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उदयपुर के चौराहों के अजीब नाम जो अपने आप में एक अनोखी कहानी समेटे हैं।

हर शहर अपने अंदर बहुत सारी कहानियाँ समेटे हुए होता है। जिसके शहरी उन कहानियों से अनजान होते है,और वो कहानियाँ इतिहास के तह-खाने में कहीं पड़ी पड़ी धूल फ़ाँक रही होती हैं। उदयपुर शहर की भी कुछ ऐसी ही कहानियाँ जो इतिहास के झरोखों से किसी नयी पीढ़ी के ज़हन में बस जाने के इंतज़ार में झांक रही है, पर आज की पीढ़ी की ज़रूरतों ने ज़िंदगी को इस क़दर व्यस्त कर दिया है कि हमें उन बातों को जानने की फ़ुरसत ही नहीं मिलती है। लेकिन हमने आपका काम आज आसान करने की सोची और आपके लिए लाए हैं शहर की कुछ बातें।

क्या आपने कभी उदयपुर शहर के चौराहों के नामों पर गौर किया है?

हर एक शहर में कुछ चीज़ें उसकी पहचान से जुड़ी होती हैं । आप आम तौर पर किसी शहर में चले जाओ तो वहाँ आपको शास्त्री सर्कल, प्रताप सर्कल,अम्बेडकर चौराहा या गांधी चौराहा मिल जाएगा। लेकिन उदयपुर शहर में प्रवेश करते ही आपकी मुलाकात ठोकर चौराहा,सेवाश्रम चौराहा, भट्टा  चौराहा से होगी और तब तक होती रहेगी जब तक कोई योगी जी आकर इनका नाम ना बदल दें । आप अक्सर इन चौराहो को पार करते समय सिर्फ इतना ख़याल रखते है कि कोई पुलिस कांस्टेबल आपको ना पकड़ ले और झट से उसे पार कर लेते है और अगर बिना पकड़ाए पार कर लेते हैं , तो खुश हो जाते हैं |

लेकिन क्या कभी आपने थोड़ा ठहर कर इन चौराहों के बारे में जानने कि कोशिश की है, कि इनके नाम ऐसे क्यों है?

नहीं की होगी, हम बता देते है।

ठोकर चौराहा

शहर में प्रवेश करते ही आपका सामना ठोकर चौराहे से होगा. “ठोकर” एक मेवाड़ी शब्द है जिसका मतलब एक ब्रेकर भी हो सकता है, और कोई ऐसी जगह भी होती है जहाँ लोग आकर कुछ पल के लिए रुकते हो। अब नाम भी जनता ने रखा है तो जनता के पास अलग अलग कहानियाँ भी है।

सिंघानिया लॉ कॉलेज के डीन डॉ.धर्मेश जैन ने बताया कि  मादड़ी इंडस्ट्रियल से आते वक़्त यहाँ चौराहे से पहले चढ़ाई होती थी जिसकी वजह से इसे ठोकर कहाँ जाने लगा और इस चौराहे का नाम ठोकर चौराहा पड़ा।

वहीं आयड़ में रहने वाले एक बुजुर्ग से बात की, तो उन्होंने कहा कि आयड़ से आने वाली सड़क पर  यह पहला चौराहा था और यहाँ आस पास के लोग मजदूरी पर जाने से पहले रुका करते थे, बातचीत किया करते थे, और इसे ठोकर कहा जाने लगा, एक लैंडमार्क की तरह। फिर बाद में साल बीतते गए  और मादड़ी  से आने वाली चढ़ाई को भी ख़त्म कर दिया गया पर इस चौराहे ने ठोकर नाम को अपना लिया और खुद का एक अस्तित्व स्थापित कर दिया है।

सेवाश्रम चौराहा

सेवाश्रम चौराहे पर बजाज कॉर्प लिमिटेड नाम की एक कंपनी का ऑफिस है जिसकी स्थापना 1965 में हुई थी। अब आप सोच रहे होंगे कि कैसा लेखक है, चौराहे की बात करते करते कंपनियों की बात करने लगा है, पर सेवाश्रम चौराहे के नाम के पीछे हाथ भी इसी कंपनी का है। इस का नाम पहले बजाज सेवाश्रम था और इसी कंपनी के नाम के कारण इस चौराहे ने सेवाश्रम नाम से अपनी पहचान बनाई जो आज भी कायम है।

कुम्हारों का भट्टा

अगले विचित्र नाम के साथ नंबर आता है भट्टे चौराहे का और आप सोच रहे होंगे इसमें क्या है, यह तो सामान्य नाम है, और हम सभी इसके बारे में जानते है। पर ज़रा ठहरिये! कुछ नया लाये है।

यह हम सभी जानते हैं  कि यहाँ रहने वाले कुम्हार समुदाय के कारण इसका नाम कुम्हारों का भट्टा है पर क्या आप यह जानते हैं  कि भट्टे पर रहने वाले कुम्हारों को मेवाड़ राजघराना उत्तरप्रदेश से लेकर आया था, मिट्टी के सामान की अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए। आज यहाँ रहने वाले लोगो की छठी, सातवीं पीढ़ी है| शहर का फ़ैलाव होने के बाद यह चौराहा शहर के बीच में आ गया और भट्टों से निकलने वाले धुँए के प्रदूषण  कारण सरकार ने भट्टों पर रोक लगा दी। आप जब चौराहे के अंदर गलियों में प्रवेश करेंगे तो लोग आपको आज भी वहां मिट्टी के सामान बनाते हुए मिल जायेंगे और दीवाली के मौके पर शहर के दीयों की जरूरत भी यही पूरी करते है। भट्टे तो रहे नहीं पर एक छाप रह गयी है उन भट्टो की, जो इस चौराहे के नाम के रूप में लोगों  को अतीत की याद दिलाता रहेगी ।

दुनिया में चल रही रेट रेस हमें अपनेपन के एहसासों से बहुत दूर ले गयी है। हम उन चीज़ों के बारे में भी कुछ नहीं जानते जहाँ अपनी ज़िंदगी के सबसे हसीन पल गुजार दिए हैं ।

कुछ जगहों से आपको जुड़ाव जरूर होगा पर आप उनके बारे में अगर कुछ नहीं जानते हैं  तो वो जुड़ाव आपको आनंदित नहीं करेगा। मैं आशा करता हूँ कि इस आर्टिकल को पढ़ने के बाद आपका इन चौराहों को देखने का नज़रिया बदलेगा। ऐसी कई बातें और कहानियां हैं जो आपका इंतज़ार कर रही हैं । ज़रूरत है तो बस आपकी  कुछ पलों की  फुर्सत की…

अगर आप भी शहर की ऐसी जगहों के बारे में जानते है तो हमें बताएं कमेंटबॉक्स में और अगर किसी जगह की कहानी जानना चाहते है तो भी सुझाएँ  ताकि हम आपके लिए ऐसी और कहानियाँ निकाल कर ला सकें |

 

यह एक गेस्ट आर्टिकल है जिसके लेखक अंसार मंसूरी है.

 

 

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Sukhadia Circle

Sukhadia Circle, Also Called The Heart Of Pachwati, Is An Splendid Turn Around Panchwati, Located In The North Of The Udaipur City. This Square, Is A Small Pond, With Ample Of White Beauty. Admist Of This Pond Lies A  21 Ft High Three-Tiered Fountain. This Fountain Made Up Of Marble Is Surmounted By A Wheat-Ear Motif, Which Is A Well Known Landmark Of Prosperity. Usually Provides A Superb View at Night When It Is Enlightened up by the Elucidation of Bright Lights, Creating A Sense Of Ecstasy In Everyone’s Mind. It Is Also Surrounded By Many Pleasant Gardens. This Sense Of Wet Greenary Creates A Feeling Of Peacefulness Among The People And Generate Attraction In The Mind Of Every Lovers.

These Squares Draws The Attention Of Everyone But Especially Children. People Are Usually Fond Of Water And Therefore Their Burning Desire Of  Boating Is Fulfilled Here. Children Make Funs In The Lawns And Float Toy Boats In The Pond. There Are Some Duck Shaped Paddle Boats And Many Other Varieties Of Quality Boats For Children’s Amusement. This  Centrepiece Is Again Attracted By The Food Stalls Which Surrounds It. The Delicious Pav Bhaji, Chola Bhaturaas, Chaumeen’s And Burgers Again Bounds Everyone To Visit This Place And Have The Fourishing Experience Of It. Families And Friends Come Together, Especially At Night, Playing Music ,Having Dozens Of Food, Cold Drinks And Tea Stalls Do A Thriving Trade. It Has Become A Popular Recreational Centre And Meeting Place For All Everyone To Visit .

Its Foundation Was Laid In 1968 And Was Opened In 1970.Sukhadia Circle Commemorates The Memory Of Udaipur Mohan Lal Sukhadia, One-Time Chief Minister Of Rajasthan And A Native Of Udaipur.