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लो वसंत फिर आ गया..!

दुनिया भर की टेंशन, फेसबुक-ट्विटर पर खुद को खोजते, इतनी सारी व्यस्तताओं और उलझनों के बीच हमारे मन का कोई हिस्सा अपने “होने” के एहसास को बचाने की भरसक कोशिश करता है और हमें बार बार ये एहसास कराता है कि हमारे अन्दर कुछ “अनूठा” अभी भी जिंदा है…मरा नहीं है.. हम अभी भी इतने “मेकेनिकल” नहीं हुए है, जितना हम अपने आप को मान लेते है.. और इन्ही तमाम उलझनों और टेंशनो के बीच हमारे मन ने आज खेतो में उगी पीली फसल
और उदयपुर की सड़कों पर आँखों में घुस रहे छोटे छोटे कीड़े “मोयला” (जिनसे सब डरते है) ने हमें जाता ही दिया है कि लो ऋतुराज बसंत आ ही गया. यूँ भी देखा जाये तो ये ऋतुएं किसी कलेंडर की मोहताज तो होती नहीं… हमारा मन ही इन्हें समझ जाता है… सर्दी किसी बुझती लौ की तरह अपनी तमाम ताकत का एहसास करवा रही है..तो समझ लो वसंत आ रहा है. वैसे एक बात तो है.. सर्दी-गर्मी-वर्षा..ये ऋतुएं हमारा तन समझता है… पर वसंत की अनुभूति हमारे मन तक होती है. आज वसंत पंचमी के दिन हमारे उत्तर भारतीय भाई तो पूरे पीले-केसरिया वस्त्र पहने अलग  ही आभा दे रहे होंगे. वीणा- सितार में राग बसंत गूंज रही होंगी.. सितार की बात आई तो बताते चले..हमारे बंगाली भाई आज माँ सरस्वती की पूजा करते हैं. माँ सरस्वती की कृपा हमें कुछ करने का जज्बा जगाती है. पर आज ज्यादा धार्मिक बातें करने का मन नहीं है सो माँ सरस्वती को यहीं प्रणाम.

Vasant Panchmi | UdaipurBlog

उदयपुर ब्लॉग के कर्ता-धर्ता..सभी परीक्षाओं में व्यस्त है .(माँ सरस्वती की सबसे ज्यादा याद तो इन्हें आ रही होंगी आज.. दो अगरबत्ती ज्यादा जलाने वाले
है..) दिल दिमाग फुर्सत पाना चाहता है. कड़ाके की ठण्ड से थोड़ी निजात मिली है. खिड़की से अन्दर आने वाली धूप अब थोड़ी थोड़ी चुभने लगी है. वसंत, तुम्हारे आते ही मौसम कसमसाने लगा है. सर्दी का मन तो नहीं है जाने का..बार बार लौट लौट कर अपने होने का एहसास करवा रही है.. प्रकृति ने चारो तरफ
पीला-केसरिया रंग उढेल दिया है.. गुनगुनी सर्दी दिल को कुछ ज्यादा ही बैचेन किये दे रही है. मन कह रहा है कि बस कुछ चमत्कार हो जाये और “वो” मेरे पास
हो.. दिल के करीब रहने वाले गीत लबों पर आने को बेताब है. मन अपनी चंचलपना पूरी शिद्दत से दिखा रहा है. मौन हैं..चकित है.. कि इस वसंत का एहसान माने, शुक्रिया अदा करें इसका..कि डांट लगायें.. वसंत का आगमन..बहार को देखकर मन उड़ चला है ..फिर से !

घर-घर चर्चा हो रही फूलों में इस बार लेकर वसंत आ रहा खुशियों का त्योहार बहरहाल मन की इन्ही अनसुलझी परतों के बीच ऋतुराज वसंत महाराज तो आ ही गए है. और ये जब जब आते है तो हमें किसी और ही पुरानी दुनिया में ले जाते है. किताबों का बोझ आज भी उतना ही है. बस जब छोटे थे तो “विद्या” पौधे की पत्ती ज़रूर किताबों में छुपा दिया करते थे. पीली सरसों अब उतनी दिखाई नहीं देती. टेरेस पर लगे पौधे पर ज़रूर गुलाब उग आया है. बड़ा सा… पर उसकी पत्तियों को किताब में सहेजना अब उतना अच्छा नहीं लगता. हवा की हलकी खनक आज भी महसूस होती है. शाम को फतहसागर फिर से जवां लगने लगा है. कुल्हड़ की कॉफी रंग जमा रही है. मौसम अलग सा मिज़ाज जता रहा है. मदहोशी फिर से छाने लगी है. वसंत आज हमें फिर से उकसा रहा है, उन पुराने दिनों को फिर से जीने को. आज जब हम अपने आप ही नाराज़ होने लगे है.. उदास ज्यादा और खुश कम होते है..पहले की मदहोशी और आज की मदहोशी के
मिज़ाज, सुर और परिभाषाएं, सब बदल गए है. तो आज के दिन कुछ अलग ढंग से वसंत के साथ कुछ अलग हटकर करते है.. पुराने दिनों को ताज़ा करते हुए  अलग ढंग से जीते है. आज खुद से नाराज़ न हो. सबसे कटे हुए, अलगाए हुए उदासीन न बैठे.. बस कुछ ऐसा करें कि ये दिन गुज़र न पाए…आज के खास दिन “मेकेनिकल लाइफ” को अलविदा कह दे. जिन चीजों को हम कई दिनों से नज़र-अंदाज़ कर रहे थे, उन्हें आज कर ही डालते है. चलिए इसी अंदाज़ में आज ऋतुराज का अभिनन्दन करें… वसंत मनाएं.. दिल को खूब खूब महकने दे..चहकने दे.. आप सभी को इस मनमोहक आनंदित कर देने वाली वसंत ऋतु
की बहुत बहुत बधाई.
आपका जीवन हमेशा वासंती रहे.

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Durga Pooja: Following an Eco-Friendly Tradition

We all see too many colorful idols around us at the time of Navratri, Ganesh Chaturthi, etc. But a really true fact behind all of them is the concern to our ecology. Now a day the idols are made from Plaster of Paris (PoP), which get a nice finish due to the easy and handy spray paint, distinct shine, and easy for mass productions, as the PoP rapid hardening material, as well as casted in moulds.

But an utter truth behind the scene is that the PoP idols do nothing but harm our environment and ecosystem. As after every festival of Ganesh Chaturthi, or the Durga Pooja, the idols are immersed in water body on the last day, Plaster of Paris does not dissolve easily in water and hence the idol floats on water after immersion. Since the idol is not immersed properly, in a way it amounts to dishonouring the deity. Talking about the health factors, PoP idols may take anywhere between several months to years to fully dissolve. In addition, when chemical paints are used to decorate the idols, these paints contain heavy metals such as mercury and lead, which seep into the water as the idol dissolves. Seems I need not elaborate more on the harm that it may cause to our health, as the same water is used for consuming by people of our city.

Durga Puja | UdaipurBlog
Idols being Prepared at Bang Samaj, Udaipur

The Bengali Community, sets forth an example of following a tradition from long time, which is eco-friendly and doesn’t harm the environment. The Bengalis celebrate the Durga Pooja primarily at four places in the city, which I have already mentioned in a post few days back. Special artists and sculptors are called every year from Kolkata, situated thousands of miles away, who spend many weeks in Udaipur, and create very beautiful idols of Goddess Durga with all the bio-degradable material like mud, chaff, jute, bamboos etc. Even the colours they use are water colours. So the water where the idol is immersed neither gets polluted nor it is an environmental hazard to immerse the idol in the lakes.

“I am indeed concerned for the safety of lakes. The idols made of PoP do not dissolve in water and thus pose serious problem for the lakes. Our family has been celebrating Duga Puja in this city more than five decades ago at Bindu Bhavan, but we follow the same traditions for rituals as well as preparation of idols, as was followed since 1956. The sculptors we call from West Bengal for the same purpose put in lots of efforts and spend a lot of time in carving out each and every minute detail of the idols, which is impossible to do with the PoP idols, as it hardens too fast. Hence mud is the primary constituent of the idols prepared. Putting this on record is essential, because every year the question comes up whether the idol should be allowed to be immersed in the lake or not.”

-Apurva Bhattacharya

Bindu Bhawan

 

“We have been celebrating Durga Pooja since past 20 years, and we have always been celebrating according to the traditions. It is always an idol made from mud which is worshipped, and we spend a major portion of our annual Pooja Budget for idols itself, to ensure that they are eco-friendly.  People must learn to preserve their environment, and shall take an oath to avoid immersing the idols made from PoP in our lakes. PoP idols must not be immersed, or shall be sprinkled with water and kept.”

-Dipankar Chakravarty

President, Bangali Kalibadi Society

We all must learn a lesson from the community, and must take considerable steps to preserve our environment. Afterall we never own our nature, but we owe it.