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साहस और वीरता के प्रतीक – महाराणा प्रताप जयंती 2022

उदयपुर शहर योद्धाओं की भूमि है, जहां कई सारे वीरों का जन्म हुआ है। उन सब वीरों में से एक वीर महाराण प्रताप भी है जिन्होंने अपनी आखिरी सांस तक स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ी। उनके प्रयास के कारण आज मेवाड़ नगरी एक स्वतंत्र भूमि है।

आज दिनांक 2 जून को हम महाराणा प्रताप जयंती के रूप में स्वतंत्रता का जश्न मनाएंगे। वीर प्रताप मेवाड़ के ऐसे हिंदू शासक, जिन्हें भारत के राजपूत शासकों में बहादुरी का सबसे अच्छा उदाहरण माना जाता है और जिनसे सभी मेवाड़ लोग प्रेरित होते हैं। महाराणा प्रताप जयंती प्रतिवर्ष ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाई जाती है।

हिंदू पंचांग के अनुसार वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप का जन्म विक्रम संवत् 1597, ज्येष्ठ माह शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि को हुआ था। और इस साल, अंग्रेज़ी कैलेंडर के अनुसार, यह तिथि 2 जून 2022, गुरुवार को है। महाराणा प्रताप ने अपनी शिक्षा प्राप्त कर बहुत कम उम्र में हथियारों और उनके उपयोग के कौशल में महारत हासिल की। उन्होंने इस दौरान घुड़सवारी भी सीखी।

उनके पिता महाराणा उदय सिंह द्वितीय और माता रानी जयवंता बाई थीं। वे 25 भाइयों और 20 बहनों में सबसे बड़े थे और मेवाड़ के 54वें शासक थे। वे सिसोदिया राजपूत वंश के थे। 17 साल की उम्र में उनका विवाह राजकुमारी अजबदे ​​से हुआ था।

maharana pratap jayanti 2022

Credits: IndiaToday

महाराणा प्रताप में बचपन से ही वह जुनून था जो एक क्षत्रिय राजा में होना चाहिए। उन्होंने मुगल बादशाह अकबर की गुलामी करना नहीं स्वीकार किया। इसके लिए उन्होंने कई सालों तक बहुत संघर्ष किया। राजस्थान के कई परिवार अकबर की शक्ति के आगे घुटने टेक चुके थे, किन्तु महाराणा प्रताप अपने वंश को कायम रखने के लिये संघर्ष करते रहे और अकबर के सामने आत्मसर्मपण नहीं किया जंगल-जंगल भटकते हुए तृण-मूल व घास-पात की रोटियों में गुजर-बसर कर पत्नी व बच्चे को विकराल परिस्थितियों में अपने साथ रखते हुए भी उन्होंने कभी धैर्य नहीं खोया।

1568 में, जब महाराणा सिर्फ 27 वर्ष के थे, मुगल सम्राट अकबर ने चित्तौड़ पर विजय प्राप्त की। महाराणा उदय सिंह, उनके पिता, ने चित्तौड़ छोड़ने का फैसला किया और गोगुंदा चले गए। इसे अवसर मानकर उनके सौतेले भाई जगमल ने गद्दी छीन ली। जब जगमल मामलों का प्रबंधन करने में असमर्थ था तो वह महाराणा प्रताप से बदला लेने के विचार के साथ अकबर की सेना में शामिल हो गया।

महाराणा प्रताप को अपने जीवन में कई संघर्षों का सामना करना पड़ा। वे जीवन भर अकबर से लड़ते रहे। अकबर ने महाराणा प्रताप से जीतने के लिए कई तरह के प्रयास किए लेकिन वह हमेशा असफल रहा।

हल्दी घाटी युद्ध

हल्दीघाटी युद्ध भारतीय इतिहास में एक ऐतिहासिक घटना है, राजपूत और मुगल राज्यों के वार्षिक में। यह वह लड़ाई थी जिसमें महाराणा प्रताप के प्रिय घोड़े चेतक ने कई बहादुर चालें निभाईं, लेकिन अंत में कुछ गंभीर चोटों के कारण उसकी मृत्यु हो गई ।

इस लड़ाई में  प्रताप को आसपास के क्षेत्रों की भील जनजातियों का भी समर्थन प्राप्त था। महाराणा प्रताप के सबसे प्रिय और प्रसिद्ध नीलवर्ण ईरानी मूल के घोड़े का नाम चेतक था। युद्ध में बुरी तरह घायल हो जाने पर भी महाराणा प्रताप को सुरक्षित रणभूमि से निकाल लाने में सफल वह एक बरसाती नाला उलांघ कर अन्ततः वीरगति को प्राप्त हुआ।

इस लड़ाई में भील जनजाति के महान योगदान को आज तक याद किया जाता है और उन्हें उनके किये गए योगदान के लिए मेवाड़ शासन के राजपूतों द्वारा सम्मान दिया जाता है। इस युद्ध का मुगल सेना पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा। इस लड़ाई को मुगल बादशाहों पर जीत का पहला मील का पत्थर माना जाता है।

राजपुताना के इतिहास में एक ऐतिहासिक घटना हल्दीघाटी की लड़ाई केवल चार घंटे तक चली। इस छोटी सी अवधि में प्रताप के आदमियों ने मैदान पर कई बहादुर कारनामे किए। इस युद्ध में मेवाड़ के वीर महाराणा प्रताप विजय हुए थे, जैसे ही साम्राज्य का ध्यान कहीं और स्थानांतरित हुआ, प्रताप और उनकी सेना बाहर आ गई और अपने प्रभुत्व के पश्चिमी क्षेत्रों को हटा लिया। यह युद्ध तो केवल एक दिन चला परन्तु इसमें 17,000 लोग मारे गए। मेवाड़ को जीतने के लिये अकबर ने सभी प्रयास किये किन्तु विफल रहा।

घोड़ा चेतक

महाराणा प्रताप की वीरता के साथ साथ उनके घोड़े चेतक की वीरता भी विश्व विख्यात है। चेतक बहुत ही समझदार और वीर घोड़ा था जिसने अपनी जान दांव पर लगाकर 26 फुट गहरे दरिया से कूदकर महाराणा प्रताप की रक्षा की थी। हल्दीघाटी में आज भी चेतक का मंदिर बना हुआ है। युद्ध में चेतक ने अपनी अद्वितीय स्वामिभक्ति, बुद्धिमत्ता एवं वीरता का परिचय दिया था।

एक ऐसे वीर की धरती पर जन्म लेना हम सभी के लिए गौरव और सम्मान की बात है। महाराणा प्रताप संयम, दृढ़ता, एकाग्रता, और वीरता के प्रतीक हैं। अपने परिवार और अपनी धरती पर जब भी बात आती, उन्होंने कभी भी अपने पैर पीछे नहीं किए। महाराणा प्रताप जाते हुए हम सभी को ये ही सिखा कर गए हैं की जब बात हमारे वतन की हो, तब हमें एक जुट होकर दुश्मन और परेशानी का सामना करना चाहिए।

आज के इस शुभ अवसर को हम इसी साहस, धैर्य, और सम्मान की मूर्ति, वीर शिरोमणि और दृढ संकल्पी महाराणा प्रताप की गौरव गाथा गाते हुए हर्षोल्लास से मनाते हैं।