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Birth Centenary of Udaipur’s 1’st Tourist Guide Author- Mr. Murli Narayan Mathur

Also known as the “Venice of the East,” Udaipur city is surrounded by emerald lakes, the Aravalli Mountains and mesmerizing scenic beauty. Besides its natural glory and amazing architecture, Udaipur is also home to several very important people who have made huge contributions to their respective arenas, be it science, athletics, politics, or the arts! These influential people have made our city proud. The struggles they faced, their morale, and how they built a stellar reputation are just a few of the numerous qualities that anyone may learn from.

The series “People from Udaipur you should know about” frequently praises the accomplishments of these illustrious natives of Udaipur who have achieved the pinnacle of success in their respective fields. One such legendary person was Mr. Murli Narayan Mathur, and in this article, we shall be talking about him and the contribution he made towards society in memory of his 100’th birthday.

People From UDaipur You Should Know About- Murli N Mathur

Early Life

Mr. Murli Narayan Mathur was born on July 10, 1922, in Ajmer city of Rajasthan to Shri. Shobha Narayan Mathur and Smt. Mima Bai Mathur. He completed his school and college education in Ajmer and Jodhpur, respectively. He was a highly qualified person with an M.A in Economics and History. Thereafter, he studied L.L.B to become a lawyer.

He started his career in Udaipur as a teacher in 1945. He then joined Maharana Bhupal Electric Supply Company (Power House) in 1946 and excelled in several roles during his tenure till his retirement. He was a firm believer in the ideals of Mahatma Gandhi and wore only Khadi Clothes and based his life on the goal of “Simple Living and High Thinking.”

He was active and working till his last day and passed away on November 22, 1997, at his residence in Panchwati, Udaipur.

Notable Contributions

  • He was the author of the first Tourist Guide Book of Udaipur.
  • He was a reputed historian and had written multiple books on the history of Mewar.
  • He had written 2 books on Maharana Pratap namely ‘Maharana Pratap and his Times’ and ‘Battle of Haldi Ghati’.
  • He was the Chairman of Maharana Pratap Smarak Vikas Samiti for a number of years.
  • He was the Nagar Palika Parshad for two terms: 1951-54 and 1964-67.
  • He was associated with Maharana Kumbha Sangeet Parishad for 35 years and served as the Vice-Chairman until his last day.
  • He was a member of the Rajasthan Sangeet Natak Academy from 1981 to 1984 and served as its Vice-Chairman from 1984 to 1987.
  • He was also a member of the Executive Committee of Sangeet Natya Niketan.
  • He was the founding member and Chairman of the Senior Citizens Committee.

Fellowship With Social And Cultural Organizations

  1. Vice President- Maharana Pratap Smarak Samiti
  2. Vice President- Maharana Kumbha Sangeet Parishad
  3. Vice president- Rajasthan Sangeet academy
  4. Vice president- Bhartiya Lok Kala Mandal
  5. Executive member-  Sangeet Natya Niketan
  6. President- Panchvati Samiti
  7. Patron- Chitragupta Sabha
  8. Member- INTACH, Mahaveer International
  9. Founder member of the Senior Citizens Council

Awards and Recognition

1.) To honour his contributions to the city, Nagar Nigam Udaipur decided to name a prominent street after his name i.e. the Murli Narayan Mathur Marg. This route is located at RK mall and connects Panchwati with Fatehpura Road.

2.) The Maharana Sangeet Parishad has named an award after his name i.e. the “Murli Narayan Mathur award” that is given to the best artists in the annual “Kumbha Sangeet Samaroh.” The recipients of this award include legendary artists like Pt. Jasraj, Shovna Narayan, Shubha Mudgal, and Grammy Award winners Pt. Vishwa Mohan Bhatt, Ustaad Rashid Khan, and Ustaad Shujaat.

People like Mr Murli Narayan Mathur are real inspirations to the young generation. His passion and devotion towards art, history, and culture are commendable and a true inspiration to everyone around.

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जानिए PM मोदी ने क्यों सराहा उदयपुर की इस बावड़ी को ?

पीएम नरेंद्र मोदी के ‘मन की बात’ (MannKiBaat) से चर्चा में आई उदयपुर शहर की ऐतिहासिक धरोहर, “सुरतान बावड़ी”  जो 305 साल पुरानी है। रविवार को पीएम ने इस धरोहर को बचाने वाले युवाओं की इस पहल को सराहा है। पीएम ने उदयपुर के युवाओं के प्रयासों को सराहते हुये ट्वीट करके यह कहा की आज दुनियाभर में इस बदलाव की चर्चा हो रही है। 

 दरअसल उदयपुर शहर के बेदला गांव में बरसों पुरानी एक बावड़ी है, जिसका निर्माण बरसों पहले बेदला गांव के “राव सुल्तान सिंह” ने 1717 में  करवाया था। जिसके बाद इसे “सुल्तान बावड़ी व सुरतान बावड़ी” के नाम से जाना जाने लगा। पुराने समय में इस बावड़ी का पानी लोगो के घर सप्लाई होता था, तब तक इस बावड़ी की दशा सही थी। परन्तु धीरे-धीरे इस बावड़ी में लोगो ने कचरा फेंकना शुरू कर दिया जिससे ये बावड़ी वीरान हो गई और इस ऐतिहासिक बावड़ी की दुर्दशा ख़राब हो गई जिसे कोई देखता भी नहीं है। बावड़ी में जगह -जगह पेड़ पौधे उगे हुए हुए थे, पत्थर टूट रहे थे, जूते, प्लास्टिक, बैग,जैसे कूड़ा कचरा भरा था और बावड़ी का पानी भी पूरी तरह पीला पड़ चूका था। 

बरसों पुरानी पड़ी इस बावड़ी को शहर के कुछ जागरूक युवाओं ने इसकी कायाकल्प को पूरी तरह बदल दिया है। आर्किटेक्ट सुनील लढा करीब 9 माह पहले यहां घूमने आए और उनकी नजर इस बावड़ी पर पड़ी। सुनील लढा और अमित गौरव की टीम ने इस टूटी पड़ी बेजान वीरान बावड़ी को विलुप्त होने से बचाया है। आर्किटेक्ट होने के नाते सुनील लढा ने इस बावडी को एक आर्किटेक्ट के नजरिये से ही देखा और इसके पीछे की खूबसूरती को जान लिया और इसका कायाकल्प करने की ठान ली। इसके बाद सुनील ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट के जरिए इसे आम जनता में फैलाया और साफ़ सफाई में सहभागिता निभाने की अपील की। उनकी ये अपील रंग लाई और लोगो ने इस काम में उनकी मदद भी की। लोगो की सहभागिता की वजह से ये बावड़ी साफ़ हो गई और उसी दशा में आ गई जो आज से बरसों पहले थी।  

सुल्तान से सुरताल तक 

सुल्तान बावड़ी की सफाई के इस मिशन का नाम ‘सुल्तान से सुरताल तक’ दिया है। युवाओं के कड़े परिश्रम और मेहनत के साथ न सिर्फ बावड़ियों की कायाकल्प हुई बल्कि इसे, संगीत के सुर और ताल से भी जोड़ दिया गया है। ASAP अकादमिक फाउंडेशन के जनसमूह से जुड़े सुनील लढा ने ये भी बताया की बावड़ी की इस सफाई से पहले कागज़ पर इसका चित्र बनाया। फिर टीम के साथ इसकी जीर्णोद्धार की रूपरेखा तय की। श्रमदान करके इसे साफ़ तो कर लिया गया लेकिन उसके बाद युवाओं को जोड़ने के लिए यहाँ कभी म्यूजिक तो कभी पेंटिंग्स के इवेंट करने लगे। जल स्त्रोतों के प्रति, धर्म से जुड़ाव और बावड़ी को पवित्र रखने के लिए हरिद्वार से गंगा जल मंगवा कर ग्रामीणों के हाथ से ही इसमें प्रवाहित कराया गया। युवाओं को सुर और तान समेत अन्य एक्टिविटी से भी जोड़ा गया।

जागरूक लोगों का मकसद इसे जीवित करना था

ऐसे में आज उसकी स्थिति पहले की तुलना में काफी बेहतर नजर आती है। प्रधानमंत्री ने कहा कि इस सफल प्रयास की सबसे खास बात यह है कि इसकी चर्चा हर तरफ है, इसे विदेश से भी लोग देखने के लिए आने लगे हैं। मोदी जी ने ये भी कहा की आधुनिकता के इस दौर में हम धरोहरों और विरासतों को नहीं सहज पा रहे है। विलुप्त होती बावड़ियां इसका उदहारण है। देश में शायद ही ऐसा कोई गाँव या शहर होगा, जहां बावड़ियां न हो। आज इनकी स्थिति बदतर है। सरकारों को भी इन्हें सहेजने के प्रयासों में सफलता नहीं मिली। पीएम ने ये भी कहा की उदयपुर में बात सिर्फ सुरतान बावड़ी को साफ़ करने तक सिमित नहीं थी, जागरूक लोगों का मकसद इसे जीवित करना था।   

सुरतान बावड़ी पर तो एक शख्स की निगाह पड़ी जिस वजह से उसे उसकी वास्तविक हालत में लाया गया। पर न जाने शहर में ऐसी कितनी सारी ऐतिहासिक धरोहरे है, जिनकी दुर्दशा हो रही है जो जीर्ण-शीर्ण हालत में पड़ी है। जिस पर न तो आज दिन तक किसी की नज़र पड़ी और न ही इसके बारे में किसी को कुछ पता है और अगर नजर भी गई है तो किसी ने भी उस पर एक्शन नहीं लिया। उन युवाओं की तरह हम सब को भी हमारी ऐतिहासिक धरोहर के साथ-साथ शहर को स्वच्छ रखने लिए जागरूक होना ही होगा। उनके एक कदम ने आज उदयपुर का नाम पूरे भारत में रोशन किया है, तो शहर का एक-एक व्यक्ति अगर जागरूक होगा और ऐसे कदम उठाएगा तो हमारा शहर उदयपुर में स्वच्छता के मामले में नंबर वन बन सकता है। अगर जरुरत है तो हर इंसान को जागरूक होने की, आज तो सुरतान बावड़ी सामने आई है पता नहीं अब न जाने और भी कितनी सारी ऐसी ऐतिहासिक धरोहर है, जो सामने आ जाए।

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आखिर ये कुरीति थमने का नाम क्यों नहीं लेती ?

हिन्दू संस्कृति में एक व्यक्ति के जन्म से मृत्यु तक सोलह तरह के पर्व उत्सव होते है जिन्हें संस्कारों का नाम दिया जाता हैं। जिनमें विवाह एक महत्वपूर्ण संस्कार माना गया हैं, प्रत्येक दौर में विवाह को दो पवित्र भावनाओं के बंधन के रूप में स्वीकृति दी गई जो अगले सात जन्मों तक एक दूसरे का साथ निभाए। बदलते वक्त के साथ विवाह संस्कार में कई तरह की बुराइयां सम्मिलित हो गई और इन कुरीतियों के चलते विवाह व्यवस्था विकृति का शिकार हो गई। जिसका एक स्वरूप हम बाल विवाह अथवा अनमेल विवाह के रूप में देखते है। यह कुरीति भारतीय समाज के लिए अभिशाप साबित हो रहा हैं।

बाल विवाह की कुप्रथा-
ऐसा नहीं की यह कुप्रथा का प्रचलन भारतीय सामाजिक व्यवस्था में पहले से है, जब अंग्रेजी शासको ने भारत को बंधी बनाया था तब विदेशी शासक बेटियों को भोग की वस्तुए समझकर उन्हें ले जाते थे ऐसे में गरीब निम्न वर्गीय परिवार ने बेटियों का बचपन में विवाह करवाना शुरू कर दिया था और ऐसे दौर में यह कुप्रथा का प्रचलन शुरू हो गया। मध्यकाल में एक दौर ऐसा भी आया जब बेटी के जन्म को अशुभ माना जाने लगा। शिक्षा के अभाव तथा स्वतंत्रता न होने के कारण लड़कियाँ इसका विरोध भी नहीं कर पाती थी। छोटी उम्र में विवाह हो जाने के कारण दहेज भी कम देना पड़ता था। इस कारण से मध्यम तथा निम्न वर्गीय परिवारों में बाल विवाह की प्रथा ने अपनी जड़े गहरी जमा ली थोड़ी सी सहूलियत के लिए शुरू हुई ये प्रथाएं आज बेटी के जीवन का अभिशाप बन गई हैं। इस गलत परम्परा को निरंतर आगे बढ़ाया जा रहा हैं। बेटी को कम उम्र में ही ब्याह दिया जाता है जिससे कई तरह कि समस्याएं उत्पन्न होने लगती हैं। कम उम्र में विवाह से बालिका के शारीरिक मानसिक स्वास्थ्य में बाधक तो हैं ही साथ ही जल्दी संतानोत्पत्ति होने से जनसंख्या में भी असीमित वृद्धि हो रही हैं। इन सब कारणों से बाल विवाह एक सभ्य समाज के लिए अभिशाप ही हैं।

बाल विवाह को रोकने के लिए सरकार कितने कदम उठा रही है, कितने जागरूकता अभियान और योजनाएं आदि चला रही है लेकिन यह कुरीति आखिर थमने का नाम कहा लेती है। पारिवार के दबाव में भी कुछ लड़कियों के बाल विवाह हो जाते है, आधे लोग अपनी गरीबी की वजह से बाल विवाह करवा देते है और कुछ लोग दहेज़ कम देना पड़े इस वजह से।

इसी तरह अपने प्रदेश उदयपुर में भी यह प्रथा अभी तक बरकरार है, प्रदेश में हर चौथी महिला का बाल विवाह हो जाता है। यह खुलासा राष्ट्रीय स्वास्थय सर्वेक्षण (एनएचएफएस -5) की रिपोर्ट साल 2019-2021 में हुआ। रिपोर्ट के मुताबिक राजस्थान का देश में बाल विवाह का 7वां नंबर है। कुल 25.4 प्रतिशत महिलाओं के बाल विवाह हुए हैं। प्रदेश में 2018 से 2021 के दौरान कुल 1216 बाल विवाह हुए है सबसे ज्यादा मामला अलवर, जोधपुर और उदयपुर में आए है।

उदयपुर में 64 बाल विवाह हो चुके है। ये मामला शहरी क्षेत्रों में 15.1 प्रतिशत और ग्रामीण इलाके में 28.3 प्रतिशत तक रहा। इस से पहले की रिपोर्ट साल 2015-2016 में महिला बाल विवाह में यह मामला 35.4% रहा। हाल ही जारी रिपोर्ट में संभाग के चित्तौडगढ़ में 42.6 % सबसे ज्यादा बाल विवाह के मामले सामने आए है, भीलवाड़ा में 41.8%, झालावर में 37.8% ,उदयपुर में 18.2%, गंगानगर में 13.6%, कोटा में 13.2%, और पाली में 11.8% रहा।

बाल विवाह में आई गिरावट –
सरकार ने बाल विवाह के खिलाफ कई अभियान बनाए है, बाल संरक्षण की अध्यक्ष संगीत बेनीवाल बताती है कि बाल विवाह के मामले रोकने के लिए नए -नए कार्यक्रम पर काम हो रहा है। ” चुप्पी तोड़ो, हमसे बोलो”, बाल विवाह अपराध है और बाल विवाह को न जैसे कार्यक्रम के जरिए एनजीओ स्वयंसेवी संगठन के माध्यम से इसे रोकने में लगे हुए है ग्रामीण क्षेत्रो में लगातार जागरूकता अभियान चलाए जा रहे है इस से बाल विवाह के मामले में गिरावट आई है, बच्चे अब खुद ही सतर्कता रखने लगे है और ऐसी स्थिति में वे स्वयं ही थाने चले जाते है और पुलिस प्रशासन को सुचना देते है या कॉल कर देते है।

अब बच्चे भी हो रहे है जागरूक –
पिछले साल नवंबर में एक बच्ची का बाल विवाह होना था उसने हिम्मत करके इसकी सुचना दी थी तब अध्यक्ष संगीता बेनीवाल ने लड़की के परिजनों को समझाया भी था पर उसके परिजन के नहीं मानने पर बच्ची को बालिका गृह में रखा गया था।

बाल विवाह के मामलों में कमी –
देश में लड़कियों की शादी की सही उम्र 18 वर्ष है और लड़के की 21वर्ष। पिछले साल के मुताबिक अभी की रिपोर्ट दोनों का अगर आंकलन किया जाए तो पिछली रिपोर्ट से इस बार 10% कमी आई है। पिछली सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक़ महिला बाल विवाह 35.4 % रहा और अब यह आंकड़ा 25.4% फीसदी रहा।

कम उम्र में बच्चों की शादी कर देने से उनके स्वास्थ्य, मानसिक विकास और खुशहाल जीवन पर असर पड़ता है। यह उम्र उनके खेलने कूदने की होती है, इस तरह उनकी जल्दी शादी करवा कर शादी के इस बंधनो में बाँध देना कहा तक सही है ? पढ़ने लिखने की उम्र में उन पर घर परिवार के काम का बोझ डाल देना कहां तक सही है ? सपनो के पंख को खुलने से पहले ही उन्हें इस प्रकार तोड़ देना कहा तक उचित है ? क्या उनसे इस प्रकार उनका बचपन छीन लेना कहा तक सही है ?

कितने ग्रामीण इलाको में ऐसी लडकियां है जो होशियार है, जीवन में बहुत कुछ बड़ा हासिल कर सकती है पर परिवार की नासमझी की वजह से और ग्रामीण इलाका जहां लोग इतने शिक्षित नहीं होते है ऐसे में उनके सपनो को उनके अंदर तक ही सीमित रख दिया जाता है और उनकी प्रतिभा को बहार दिखाने पर उन्हे गलत साबित कर दिया जाता है। किताबे थमाने की उम्र में वरमाला थमा दी जाती है। बस्तो के बोझ को उठाने की जगह घर परिवार की जिम्मेदारियों का बोझ उठाने को दे दिया जाता है। अशिक्षित समाज में लड़कियों को पढ़ाना आज भी एक प्रश्न हैं।

बाल विवाह की समस्या को रोकने के उपाय-
समय समय पर समाज सुधारकों ने इस तरह की कुप्रथाओं को मिटाने के प्रयास किये हैं। हमारी संसद ने भी बाल विवाह निषेध के लिए कठोर कानून बनाए हैं और लड़के तथा लड़की के विवाह की न्यूनतम आयु निर्धारित की हैं । विवाह की न्यूनतम आयु से पूर्व होने वाले विवाह को बाल विवाह माना जाता है तथा यह गैर कानूनी अपराध की श्रेणी में गिना जाता हैं। बाल विवाह की शिकायत प्राप्त होने पर दोनों पक्षकारों को कड़ी सजा तथा जुर्माने का प्रावधान होने के बावजूद हमारे देश में बाल विवाह आज भी हो रहे हैं।

ग्रामीण इलाको में तो नासमझी, अशिक्षित, शिक्षा का अभाव, कुप्रथाए जो चली आ रही है इस वजह से मान सकते है की बाल विवाह हो रहे है पर यह शहरी इलाको में भी ऐसे हाल क्योँ है। बाल विवाह हमारे आधुनिक समाज में गहरे तक व्याप्त ऐसी कुप्रथा है जिसका दुष्परिणाम लड़के तथा लड़की दोनों को भुगतना पड़ता हैं। इस प्रथा के चलते समाज में कई बुराइयाँ उत्पन्न हो चुकी हैं। आज के समय में बाल विवाह समस्या का निवारण बेहद जरुरी हो गया हैं इसके बिना बेटियों को इस अभिशाप से मुक्त नहीं किया जा सकता हैं।

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जानिए उदयपुर की ऐसी जनजाति जिसने हल्दी घाटी युद्ध में दिया था अपना महत्वपूर्ण योगदान

भील यह राजस्थान की सबसे प्राचीन जनजाती हैं। भील शब्द की उत्पति “बिलू” शब्द से हुई है, जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘कमान’। यह जनजाति तीर कमान चलाने में काफी निपुण होती हैं। मुख्यतः यह जनजाति उदयपुर के साथ-साथ बांसवाड़ा, डूंगरपुर, चित्तौड़गढ़ और प्रतापगढ़ में रहती है।। ये मेवाड़ी, भील तथा वागड़ी भाषा का प्रयोग करते हैं।

भीलों की जीवनशैली बहुत ही अलग ढंग की होती हैं, यह उबड़-खाबड़ पहाड़ी क्षेत्र तथा वन में रहते हैं। इनके मकानों को टापरा, कू, फलां और पाल भी कहते हैं।

पौराणिक कथाओं के अनुसार भील जनजाति की उत्पत्ति भगवान शिव के पुत्र निषाद द्वारा मानी जाती है। कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव जब ध्यान मुद्रा में बैठे हुए थे, तब निषाद ने अपने पिता के प्रिय बैल नंदी को मार दिया था तब दंडस्वरूप भगवान शिव ने उन्हें पर्वतीय क्षेत्र पर निर्वासित कर दिया था, वहां से उनके वंशज भील कहलाये। इसके साथ यह भी कहा जाता है की रामायण के रचयिता वाल्मीकि भी भील पुत्र थे। महाभारत में वर्णित गुरु द्रोणाचार्य के भक्त एकलव्य भी भील जनजाति के थे। रामायण में शबरी जिसने राम को अपने झूठे बेर खिलाए थे वह शबरी भी भील जाति से ही थी। इस जाति की कर्त्तव्यनिष्ठा, प्रेम और निश्छल व्यवहार के उदाहरण प्रसिद्ध है। 

हल्दी घाटी युद्ध के समय महाराणा प्रताप की सेना में राणा पुंजा और उनकी भील सेना का महत्वपूर्ण योगदान था। इसी कारण से मेवाड़ राजचिन्हों में एक तरफ महाराणा प्रताप तो दूसरी तरफ राणा पुंजा भील का नाम भी आता है। महाराणा प्रताप को भील लोगो द्वारा पुत्र भी कहा जाता है इसके पीछे भी एक कहानी है, दरअसल मुस्लिम आक्रांताओं द्वारा बार-बार आक्रमण किए जाने पर महाराणा प्रताप के पिता महाराणा उदय सिंह समझ चुके थे कि, चित्तौड़गढ़ दुर्ग अब सुरक्षित नहीं रहा इसलिए उन्होंने सुरक्षा के लिए पहाड़ियों के बीच एक नया शहर बसाया। इसमें पहले से ही वहां रह रहे भील बस्तियों के निवासियों ने महाराणा उदय सिंह का यथोचित सहयोग किया। इसी दौरान भीलों के बच्चे व महाराणा प्रताप एक साथ रहते थे। महाराणा प्रताप ने भीलो को इतना प्रेम, स्नेह व अपनत्व दिया था कि भील उन्हें “कीका” कहने लगे जिसका सामन्य अर्थ पुत्र होता है। भीलों के साथ महाराणा प्रताप के संबंध अंत तक बने रहे। इसी वजह से सीमित संसाधनों के होते हुए भी भीलों के सहयोग से महाराणा प्रताप ने मुस्लिमों के विरुद्ध अनेक युद्धों में विजय प्राप्त की। भीलों के साथ महाराणा प्रताप के संबंध मेवाड़ राज्य के लिए बहुत लाभकारी सिद्ध हुए। महाराणा प्रताप भीलों के साथ राजा- प्रजा का नहीं बल्कि बंधुत्व का संबंध रखते थे। भीलों द्वारा किये गये सहयोग एवं वीरतापूर्ण कार्यो के सम्मान स्वरूप उन्होंने भीलों को मेवाड़ के राज चिह्न में जगह दी।

आइये जानते है और भी बहुत कुछ भील जनजाति के बारे में –

वस्त्र – भील पुरुष सामान्य तंग धोती पहनते है जिसे भील भाषा में ठेपाडु कहते है और सर पर साफा पहनते है जिसे पोत्या और फाडिंयु कहते है। भील स्त्रियों की वेशभूषा आम तौर पर वे लुगडी, घाघरा और चौली पहनती है। 

नृत्य– गैर नृत्य, घूमर,गवरी नृत्य इस जनजाति के प्रसिद्ध नृत्य हैं। 

मेले– गौतमेश्वर मेला, बेणेश्वर का मेला, ऋषभदेव का मेला 

 प्रमुख प्रथाए-

  • दापा प्रथा – इस प्रथा के अनुसार विवाह के समय लड़के के पिता द्वारा लड़की के पिता को कन्या का  मूल्य चुकाना होता है।  
  • गोदना प्रथाइस प्रथा के अनुसार भील पुरुष और महिलाएं अपने चेहरे व शरीर पर गोदना गुदवाते हैं जिसमे महिलाएं अपने आँखों के ऊपर सर पर दो आड़ी लकीरे गुदवाती हैं जो उनके भील होने का प्रतिक माना जाता हैं। 
  • गोल गोधेड़ा प्रथाभील जनजाति में एक प्रथा है जिसे गोल गोधेड़ा प्रथा कहते है, इस प्रथा के अनुसार यदि कोई भील युवक अपनी वीरता और शौर्य को प्रमाणित कर देता है तो वह युवक अपनी पसंद की लड़की से शादी कर सकता है। 

भील जनजाति में लोकगीतों, लोकनृत्य, लोकनाट्य का काफी प्रचलन है – इसमें से एक गवरी नृत्य जो उदयपुर संभाग में सावन-भादो के समय किया जाने वाला एक धार्मिक नृत्य है, जो केवल पुरुषों द्वारा किया जाता है। इस नृत्य को राइ नृत्य भी कहते है क्योंकि इसमें नृत्य के साथ मादल व थाली भी साथ में बजाई जाती है। 

भील लोग देवी-देवताओं का बहुत मानते हैं और उनकी पूजा करते हैं। ये लोग साहसी, वचन के पक्के, निडर और स्वामिभक्त होते हैं। आर्थिक दृष्टि से देखा जाए तो भील जनजाति अत्यंत निर्धन होते हैआर्थिक व सामजिक रूप में यह जनजाति समाज का बहुत ही पिछड़ा वर्ग है पर फिर भी इनका इतिहास अति रोचक साहसी एवं प्राकृतिक वातावरण से पूर्ण रहा है। इतिहास के पन्नो पर अगर देखो तो भील समाज की सम्पन्नता शूरवीरता एवं आर्थिक सम्पनता के बखान मिलते है।

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अंधविश्वास का बुरा प्रभाव, दादी ने डाली पोते की जान खतरे में

अन्धविश्वास, जिसके नाम में ही उसका अर्थ है, अँधा, अज्ञानी, यानि किसी चीज को जाने पहचाने, बिना सोचे समझे, विचार किये बिना, उस पर आँखे बंद करके विश्वास कर लेना। अँधा मतलब वह व्यक्ति जिसे कुछ नहीं दिखाई देता उसी प्रकार अन्धविश्वास में डूबा हुआ व्यक्ति भी किसी भी बात पर बिना प्रतिक्रिया दिए हुए सोचे समझे बिना उस पर विश्वास कर लेता है। यह परंपरा अब बरसो से चली आ रही है और लोग इसके साथ आज दिन तक चल ही रहे है। कुछ मान्यताए ऐसी होती है न जो परिवार के बड़े बुजुर्ग करते आ रहे होते है और हम बचपन से उन्हें देखते आ रहे होते है तो हम उसी प्रकार उस परिस्थिति के अनुसार चल देते है और आज दिन तक चलते आ रहे है। जैसे की कही जाने से पहले अगर किसी ने छींक दिया या अगर बिल्ली ने रास्ता काट दिया तो आज भी हमारे दिमाग में एक पल के लिए यह आ ही जाता है की कही अब हमारा काम बिगड़ न जाए। अब तो हम पढ़े लिखे शिक्षित है पर आज भी हमारी मानसिकता कही न कही ऐसी है की अगर हमारे साथ ऐसी कुछ घटना होती है तो यही ख्याल दिमाग में आता है की कही मेरा काम बिगड़ न जाए।

अंधविश्वास अधिकतर कमजोर व्यक्तित्व, कमजोर मनोविज्ञान एवं कमजोर मानसिकता के लोगों में देखने को मिलता है। जीवन में असफल रहे लोग अधिकतर अंधविश्वास में विश्वास रखने लगते हैं एवं ऐसा मानते हैं कि इन अंधविश्वासों को मानने एवं इन पर चलने से ही शायद वह सफल हो जाएं। इसके साथ ही और न जाने कैसे कैसे अन्धविश्वास और कुप्रथाए है जो ग्रामीण इलाको में चलती आ रही है, जिसमें लोग भोपो और ढोंगी बाबाओ पर आँख मूंद के भरोसा कर लेते है। राजस्थान के कुछ ग्रामीण इलाको में आज भी ऐसे गाँव है, जहां अंधविश्वास ने अपना कोहराम बिछा रखा है अंधविश्वासो में ऐसे चकनाचूर हो गए है की किसी की तकलीफ का एहसास तक नहीं होता और नन्हे मुन्ने नवजात मासूमो तक को इस अन्धविश्वास ने नहीं छोड़ा।

कुछ ग्रामीण इलाको में अन्धविश्वास में पड़े लोगो ने चिमटे से दाग देना यह बिमारी का इलाज माना हैं, अब सवाल यह उठता है की किसी को चिमटे से दाग देकर किसी बीमारी को कैसे ठीक किया जा सकता है ? किसी वैज्ञानिक ने तो आज दिन तक इसका कोई वैज्ञानिक परिणाम नहीं बताया। 21वी सदी के राजस्थान की ऐसे कल्पना किसी ने की भी नहीं होगी। चिकित्सा व्यवस्थाओ को चाक चौबंद करने के दावों के बीच नन्हे मासूम बच्चो को अभी भी डाम लगा कर ठीक करने की ऐसी खबरें रूंह कँपा देती है।

उदयपुर स्थित एमबी हॉस्पिटल में आए दिन ऐसे मामले सामने आ रहे है, डाम लगाने से बीमारी ठीक हो जाने का अन्धविश्वास मासूमो की जान खतरे में डाल रहा है। भीलवाडा में भी एक ऐसी रूह कंपा देने वाली खबर सामने आई है जिसमे अपने 8 माह के पोते को सांस लेने में तकलीफ और सर्दी जुकाम सही नहीं होने पर दादी ने उसे चार जगह सात डाम लगा दिए। एक छोटे से नाजुक त्वचा वाले मासूम को चिमटे से दाग देना कहाँ तक सही है, ये और बीमारी को सही करेगा या हालत खराब। डाम लगाना, चिमटा दागना से बीमारी ठीक हो जाना ऐसा अंधविश्वास बच्चो की जान खतरे में डाल रहा है। आए दिन अस्पतालों में ऐसे मामले सामने आ रहे है ,जिसमे कई बच्चो की जान चली जाती है।

अंधविश्वास से बचने के लिए आवश्यकता है अपने मन, मस्तिष्क, सोच एवं मनोविज्ञान को मजबूत करने की। अक्सर लोग, अंधविश्वासी, सुनी-सुनाई बातों के आधार पर होते हैं। कभी बिल्ली के रास्ता काटने पर उस रास्ते से बाहर जाकर देखिए, आप पर किसी तरह का कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ेगा। इसी प्रकार अन्य अंधविश्वासों पर भी प्रयोग करके देखिए, आप अपने आप इन अंधविश्वासों से बाहर निकल आएंगे। अगर आपके साथ इन अंधविश्वासों पर प्रयोग करते समय कोई अनहोनी होती है, तो यह महज एक संयोग ही होगा। इसमें कोई सच्चाई नहीं होगी।

 

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महेन्द्रा ने जीता पेसिफिक प्रीमियर लीग चौथे सीजन का खिताब

उदयपुर। झीलों की नगरी उदयपुर में चल रहा टी-20 क्रिकेट का रोमांच बुधवार को समारोहपूर्वक सम्पन्न हुआ, खिताब को टीम महेन्द्रा ने अपने नाम किया। पेसिफिक प्रीमियर लीग के चौथे सीजन में आठ टीमों ने अंतिम दो में पहुंचने के लिए काफी संघर्ष किया और बेहतरीन खेल देखने को मिला। फाइनल मैच महेन्द्रा और पेसिफिक ऑर्गेनिक के बीच खेला गया जिसे महेन्द्रा ने आसानी से जीत लिया।

पेसिफिक स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स करनपुर में हुए फाइनल मैच और प्रतियोगिता के समापन समारोह में अतिथि के रूप में उपस्थित आरसीए सचिव महेन्द्र शर्मा, एस. के. खेतान ग्रुप के मैनेजिंग डायरेक्टर एस.के. खेतान, वण्डर सीमेंट के वाइस प्रेसिडेंट सिद्धार्थ सिंघवी, युवा किसान नेता कुबेर सिंह चावडा, पीपीएल संस्थापक अमन अग्रवाल, सह-संस्थापक मनोज चौधरी, कमिश्नर डॉ. प्रकाश जैन, ओर्गेनाईजिंग सेक्रेटरी यशवंत पालीवाल ने विजेता टीम को ट्राॅफी दी। श्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए महेन्द्रा के तन्मय तिवारी को मैन ऑफ दी मैच का पुरस्कार दिया गया।

सोजतिया मार्वलस के सौरभ चौहान मैन ऑफ दी सीरीज, यूएसए ग्लोबल के युवराज सिंह बेस्ट बेट्समैन, महेन्द्रा के सचिन यादव बेस्ट बॉलर, सोजतिया मार्वलस के विश्वजीत सिंह भीण्डर बेस्ट फिल्डर रहे, इन चारों खिलाडयों को ट्राॅफी के साथ एसएस कम्पनी की ओर से एक-एक क्रिकेट किट भी दिया गया है।

पीपीएल संस्थापक अमन अग्रवाल ने बताया कि पीपीएल की शुरूआत स्थानीय स्तर पर की गयी थी, धीरे-धीरे इसकी लोकप्रियता बढती जा रही है। स्थानीय, राज्य और राष्ट्रीय स्तर के खिलाडयों के साथ इसमें विदेशी खिलाडयों ने अपनी प्रतिभा दिखाई है। चौथे संस्करण में फ्रेन्चाइजी और खिलाडयों में प्रतियोगिता को लेकर जबरदस्त उत्साह देखा गया । आगामी वर्षों में इसे आईपीएल की तर्ज पर करवाने का लक्ष्य है, अगले साल प्रतियोगिता डे – नाइट के रूप में करवाने की योजना है।

मुख्य अतिथि आरसीए सचिव महेन्द्र शर्मा ने कहा कि राजस्थान में इस तरह की प्रतियोगिताओं के आयोजन से नये खिलाडयों को अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर मिलता है । साथ ही उन्होंने आयोजकों को बधाई देते हुए कहा कि पीपीएल में नये खिलाडयों द्वारा अच्छा क्रिकेट देखने को मिला और ये उनके लिए सीखने का अच्छा अवसर है।

सह-संस्थापक मनोज चौधरी ने बताया कि फाइनल में पेसिफिक ऑर्गेनिक पहले बल्लेबाजी करते हुए पूरी तरह से लडखडाती हुई नजर आयी और 8 विकेट खोकर 128 रन ही बना पायी, टीम की ओर से सोमराज बिश्नोई ने 5 छक्कों की मदद से 62 बॉल में 70 रन तथा हितेश पाखरोत ने 11 बॉल में 14 रन के योगदान किया । टी-20 फोरमेट के अनुसार आसान से लक्ष्य का पीछा करने उतरी महेन्द्रा की टीम ने मनोज त्यागी के 56 बॉल 51 रन, तन्मय तिवारी के 22 बॉल 41 रन तथा करण सिंह के 26 बॉल में 25 रन की मदद तीन विकेट के नुकसान पर जीत हासिल कर ली। महेन्द्रा की ओर से सचिन यादव ने 2, रोहित सुथार और ध्रुव परमार ने एक-एक विकेट लिया। पेसिफिक ऑर्गेनिक के देव नारायण वेद, प्रद्युमन पारिख और हितेश पाखरोत ने एक-एक विकेट लिया।

पेसिफिक ऑर्गेनिक रनर अप रही।

एस. के. खेतान ग्रुप के मैनेजिंग डायरेक्टर एस.के. खेतान ने कहा कि वे खिलाडयों और इस तरह की प्रतियोगिताओं में सहयोग के लिए वे हमेशा तत्पर हैं। प्रतियोगिता में खेल के स्तर को देखकर कहा जा सकता है कि यहां खेले हुए खिलाडी जल्दी ही राष्ट्रीय – अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर खेलेंगे। वण्डर सीमेंट के वाइस प्रेसिडेंट सिद्धार्थ सिंघवी ने कहा कि वण्डर सीमेंट क्रिकेट अकेडमी खिलाडयों को आगे बढाने के लिए उच्चस्तरीय कोचिंग और सुविधाएं प्रदान कर रही है और भविष्य में इसका विस्तार किया जाएगा। युवा किसान नेता कुबेर सिंह चावडा ने कहा कि पीपीएल टूर्नामेंट से ग्रामीण क्षेत्रों के क्रिकेटरों को अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर मिला है, उन्होंने कहा कि सिर्फ ग्रामीण अंचल के खिलाडयों के लिए भी इस तरह की प्रतियोगिता होने से कई और खिलाडी सामने आ सकते हैं।

कमिश्नर डॉ. प्रकाश जैन ने बताया कि क्रिकेट का खेल आपसी सामन्जस्य, टीम भावना और मेहनत की सीख देता है। पीपीएल में स्थानीय से लेकर विदेशी खिलाडयों का होना इसकी लोकप्रियता का दर्शाता है। आयोजन समिति की ओर से धन्यवाद देते हुए उन्होंने कहा कि किसी भी खेल प्रतियोगिता में खिलाडयों की उपस्थिति, अनुशासन और प्रदर्शन खेल के स्तर को ऊँचा उठा देता है पीपीएल में भी यही देखने को मिला है।

आर्गेनाईजिंग सेक्रेटरी यशवंत पालीवाल ने कहा कि फ्रेन्चाइजी, खिलाडयों और दर्शकों के उत्साह को देखते हुए आगामी टूर्नामेंट को अधिक रोचक बनाया जाएगा। इस बार दर्शकों के लिए कैच पकडने पर विशेष पुरस्कार रखे गये थे ।

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जानिए कैसे साँची ग्रुप ने बनाए सबके सपनो के घर

हमारी ज़िन्दगी में कई दौर ऐसे आते हैं जहाँ हमारी ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं होता। और उन खुशियों में जब परिवार का साथ होता है, तो बात ही कुछ और होती है। फिर चाहे वो हमारी पहली नौकरी हो या हमारा पहला घर। ऐसे ही जीवन में खुशियों को भरने के लिए साँची ग्रुप ने एक शुरुआत की थी।

अक्सर लोगों के मन में ख्याल आता है कि वे किसी ऐसी जगह घर बनाए जो शहर के बीच हो। अस्पताल की सुविधाओं के साथ बच्चों के लिए स्कूल और बड़े-बूढ़ों के लिए पार्क की सुविधा भी हो। पर हर किसी का ये सपना सच नहीं होता। घर बनाने के समय कई अड़चने आती हैं। पर उन अड़चनों से आगे बढ़कर अपने सपने की और अग्रसर होना ज़रूरी है।

पर शहर के बीच, सब सुख-सुविधाओं के मध्य घर बनाना आसान है क्या? ऐसे में, साँची ग्रुप ने उदयपुर के उस जगह पर, जिसका बहुत लोगों ने आज तक नाम भी नहीं सुना होगा, वहां पर एक आशियाना बनाने की उम्मीद जगाई। कलड़वास उदयपुर शहर के उन क्षेत्रों में से एक है जो शहर के बाहर है।

लोगों के लिए ये सोचना मुश्किल है कि यहाँ पर आवास किया जा सकता है। कलड़वास उदयपुर शहर कि सीमा पर स्तिथ एक गाँव है जहाँ पर लोग तो रह रहे थे, पर दूसरी चीज़ें मिलना मुश्किल था। इसीलिए आज भी साँची ग्रुप के पास कई ऐसे लोग आते हैं जो ये सवाल करते हैं कि कलड़वास ही क्यों ?

कलड़वास में गत वर्षो में सरकार द्वारा विकास के अनंत कार्य किये गए हैं। इसका जवाब देने में सहायक निम्न बातें हैं।

school in kaladwas, udaipur

शिक्षा हम सभी के जीवन में एक महत्त्वपूर्ण दायित्व निभाती है। परिवार के हर बड़े का यही सपना होता है के उनके बच्चे पढ़-लिखकर अपना नाम बनाएं। और एक घर खरीदने से पहले उनका यही ख्याल होता है कि वे ऐसी जगह घर बनाएं, जहाँ शिक्षा को किसी भी रूप से आपत्ति या नुकसान न हो। बच्चो की शिक्षा को मद्देनजर रखते हुए यहाँ पर हिंदी व अंग्रेजी दोनों ही माध्यमों के विद्यालय एवं महाविद्यालय के निर्माण किये गए, जिससे बच्चो के विद्यालय आने और जाने में लगे समय की बचत होगी।

Cricket Stadium in Udaipur

क्रिकेट हमेशा से ही सभी का पसंदीदा खेल रहा है। फिर चाहे कोई छोटा बच्चा हो या बड़ा व्यक्ति, पुरुष हो या महिला, क्रिकेट हम सभी को एक करता है। और इससे अच्छी बात क्या हो सकती है कि क्रिकेट प्रेमियों के लिए कलड़वास में क्रिकेट स्टेडियम भी बन रहा है। इतना ही नहीं, बच्चों एवं बड़ों के मानसिक एवं शारीरिक विकास के लिए यहाँ पर पास ही में खेल का मैदान भी है।

hospitals and infrastructurein kaladwas

बढ़ती आबादी को देखते हुए सरकार भी यहाँ विकास के पन्ने पलट रही है। स्वास्थ सुविधाओं को ध्यान में रखते हुई यहाँ पर अस्पतालो के भी निर्माण हो रहे है। औद्योगिक क्षेत्र के पास होने से यहाँ पर रोजगार को देखते हुई कई कंपनियों के ऑफिस भी हैं।

साथ ही रोड नेटवर्क से संपर्क को स्थापित करने के लिए यहाँ पर 6 लेन रोड भी बन रही है। ज़ाहिर है कि जहाँ से सड़क कनेक्टिविटी आज के समय के लिए एक आवश्यक सुविधा है। चाहे हमें काम पर जाना हो, अस्पताल जाना हो, या बच्चों की सुरक्षा की बात हो, 6 लेन हर रूप में सहायक है।

हर इंसान का सपना होता है कि वो अपने परिवार के साथ सब सुख-सुविधाओं के बीच रहे। और साँची ग्रुप ने हर उस इंसान का सपना पूरा करने कि ठानी है। कलड़वास में अपनी प्रॉपर्टी बना कर साँची ग्रुप ने लोगों कि मुश्किलें हल करने कि कोशिश कि है। घर बनाना आसान बात नहीं, ये हम सब जानते हैं। उसमे लग रहा समय, सामान, और पैसा तीनो ही बहुत कीमती है।

और सबके लिए आसान नहीं कि वे उतना समय निकाल पाएं। ऐसे उन सभी लोगों के लिए, जिन्हें घर बनाने में तकलीफों का सामना करना पड़ रहा है, उनके लिए एक आसान तरीका खोज निकला है। साँची ग्रुप कि प्रॉपर्टी पूर्ण रूप से सुख-सुविधाओं से सुसज्जित है।

साँची ग्रुप उम्मीद करता है कि वो कलड़वास में भी घर बनाकर लोगों को ग्रामीण क्षेत्र के विकास कि ओर अग्रसर करे। साँची ग्रुप के अधीन ड्रीम हाउस, घर-आँगन और विलाज , जैसी प्रोपर्टियां हैं। आइये जानते हैं, इन प्रॉपर्टीज में क्या है।

1. घर-आँगन

साँची ग्रुप के सभी प्रोजेक्ट्स में से सबसे पहले आता है घर-आँगन। सभी 1680 घरों के नक्शों को इस प्रकार बनाया है कि रौशनी और हवा कि आवाजाही रहे। सभी घरों से बाहर कि सुंदरता और हरियाली का खूबसूरत नज़ारा दिखाई पड़ता है।

2. ड्रीम हाउस

 

ड्रीम हाउस यानि सपनो का घर। और साँची ग्रुप ने इस प्रोजेक्ट से सभी को किफायती दामों पर अपने सपनो का घर लेने कि उम्मीद दी है। आस-पास हरियाली और अरावली कि वादियों के साथ यहाँ घर लेने के कई फायदे हैं।

3. साँची विलाज

विलाज 3BHK डुप्लेक्स फार्महाउस प्रोजेक्ट्स हैं। शहर कि भाग-दौड़ से कुछ ही दूर, यहाँ रहने का अलग अनुभव है।

एक मकान को घर बनाने के लिए परिवार के साथ साथ मकान बनाने वाले कि अच्छी नियत कि भी ज़रूरत होती है। साँची ग्रुप का यही मानना है कि मकान बनाने के साथ-साथ आस-पास के क्षेत्रों में विकास हो, लोगों का कल्याण हो, और सभी को अपने सपनो का घर मिले।

यदि आप भी चाहते हैं कि आपका घर आपके सपनो का हो, तो अभी +91 9829281423 पर फ़ोन लगाइये ओर जानिए साँची ग्रुप कि प्रॉपर्टी में इन्वेस्ट करने के फायदे।

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Don’t Worry About the Future of Your Family, Plan This Way

For most people, family is a ray of hope in their existence. And to ensure the safety of the family, they can take any measures. But for the family’s breadwinner, there are always concerns regarding the family’s safety even in their absence. The best way to protect the future of your family is through planning. And that too as early as possible. Read on to more about how to plan for your family’s future.

1. Create a Budget

The first and foremost thing to do while planning for a family’s future is to create a budget. A budget will give you a clear understanding of the sources of income and expense channels. This will, in turn, lead you to the next step, managing the expenses.

2. Manage the Expenses

You can drastically reduce the total family expenditure each year by managing your expenses. As we all know, saving money is earning money. So, you can use this saved money for other requirements. And if there are no special requirements, you can divert these funds into savings and investments.

3. Participate in Investments

The benefits of investments always outweigh those of savings. As investments grow over time rather than accumulate, like in the case of savings, they can beat inflation. Inflation decreases the value of money with the passage of time. So, to ensure that your fund’s value doesn’t decrease over time, you must always choose investment plans with interest rates higher than the projected inflation rates. Some of the preferred investments that provide high returns are:
• Term Insurance Plans
• Gold
• Equity
• Stocks
• Mutual Funds
• Assets
• Bonds
• Government Savings Schemes
• Post Office Schemes

4. Term Insurance Plan

Term insurance plans are considered to be an effective choice in India by many generations. The main attraction of buying a term insurance plan is higher sum assured. Term insurance policies can provide the maximum cover even with a lesser premium. Given below is a general flow of procedures involved in purchasing the best term plan.

5. Prerequisites

Like any other mode of investment or payment, there are several things that you must consider before purchasing term insurance. The foremost things to do before purchasing are comparison and reliability of insurance providers. These allow you to choose a credible insurer who will be of use when you need them the most. You can even get a rough knowledge of the insurer’s credibility by knowing their claim-settlement ratio.

6. Selection

The selection procedure after finalizing an insurer involves the customization of plans and choosing the most suitable plan. By doing so, you can reduce a lot of monetary burden from your family expenses towards a term insurance plan. Before finalizing and purchasing the best term plan, ensure that you have gone through the policy terms and conditions. Their knowledge will clarify the liabilities and hidden clauses in the policy.

7. Purchasing

Best insurance plan providers give online and offline payment options to the customer. Even though the online mode is convenient and has the benefits of insurer offers and schemes, offline purchasing will provide you with first-hand consultation from an authorized insurance agent. It will help you further know your chosen plan in a better way.

8. Claim Procedure

Understanding the claim procedures will always come in handy in times of dire need. It is always advisable that at least two family members learn the claim procedures other than the policyholder.
A Term Insurance Plan is the best method to protect the future of your family. You can find several insurers who provide maximum returns to the policyholder’s family in case of their untimely demise.

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Gain Desired Shape Lips & Face Without Plastic Surgery

CEO of the Arth Group, Dr. Arvinder Singh, has received the Life Time Membership of the International Face Injector Society. By receiving the special training for these qualifications from International academy of Aesthetics training, Sweden, Dr. Arvinder Singh has received this honor. 

Face Injector technique is a non-invasive process through which lips and face can be shaped in the way one wants, without any surgery.  The training helps the practitioner to get an artist’s touch and remove wrinkles of the face, pits under the eyes, chin shaping, beautiful lips and so on. The results through this procedure can be achieved in just a few hours. The specialty of this procedure is that the client can see the changes happening simultaneously while being filler injection and can choose the shape according to his/her liking and way.

The face is a delicate place and plays a huge role in leaving an impression on the people we meet, so special training is necessary for injection on the face.

National Secretary of International Face Injector Society, Dr. Rajat Bhandari, gave membership to CEO of the Arth group Dr. Arvinder Singh and said that Dr. Singh received the special training required for this qualification from International Academy of Aesthetic Training, Sweden and met the credentials and quality standards to achieve the Life Time Membership of the International Face Injector Society.

Address: 3rd Floor, 4C Arth Building, behind Bhartiya Lok Kala Mandal, Madhuban, Udaipur, Rajasthan 313001
Phone Number: 8669855945 (Morning 10 am to Evening 5 pm)
Email id: Info@arthskinfit.com

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How to Choose the Best Term Insurance Policy?

When it comes to financial planning, insurance may not be the first thing that comes to mind. You, like the majority of Indian families, may not have considered the value of maintaining an emergency fund. The necessity for term insurance can no longer be avoided, given the rise in severe illnesses, accidental deaths, and a general increase in vulnerability to environmental dangers. It is a crucial part of financial planning to find the best term insurance plan that can provide adequate security to your loved ones in your absence. 

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Hence, term insurance should be included in the financial plan of everyone who is responsible for the well-being of another family member. When you insure your life with an appropriate term life insurance policy, you may rest assured that your loved ones will have a pleasant life after you are gone.

However, the decision to choose the best term insurance can be difficult for most people, if you are not familiar with how insurance policies work. Hence, we have compiled a list of things you need to look at to ensure that you choose the best term insurance policy for your loved ones:

  • Your Life Value

The primary motive for purchasing life insurance is to provide financial security to your dependents in the event of your untimely demise. A policyholder expects the term life insurance policy to cover their dependents financially in such a scenario. As a result, they must ensure that their life insurance coverage is sufficient to support them. The insurance must cover the individual’s human life value. 

Simply described, the HLV is the sum of an individual’s earnings and liabilities, such as loans. This is the foundation for life insurance coverage, and the best term insurance plan for an individual is one that includes at least the HLV.

  • Premium Prices

Premium is a key aspect that has a significant impact on whether or not a person decides to buy a term life insurance policy. The premiums charged by different providers for term insurance plans can vary considerably depending on the features and benefits offered under the policy. However, as a policy buyer, it is important to not make price the most important consideration when selecting the best term insurance policy. It is best to do a thorough term insurance comparison and choose the one that offers the best coverage and perks, suited to your particular requirements. 

  • Additional Benefits

Aside from death, there are various other dangers that can jeopardize the financial stability of your dependents, such as accidents, critical illness diagnosis, disabilities due to accidents and so on. A rider is an add-on benefit that can be added to the base policy for an additional premium to provide financial protection against such risks. 

When choosing the best term insurance, look for one that offers a variety of rider alternatives such as critical illness rider, accidental death & disability rider, return of premium rider, waiver of premium rider and more. These riders can help you customize the policy as per your financial profile

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  • Claim Settlement Ratio

The claim ratio is another significant factor to consider when purchasing a term life insurance policy. Before you pick an insurance, make sure to look at their claim ratio, which is the total number of claims filed against the number of claims the company has settled. 

  • Flexibility to Increase Cover

The freedom to increase life insurance coverage during important stages of a policyholder’s life is a feature offered by some insurers’ term plans. For example, an insurer may allow policyholders to increase their life insurance coverage by a certain percentage when they marry or when they become parents. This allows policyholders to begin with a basic level of coverage and gradually increase coverage as their responsibilities grow, as well as their ability to pay greater premiums.

  • Buying Ease 

Term life insurance is the simplest and most straightforward type of life insurance in the market. It can be easily purchased online by providing a few basic details and getting an insurance quote on a reputed insurer’s website such as Max Life Insurance. 

The internet has simplified the process of purchasing a term plan. A healthy individual, as defined by the insurer, can now purchase a term plan on the company’s website without having to take a medical exam.