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आखिर ये कुरीति थमने का नाम क्यों नहीं लेती ?

हिन्दू संस्कृति में एक व्यक्ति के जन्म से मृत्यु तक सोलह तरह के पर्व उत्सव होते है जिन्हें संस्कारों का नाम दिया जाता हैं। जिनमें विवाह एक महत्वपूर्ण संस्कार माना गया हैं, प्रत्येक दौर में विवाह को दो पवित्र भावनाओं के बंधन के रूप में स्वीकृति दी गई जो अगले सात जन्मों तक एक दूसरे का साथ निभाए। बदलते वक्त के साथ विवाह संस्कार में कई तरह की बुराइयां सम्मिलित हो गई और इन कुरीतियों के चलते विवाह व्यवस्था विकृति का शिकार हो गई। जिसका एक स्वरूप हम बाल विवाह अथवा अनमेल विवाह के रूप में देखते है। यह कुरीति भारतीय समाज के लिए अभिशाप साबित हो रहा हैं।

बाल विवाह की कुप्रथा-
ऐसा नहीं की यह कुप्रथा का प्रचलन भारतीय सामाजिक व्यवस्था में पहले से है, जब अंग्रेजी शासको ने भारत को बंधी बनाया था तब विदेशी शासक बेटियों को भोग की वस्तुए समझकर उन्हें ले जाते थे ऐसे में गरीब निम्न वर्गीय परिवार ने बेटियों का बचपन में विवाह करवाना शुरू कर दिया था और ऐसे दौर में यह कुप्रथा का प्रचलन शुरू हो गया। मध्यकाल में एक दौर ऐसा भी आया जब बेटी के जन्म को अशुभ माना जाने लगा। शिक्षा के अभाव तथा स्वतंत्रता न होने के कारण लड़कियाँ इसका विरोध भी नहीं कर पाती थी। छोटी उम्र में विवाह हो जाने के कारण दहेज भी कम देना पड़ता था। इस कारण से मध्यम तथा निम्न वर्गीय परिवारों में बाल विवाह की प्रथा ने अपनी जड़े गहरी जमा ली थोड़ी सी सहूलियत के लिए शुरू हुई ये प्रथाएं आज बेटी के जीवन का अभिशाप बन गई हैं। इस गलत परम्परा को निरंतर आगे बढ़ाया जा रहा हैं। बेटी को कम उम्र में ही ब्याह दिया जाता है जिससे कई तरह कि समस्याएं उत्पन्न होने लगती हैं। कम उम्र में विवाह से बालिका के शारीरिक मानसिक स्वास्थ्य में बाधक तो हैं ही साथ ही जल्दी संतानोत्पत्ति होने से जनसंख्या में भी असीमित वृद्धि हो रही हैं। इन सब कारणों से बाल विवाह एक सभ्य समाज के लिए अभिशाप ही हैं।

बाल विवाह को रोकने के लिए सरकार कितने कदम उठा रही है, कितने जागरूकता अभियान और योजनाएं आदि चला रही है लेकिन यह कुरीति आखिर थमने का नाम कहा लेती है। पारिवार के दबाव में भी कुछ लड़कियों के बाल विवाह हो जाते है, आधे लोग अपनी गरीबी की वजह से बाल विवाह करवा देते है और कुछ लोग दहेज़ कम देना पड़े इस वजह से।

इसी तरह अपने प्रदेश उदयपुर में भी यह प्रथा अभी तक बरकरार है, प्रदेश में हर चौथी महिला का बाल विवाह हो जाता है। यह खुलासा राष्ट्रीय स्वास्थय सर्वेक्षण (एनएचएफएस -5) की रिपोर्ट साल 2019-2021 में हुआ। रिपोर्ट के मुताबिक राजस्थान का देश में बाल विवाह का 7वां नंबर है। कुल 25.4 प्रतिशत महिलाओं के बाल विवाह हुए हैं। प्रदेश में 2018 से 2021 के दौरान कुल 1216 बाल विवाह हुए है सबसे ज्यादा मामला अलवर, जोधपुर और उदयपुर में आए है।

उदयपुर में 64 बाल विवाह हो चुके है। ये मामला शहरी क्षेत्रों में 15.1 प्रतिशत और ग्रामीण इलाके में 28.3 प्रतिशत तक रहा। इस से पहले की रिपोर्ट साल 2015-2016 में महिला बाल विवाह में यह मामला 35.4% रहा। हाल ही जारी रिपोर्ट में संभाग के चित्तौडगढ़ में 42.6 % सबसे ज्यादा बाल विवाह के मामले सामने आए है, भीलवाड़ा में 41.8%, झालावर में 37.8% ,उदयपुर में 18.2%, गंगानगर में 13.6%, कोटा में 13.2%, और पाली में 11.8% रहा।

बाल विवाह में आई गिरावट –
सरकार ने बाल विवाह के खिलाफ कई अभियान बनाए है, बाल संरक्षण की अध्यक्ष संगीत बेनीवाल बताती है कि बाल विवाह के मामले रोकने के लिए नए -नए कार्यक्रम पर काम हो रहा है। ” चुप्पी तोड़ो, हमसे बोलो”, बाल विवाह अपराध है और बाल विवाह को न जैसे कार्यक्रम के जरिए एनजीओ स्वयंसेवी संगठन के माध्यम से इसे रोकने में लगे हुए है ग्रामीण क्षेत्रो में लगातार जागरूकता अभियान चलाए जा रहे है इस से बाल विवाह के मामले में गिरावट आई है, बच्चे अब खुद ही सतर्कता रखने लगे है और ऐसी स्थिति में वे स्वयं ही थाने चले जाते है और पुलिस प्रशासन को सुचना देते है या कॉल कर देते है।

अब बच्चे भी हो रहे है जागरूक –
पिछले साल नवंबर में एक बच्ची का बाल विवाह होना था उसने हिम्मत करके इसकी सुचना दी थी तब अध्यक्ष संगीता बेनीवाल ने लड़की के परिजनों को समझाया भी था पर उसके परिजन के नहीं मानने पर बच्ची को बालिका गृह में रखा गया था।

बाल विवाह के मामलों में कमी –
देश में लड़कियों की शादी की सही उम्र 18 वर्ष है और लड़के की 21वर्ष। पिछले साल के मुताबिक अभी की रिपोर्ट दोनों का अगर आंकलन किया जाए तो पिछली रिपोर्ट से इस बार 10% कमी आई है। पिछली सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक़ महिला बाल विवाह 35.4 % रहा और अब यह आंकड़ा 25.4% फीसदी रहा।

कम उम्र में बच्चों की शादी कर देने से उनके स्वास्थ्य, मानसिक विकास और खुशहाल जीवन पर असर पड़ता है। यह उम्र उनके खेलने कूदने की होती है, इस तरह उनकी जल्दी शादी करवा कर शादी के इस बंधनो में बाँध देना कहा तक सही है ? पढ़ने लिखने की उम्र में उन पर घर परिवार के काम का बोझ डाल देना कहां तक सही है ? सपनो के पंख को खुलने से पहले ही उन्हें इस प्रकार तोड़ देना कहा तक उचित है ? क्या उनसे इस प्रकार उनका बचपन छीन लेना कहा तक सही है ?

कितने ग्रामीण इलाको में ऐसी लडकियां है जो होशियार है, जीवन में बहुत कुछ बड़ा हासिल कर सकती है पर परिवार की नासमझी की वजह से और ग्रामीण इलाका जहां लोग इतने शिक्षित नहीं होते है ऐसे में उनके सपनो को उनके अंदर तक ही सीमित रख दिया जाता है और उनकी प्रतिभा को बहार दिखाने पर उन्हे गलत साबित कर दिया जाता है। किताबे थमाने की उम्र में वरमाला थमा दी जाती है। बस्तो के बोझ को उठाने की जगह घर परिवार की जिम्मेदारियों का बोझ उठाने को दे दिया जाता है। अशिक्षित समाज में लड़कियों को पढ़ाना आज भी एक प्रश्न हैं।

बाल विवाह की समस्या को रोकने के उपाय-
समय समय पर समाज सुधारकों ने इस तरह की कुप्रथाओं को मिटाने के प्रयास किये हैं। हमारी संसद ने भी बाल विवाह निषेध के लिए कठोर कानून बनाए हैं और लड़के तथा लड़की के विवाह की न्यूनतम आयु निर्धारित की हैं । विवाह की न्यूनतम आयु से पूर्व होने वाले विवाह को बाल विवाह माना जाता है तथा यह गैर कानूनी अपराध की श्रेणी में गिना जाता हैं। बाल विवाह की शिकायत प्राप्त होने पर दोनों पक्षकारों को कड़ी सजा तथा जुर्माने का प्रावधान होने के बावजूद हमारे देश में बाल विवाह आज भी हो रहे हैं।

ग्रामीण इलाको में तो नासमझी, अशिक्षित, शिक्षा का अभाव, कुप्रथाए जो चली आ रही है इस वजह से मान सकते है की बाल विवाह हो रहे है पर यह शहरी इलाको में भी ऐसे हाल क्योँ है। बाल विवाह हमारे आधुनिक समाज में गहरे तक व्याप्त ऐसी कुप्रथा है जिसका दुष्परिणाम लड़के तथा लड़की दोनों को भुगतना पड़ता हैं। इस प्रथा के चलते समाज में कई बुराइयाँ उत्पन्न हो चुकी हैं। आज के समय में बाल विवाह समस्या का निवारण बेहद जरुरी हो गया हैं इसके बिना बेटियों को इस अभिशाप से मुक्त नहीं किया जा सकता हैं।