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माटी बचाने के लिए सद्गुरु निकले बाइक पर, पहुंचे उदयपुर

ईशा फाउंडेशन के सद्गुरु, यानि जग्गी वासुदेव बुधवार को उदयपुर शहर पहुंचे। शहर में उनका ज़ोरों-शोरों से स्वागत किया गया। मेवाड़ पूर्व राजपरिवार के सदस्य लक्ष्यराज सिंह जी ने सिटी पैलेस में सद्गुरु जी का भाव विभोर अभिनन्दन किया। दरबार हॉल में दोनों के बीच संवाद भी हुआ। सद्गुरु माटी बचाने के लिए 100 दिन की 30000 किमी यात्रा मिट्टी बचाओ अभियान (जर्नी टू सेव सॉइल) के तहत बाइक पर निकले।

सद्गुरु भविष्य में मिट्टी संकट के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए 25 देशों से गुजरते हुए अंतिम चरण में गुजरात के रास्ते भारत पहुंचे। उदयपुर से राजस्थान में उनका प्रवेश हुआ। इस अभियान के तहत वे दुनिया का ध्यान विलुप्त होती मिट्टी की ओर कर रहे हैं। लोगो को मिट्टी की सुरक्षा, पोषण और उसे बनाये रखने के लिए निति की मांग करने के लिए प्रेरित कर रहे है ताकि 193 देशों में मिट्टी की जैविक सामग्री को कम से कम 3-6% तक बढ़ाने और बनाये रखने की दिशा में नीतिगत बदलाव लाया जा सके।

लक्ष्यराज जी ने संवाद के दौरान पूछा की कोरोना के दो साल आपदा भरे थे, लोग आज भी मानसिक परेशानी में है, इससे कैसे उबर सकते है? सद्गुरु जी ने कहा की जो लोग इस महामारी में अपनों को खोकर मानसिक परेशानियों से जूझ रहे है, उन्हें नई सोच, नई ऊर्जा के साथ उनके सपनों को साकार करने के लिए फिर से उठ खड़ा होना होगा। यही जीवन की नई उमंग है। सवाल जवाब के चलते सद्गुरु जी ने ये भी कहा की वैश्विक स्तर पर बड़ी नीति लाकर ही परिस्थिति का संरक्षण किया जा सकता है। मिट्टी माताओं की माँ है और माटी को माँ मानकर मानवता के साथ इसे संरक्षित करना होगा। इसी से भावी पीढ़ी बेशुमार मुश्किलों से बच पाएगी।

सद्गुरु जी कौन है?
सद्गुरु का असली नाम सद्गुरु जग्गी वासुदेव है। उनके बचपन का नाम जगदीश है। सद्गुरु का जन्म 3 सितंबर 1957 को मैसूर, कर्नाटक में हुआ। जग्गी वासुदेव एक लेखक भी हैं जिन्होंने 100 से भी ज्यादा पुस्तकें लिखी है। इन्हें भारत सरकार की तरफ से 2017 में पद्म विभूषण अवार्ड से भी सम्मानित किया गया। जग्गी वासुदेव की एक लाभ रहित संस्था भी है जिसका नाम ईशा फाउंडेशन है। यह संस्था मानव सेवा तथा योग सिखाने का काम कर रही है। यह संस्था विश्व के कई देशों में काम करती है जिसमें प्रमुख रुप से अमेरिका, सिंगापुर, इंग्लैंड, लेबनान, और ऑस्ट्रेलिया में योग सिखाने का काम कर रही है।

सद्‌गुरु ने आपने अपने आश्रम में आदियोगी की इतनी विशाल मूर्ति बनवाई है। जो भी वहां जाता है, वह उस मूर्ति को देखकर अभिभूत हो जाता है। आदियोगी भगवान शिव की 112 फुट की प्रतिमा को गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स ने दुनिया की सबसे बड़ी आवक्ष प्रतिमा के रूप में दर्ज किया है। इस बात की जानकारी गिनीज बुक ने अपनी वेबसाइट के जरिए साझा की है। ‘आदियोगी’ के नाम से बनी शिव की अर्धमूर्ति की ऊंचाई 112.4 फीट है, 24.99 मीटर चौड़ी और 147 फीट लंबी है।

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