66 साल बाद हुआ ‘‘आज़ादी का बटँवारा’’
उदयपुर। स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर फतह सागर की पाल पर नाट्यांश के द्वारा एक नुक्कड़ नाटक का मंचन किया गया। ‘‘आज़ादी का बटँवारा’’ नामक यह नाटक भारत की वर्तमान की स्थितियों पर आधारित था।
15 अगस्त 1947 को हमारें देश को आज़ादी मिली थी, परन्तु सच्चाई कुछ और ही हैं। हमारा हिन्दुस्तान आज़ाद तो हुआ पर तीन टुकड़ों के साथ। आज़ादी के 66 साल बाद बटँवारे की ये आग फिर भड़क रही हैं और 20 नये राज्यो की मांग सामने आई हैं।
पहले हम अंग्रेज़ो के गुलाम थे और अब हम भ्रष्टाचार, दहेज हत्या, कन्या-भ्रुण हत्या, बलात्कार, शहीदों की मौत पर होने वाली बयानबाज़ी, शान्ती वार्ताएं और राजनीति जैसी बुराईयों के गुलाम हैं। कलाकारो ने इस नुक्कड़ नाटक के माध्यम से एसी ही बुराईयों के खिलाफ आवाज़ उठाने का प्रयास किया हैं।
अन्त में भारत-पाक सीमा पर शहिद 5 भारतिय सिपाहीयो की दिवंगत् आत्मा की शान्ती के लिये 2 मिनट का मौन रख कर श्रद्धांजलि अर्पित की गयी।
इस नाटक में राम प्रसाद बिस्मील, सुभद्रा कुमारी चैहान, पीयुष मिश्रा, गोपाल दास व्यास, सुधिर सक्सेना और प्रदीप पाठक की कविताओं का उपयोग किया गया है।
कलाकारों में शुभम शर्मा, मोहम्मद रिज़वान, विशाल राज वैष्णव, भारत कुमावत, जतिन नाहर, महेन्द्र ड़ांगी, अब्दुल मुबीन खान पठान, रेखा सिसोदिया एवं अमित श्रीमाली ने अपने अभिनय की छाप छोडी। साथ ही अश्फाक़ नूर खान पठान और सुधिर सिंह ने भी सहयोग किया। इस नाटक का लेखन अमित श्रीमाली ने किया। परिकल्पना और निर्देशन नाट्यांश द्वारा किया गया।
अमित श्रीमाली
संयोजक
नाट्यांश