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उदयपुर का ‘कोणार्क’ : 9वी शताब्दी पुराने सूर्य मंदिर की कहानी

उदयसागर झील से निकलती नदी, बेड़च। इसके किनारे एक बेहद पुराना मंदिर बना है। यह मंदिर आपको तब भी नज़र आता है, जब आपका प्लेन महाराणा प्रताप इंटरनेशनल एअरपोर्ट पर उतरने ही वाला होता है, उस क्षण से कुछ ही पहले, यह मंदिर आपको अपनी और खींच लें तो कोई बड़ी बात नहीं होगी और तब मुमकिन है, आपका मन इसके बारे में जानने को उत्सुक हो जाए।

Sun temple udaipur
Photo Courtesy: Sharad Vyas

9वी शताब्दी में बना यह सूर्य मंदिर ‘उदयपुर का कोणार्क’ भी कहलाता है। मंदेसर गाँव में बने इस मंदिर की कहानी, शहर के इतिहासकार- अध्यापक डॉ श्रीकृष्ण ‘जुगनू’ की ज़ुबानी है। उनकी लिखी किताब ‘मेवाड़ का इतिहास – श्रीकृष्ण जुगनू’ के चौथे अध्याय में इस मंदिर का ज़िक्र मिलता है।

sun temple udaipur
Photo Courtesy: Sharad Vyas
“मंदेसर का सूर्य मंदिर उसकी स्‍थापत्‍य रचना के आधार पर 10वीं सदी का माना गया है, किंतु यह 9वीं सदी का होना चाहिए। क्‍योंकि इसमें दिक्‍पाल(दिशाओं का पालन करने वाले देवता) दो भुजाओं वाले हैं, और उनका विधान(निर्माण) प्राचीन शिल्‍प की परंपरा को लेकर हुआ है। उनके आभरण-अलंकरण भी उसी काल के दिखाई देते हैं। निश्चित ताल-मान के आधार पर ही यहां की मूर्तियां बनी हैं, जिनमें सभा-मंडप की सुर-सुंदरियों पर तस्‍करों की बराबर नज़र रही है। मूल प्रतिमा तो सालों पहले ही नदारद हो गई, उसकी जगह गांववालों ने बंसी वाले श्‍याम की प्रतिमा विराजित कर रखी है। हवाई अड्डे पर हवाई जहाज से उतरते समय इस मंदिर की एक झलक दिखाई देती है।

sun temple udaipur
Photo Courtesy: Sharad Vyas
पूर्वमुखी का यह मंदिर प्रवेश मंडप, सभा मंडप और गर्भगृह- इन तीन स्‍तरों पर नागर शैली में बना है। मूलशिखर अब नहीं रहा लेकिन, मंडप से लेकर, गर्भगृह की बाहरी भित्तियों पर मूर्तियां खंडित ही सही, मगर मौजूद है। इनमें ‘सूर्य के स्‍थानक’ और ‘सप्‍ताश्‍वों पर सवार’ मूर्तियां अपने सुंदर सौष्‍ठव-सुघड़ता और भव्‍य भास्‍कर्य के लिए पहचानी जाती हैं। निर्माण काल के करीब एक हज़ार साल बाद भी इनका भास्‍कर्य और दीप्ति वही जान पड़ती है जो कभी रही होगी क्‍योंकि जिस श्‍वेत पाषाण का इसमें प्रयोग हुआ है, वह बहुत विचार और परीक्षण के साथ काम में लिया गया है। जिन शिल्पियों ने इस मंदिर का निर्माण किया, वे विश्‍वकर्मीय विद्या को प्रतिस्‍पर्द्धा की तरह प्रयोग लाने के प्रबल पक्षधर थे। इसी कारण दिक्‍पालों और उनके आजू-बाजू सुर-सुंदरियों का तक्षण किया गया। उनके अंग-प्रत्‍यंग को पूरी तरह ताैल कर उभारने का प्रयास हुआ है। दिशानुसार दिक्‍पालों के उनकी दोनों भुजाओं में आयुध बनाए थे और नीचे तालानुसार उनके वाहन को भी उकेरा गया है।

sun temple udaipur
Photo Courtesy: Sharad Vyas
सुर-सुंदरियों के निर्माण कुछ इस तरह हुआ है कि वे गतिमयता के साथ प्रदर्शित होती हैं। पद, कटि, अंगुलियों, कलाइयों, भुजाओं, गलाें, कान, नाक से लेकर सिर तक आभूषणों को धारण करवाया गया है। केश विन्‍यास बड़ा ही रोचक है। कहीं अलस-कन्‍या सी अंग रचना तो कहीं त्रिभंगी रूप में स्‍थानक रूप। आंखों की बनावट भी अनुपम लगती है। उनके इर्द-गिर्द सिंह-शार्दूलों को उछलकर कायिक वेग को साकार करने का जो प्रयास यहां हुआ, वह बहुत ही राेमांचकारी लगता है। मंदिर के पीछे प्रधान ताक में सूर्य की अरुण सारथी सहित सप्‍ताश्‍व रथ पर सवार प्रतिमा है जबकि उत्‍तर-दक्षिणी ताकों में स्‍थानक सूर्य की प्रतिमाएं हैं। इन पर आकाशीय देवताओं, नक्षत्रों का मानवीकरण करते हुए मूर्त्‍यांकन किया गया है। शिल्‍प और स्‍थापत्‍य की कई विशेषताएं और भी गिनाई जा सकती हैं।

sun temple udaipur
Photo Courtesy: Sharad Vyas
यह सूर्यमंदिर सालों पहले सूर्य आदि ग्रहों व नक्षत्रों के आधार पर आने वाले समय के सुकाल-अकाल होने की उद्घोषणा का केंद्र रहा है। यह मान्‍यता मेवाड़ के लगभग सभी सूर्य मंदिरों के साथ जुड़ी है, मगर अब ऐसी उद्घोषणाएं लोकदेवताओं के देवरों में होने लगी है। न यहां मगविप्र रहे न ही ज्‍योतिषीय अध्‍ययन होता है। वर्तमान में यह मंदिर राजस्‍थान पुरातत्‍व विभाग के अधिकार में है। विभाग के अधीक्षक मुबारक हुसैनजी का आभार कि उन्‍होंने इस संबंध में देर तक चर्चा की और चित्र उपलब्‍ध करवाए तो लिखने का मन बन गया। कभी फुर्सत मिले तो इस सूर्यायतन को भी देखियेगा और फिर स्‍वयं कहियेगा कि इसे शिल्‍पकारों ने बनाया या शिल्पकारों को इसने बनाया।”
– डॉ. श्रीकृष्‍ण ‘जुगनू’
sun temple udaipur
Photo Courtesy: Sharad Vyas
यदि आप इस मंदिर को देखने का मन बना रहे हैं तो यह डबोक एअरपोर्ट से कुछ आगे मंदेसर गाँव में मिलेगा। जाना आसान है। लोकल ट्रांसपोर्ट की मदद से आप गाँव तक पहुँच सकते हैं और यदि ख़ुद की गाड़ी से जा रहे हैं तब सिर्फ गूगल मैप्स की ज़रूरत पड़ेगी। मंदिर बहुत पुराना है, यदि देखने का मन बना रहे हैं तो जल्दी जाइएगा। क्या पता कल हो न हो!
Special Thanks to Sharad Vyas