदस्त सुधार नज़र आएगा। ट्रांसपोर्ट एंड कलेक्शन और ओडीएफ़ के चलते इस बार रैंकिंग सुधरने की उम्मीद है। लेकिन आपको बता दें भले उदयपुर ओडीएफ़ ज़िला घोषित हो चूका हो लेकिन अभी भी कई घर ऐसे है जहाँ शोचालय तक नहीं बने है बावजूद इसके उसे ओडीएफ़ घोषित किया हुआ है। अब बात ये है कि निगम किस बेस पर खुद को ओडीएफ़ से जोड़कर नंबर दे रहा है जबकि हकीक़त कुछ और ही है! कचरा कलेक्शन का काम शुरू तो हो गया है लेकिन अभी भी प्रोसेसिंग और डिस्पोजल के प्लांट का लगना बाकी है। सनेट्री फील्ड साईट भी नहीं है।

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photo courtesy: udaipurtimes

खैर ये तो निगम की बात हो गई पर आप लोग भी उदयपुर नगर निगम को नंबर दे सकते है। बस आपको दिये गए इस लिंक को क्लिक करना है और वहाँ अपने आप को सिटिज़न फीडबैक वाले सेक्शन में रजिस्टर करवाना है। उसके बाद आपके सामने कुछ प्रश्न आएँगे उनके उत्तर देकर आप नगर निगम को फीडबैक दे सकते है। ये रही वो लिंक https://swachhsurvekshan2018.org/

लेकिन हम चाहते है कि आप कमेंट बॉक्स में इस विषय पर अपने विचार प्रकट करें ताकि हम आप सब मिलकर एक अच्छी बहस कर सकें। एक अच्छी बहस शायद हमारे शहर के लिये फ़ायदा कर जाए। 🙂

(ऊपर दिये गए फैक्ट्स राजस्थान पत्रिका और दैनिक भास्कर से लिये गए है।)

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कँवरपदा – मेवाड़ का ऐतेहासिक स्कूल

kanwarpada school(कंवरपदा स्कूल)
Photo By: Shubham Ameta

हमारे दादा-दादी और मम्मी-पापा के लिए जाना-पहचाना नाम है-कँवरपदा, आज की जनरेशन ने ये नाम उन्ही से कभी न कभी ज़रूर सुना होगा ना सिर्फ नाम बल्कि जिस जगह यह स्कूल चलता है शायद उस इमारत की ख़ासियत भी सुनी हो! अगर कोई महरूम रह गया हो तो ये आर्टिकल पढ़ कर उसे मालूम चल ही जाएगा।

इतिहास को बचाते हुए मॉडर्नाइज़ होता उदयपुर
Photo By: Shubham Ameta

उदयपुर ओल्ड सिटी के बिलकुल बीचों-बीच बना ये स्कुल एक ऐतेहासिक इमारत में चलता है, और ख़ुद एक ऐतेहासिक स्कूल भी है। एक हायर-सेकेंडरी स्कूल जहाँ 9-12 तक की क्लासेज़ लगती है।

इमारत बनने से लेकर आज के कँवरपदा तक की कहानी:

kanwarpada school(कंवरपदा स्कूल)
Photo By: Shubham Ameta

इस इमारत के निर्माण की प्रगति महाराणा स्वरुप सिंह जी के शासन काल में हुई। सन् 1816 में इसका निर्माण शुरू हुआ और 1876 में मेवाड़ गवर्मेंट के अंडर ही ये पूरी तरह बनकर तैयार हुई। ये बिल्डिंग 22,000 वर्ग मीटर में फैली हुई है।

यहाँ 1921 से पहले प्राइमरी स्कुल हुआ करता था जिसका नाम ‘शम्भुनाथ पाठशाला’ था। लेकिन 1921 के बाद इसे मिडिल स्कुल बना दिया। 1921 से 1930 तक ये मेवाड़ गवर्मेंट के अंडर चलता था बाद में 1930-42 के बीच संयुक्त राजस्थान सरकार के अंतर्गत आ गया था। इस दौरान ये सेकेंडरी स्क्कुल में तब्दील हो गया। 1950 में राजस्थान सरकार ने इसे हायर सेकेंडरी बना दिया।

kanwarpada school(कंवरपदा स्कूल)
Photo By: Shubham Ameta

दरबार राज के दौरान यहाँ पर टकसाल हुआ करती थी जहाँ पर चांदी के सिक्के रखा करते थे। यहीं पर ‘दोस्ती लन्दन का’ सिक्का भी रखा हुआ था, दोस्ती लन्दन का सिक्का दोस्ती की पहचान के लिए बनाया गया था। जिसके एक तरफ उस समय की इंग्लैंड की महारानी और दूसरी तरफ महाराणा का चित्र उकेरा हुआ है।

चूँकि यहाँ राजदरबार के बच्चे पढाई करते थे इसी वजह से इसका नाम कँवरपदा पड़ा, ये बच्चे न सिर्फ यहाँ पढाई करते थे जबकि युद्ध के दौरान वो यहाँ सुरक्षित भी रहते थे।

kanwarpada school(कंवरपदा स्कूल)
Photo By: Shubham Ameta

बख्तावर सिंह जी ‘कारोही’ यहीं पढ़ा करते थे और इस हवेली के भावी राजकुमार होने वाले थे। इनके दादाजी तब दरबार में राजस्व अधिकारी थे। लेकिन ‘कारोही’ परिवार के अन्दर ही भावी राजकुमार बनने के चलते बख्तावर सिंह जी इस हवेली में जिस स्थान पर पूजा कर रहे थे वहीँ उनकी ह्त्या कर दी गई। ऐसा बताया जाता है कि हत्या के 2 घंटे बाद ही वो पूर्वज बनकर प्रकट हुए और इस तरह उन्हें इस जगह स्थापित किया गया। आज भी उनका उसी जगह एक छोटा सा मंदिर बनाया हुआ है। हालाँकि बख्तावर जी के बाद कोई इस गद्दी पर बैठ नहीं पाया।

इस स्कूल से कुछ ही दुरी पर ‘कारोही हवेली’ बनी हुई है जिसे संग्राम सिंह जी ने 45,000 रुपयों में ख़रीदा था। संग्राम सिंह जी के बेटे शक्तिसिंह जी आज की तारीख में क्षत्रिय महासभा के अध्यक्ष है।

kanwarpada school(कंवरपदा स्कूल)
कारोही हवेली
Photo By: Shubham Ameta
kanwarpada school(कंवरपदा स्कूल)
स्कूल से शहर तक
Photo By: Shubham Ameta

ये स्टोरी हमें लगभग 10 साल तक यहीं रहे राजकुमार सोनी ने बताई।

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डाक्टरों की हड़ताल: ऐसे पेशे से जुड़े लोगों का हड़ताल पर बैठना कहाँ तक सही है?

फाइल फोटो हिंदुस्तान टाइम्स
Photo Courtesy: Hindustan Times

एक और जहाँ स्वाइन फ्लू फिर से पैर पसार रहा है वहीं पिछले कई दिनों से डाक्टर्स हड़ताल पर बैठे हुए है। सरकार और डॉक्टर्स के बीच कई बार बात हुई लेकिन हालात वही के वही है। इसको देखते हुए सरकार ने डॉक्टर्स एसोसिएशन के प्रेसिडेंट और जनरल सेक्रेटरी को गिरफ्तार करने की चेतावनी दी है। इस पर डॉक्टर्स और भड़क गए और कहा कि वो इस धमकी से हड़ताल तोड़ने वाले नहीं है।

ये कहाँ तक सही है? क्या अपना काम छोड़ हड़ताल पर बैठना सही है, और वो भी तब जब आपका पेशा डॉक्टरी का हो?

इससे पहले भी रेस्मा एक्ट के तहत 86 डॉक्टर्स को गिरफ्तार किया जा चूका है। लेकिन बावजूद इसके डॉक्टर्स अब भी हड़ताल पर बैठे हुए है। स्वाइन फ्लू, डेंगू और भी भयानक बिमारियों से ग्रसित लोग इलाज के लिए तरस रहे है पर न तो डॉक्टर्स एसोसिएशन पर इस बात पर फर्क़ पड़ा है और ना ही सरकार इस मुसीबत का कोई उपाय खोज पाई है।

doctor द इंडियन एक्सप्रेस
Photo Courtesy: The Indian Express

डॉक्टर्स एसोसिएशन को  इस बात पर सोचना चाहिए,डाॅक्टरी उनका पेशा न होकर धर्म भी है। इस हड़ताल की वजह से अब तक 300 लोग अपनी जान दे चुके है। इसे हत्या ना माना जाए तो क्या कहे? अगर आपकी ज़रूरते सरकार पूरी नहीं कर पा रही है तो कोई लीगल तरीका अपनाएं, ऐसे हड़ताल करने से तो आमजन का भरोसा ही उठ जाएगा।

हम किसी को दोष नहीं दे रहे, पर हमें ऐसा लगता है कि ये तरीका ग़लत है। हमारे पास कोई और तरीके भी नहीं कि आपको बता सके। लेकिन इतना ज़रूर पता है कि आपका अपनाया हुआ हड़ताली तरीका ज़रूर ग़लत है।

हम इस आर्टिकल को एक डिस्कशन प्लेटफ़ॉर्म  की तरह रखना चाहते है ताकि आपके सुझाव डॉक्टर्स एसोसिएशन के लिए एक प्रार्थना-पत्र का काम करे। उन्हें अवगत करा सके, जो भी हो रहा है वो मानवीय रूप से ग़लत है।

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अगर आप भी ऐसे व्हाट्सएप ग्रुप के एडमिन है तो सावधान हो जाइये..!!

WT-Love-Jihadअभी पिछले कुछ दिनों से पुरे देश भर में, राजसमन्द जिले में हुए उस घिनौने हत्याकांड का जमकर विरोध हो रहा है। कई संगठनों ने इसका विरोध किया और कैंडल मार्च  भी किए। लेकिन कुछ लोग जो ख़ुद को ही ‘देशभक्त’, ‘सच्चा मेवाड़ी’ वगैरा-वगैरा घोषित कर चुके है, भी सामने आए है और सोशल मीडिया पर शम्भू लाल रेगर(हत्या का आरोपी) का समर्थन कर रहे है। हालाँकि अभी तक हत्या की जांच चल रही है और इसे कई एंगल से देखा जा रहा है बावज़ूद इसके कुछ व्हाट्सएप मैसेज पुरे मेवाड़ में पर वायरल हो रहे है।

आप भी देख लीजिए:

“लव जिहादियों सावधान, जाग उठा है शम्भू लाल जय श्री राम”,

“शम्भू का केस सुखदेव लडेगा और शम्भू को न्याय दिलाएगा। वकील हो तो आप जैसा, जय मेवाड़, जय मावली, निशुल्क लड़ेंगे सुखदेव सिंह उज्जवल मावली।”

आश्चर्य की बात ये है कि इन ग्रुप में बीजेपी सांसद, एम.एल.ए और बड़े अधिकारी लोग भी जुड़े हुए है। उनसे बात करने पर बताया की ‘वो कई महीनो से व्हाट्सएप नहीं चला रहे’, ‘कुछ बोलते है हमनें पढ़ा नहीं है, हमें जानकारी नहीं है’, ‘मैं जयपुर गया हुआ था व्हाट्सएप नहीं चलाया’।अब वो ऐसा कह रहे है तो हो सकता है सच हो, हो सकता है नहीं भी। राम जाने।

लेकिन हम आप लोगो को ज़रूर सचेत कर देना चाहते है यदि आप भी ऐसे ग्रुप से जुड़े है या उसके एडमिन बने हुए है तो सावधान हो जाइए। किसी भी तरह के ऑफेंसिव, असमाजिक, अश्लील, अशांति फ़ैलाने वाले मैसेज अगर आपके एडमिन रहते उस व्हाट्सएप ग्रुप या फेसबुक पेज पर सर्कुलेट होता है तो उसकी जिम्मेदारी एडमिन की ही होगी। जो इस तरह के मैसेज का समर्थन करता है वो भी जिम्मेदार होगा।  ये हम नहीं नया कानून कह रहा है।

क्या कर सकते है? :

  1.  हर ग्रुप में उन्हीं लोगों को ऐड करें जिन्हें आप पर्सनली जानते हैं।
  2. जैसे ही कोई ऑफेंसिव पोस्ट आए। उसे हटा दें। उसे बिना जांचे-परखे फॉरवर्ड करने से बचे।
  3. ऐसे मेंबर को भी ग्रुप से बाहर निकाल दें। याद रखें अगर आज उसे ग्रुप से बाहर निकालने में बुरा लग रहा है तो कल को हवालात से बाहर निकलने में कितना बुरा लगेगा!
  4. अगर कोई मैसेज या पोस्ट ज्यादा ही बुरा है। ज्यादा ही समस्याएं खड़ी कर सकता है तो नजदीकी थाने में जाएं और पुलिस को उसकी जानकारी देंवे। इन मामलों में आलस न करें। आज अगर आप अपने वाहन से नहीं जाएंगे तो कल को पुलिस वाले अपना वहां लेकर आ सकते हैं।
  5. सुरक्षित रहें। सावधान रहें। दिमाग से काम ले। नफ़रत और झूठ को न फैलाएं। अच्छे आदमी बनें।

लव-जिहाद, हिन्दू-मुस्लिम, गौ-रक्षा और न जाने क्या-क्या मुद्दा उठा कर हत्याएं करने वालो का समर्थन करना कहाँ तक उचित है? हमें इन मुद्दों के द्वारा भड़काया जाता है और हम आसानी से भड़क भी जाते है। कभी अपना ओपिनियन रखते भी है कि हकीक़त में मैं क्या सोचता हूँ? मेरे नेता की सोच, मेरे दोस्त की सोच या मेरे घरवाले की सोच मेरी सोच कभी नहीं हो सकती।

अगर सच में मेवाड़ की शान बढानी है, मेवाड़ का विकास होता देखना चाहते हो, देश का विकास होता देखना चाहते हो तो आप ख़ुद सोचिये क्या ये इस तरह हो पाएगा? सिर्फ जय मेवाड़ लिख कर पोस्ट डालने से जय नहीं हो जाती है। हमारे पूर्वजो ने बलिदान दिया था वो अगर आज होते तो वो ख़ुद भी इन घटनाओं का विरोध कर रहे होते। उनके नाम पर  राजनिति  बंद करो।

सँभलने की ज़रुरत है, अफ्राज़ुल शिकार हुए, इस जगह राजस्थान से बाहर गया हमारा दोस्त, कोई अपना या ख़ुद हम भी हो सकते है। हम कैसा भारत बनाना चाहते है ये आप और हम पर निर्भर करेगा।

नोट: व्हाट्सएप पर कोई भी पोस्ट बना कर डाल सकता है, उस पर आँख बंद कर विश्वास न करें। पहले उसे ढंग से पढ़े, वेरीफाई करें तब अगर फॉरवर्ड करने लायक लगे तो करें, वरना नहीं।