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नाग पंचमी: क्यों मनाया जाता है यह त्योहार ?

नाग पंचमी यह हिन्दुओं का एक मुख्य त्योहार है। हिंदू पंचांग के अनुसार, नाग पंचमी सावन महीने में शुक्ल पंचमी को मनाई जाती है। इस दिन लोग नागों या सर्पों की पूजा करते है, उन्हें दूध चढ़ाते है। भारत में सर्पों को हमेशा से एक अदम्य सम्मान दिया गया है, लोग उन्हें देवताओं के समान सम्मान देते है। विभिन्न प्रकार के त्योहारों और धार्मिक कार्यक्रमों में उनकी पूजा की जाती है।

नाग पंचमी के नाम से प्रसिद्ध यह नाग पूजा का त्योहार लगभग भारत के हर राज्य में मनाया जाता है लेकिन उसे मनाने के तरीके अलग-अलग हो सकते है। अलग-अलग राज्यों में इसके नाम जरूर अलग हो सकते है पर इसे मनाया एक ही दिन जाता है।

कई सारे लोगों को नाग पूजा बेतुकी लग सकती है लेकिन इसका सम्बन्ध अतीत की कई सारी कहानियों से है। आइए जानते है, इन प्राणियों की पूजा के गौरवशाली अतीत की गहराई के बारे में।

सालों पहले एक अस्तिका नाम के ऋषि थे, जिन्होंने राजा जन्मेजय द्वारा किए गए एक सर्प यज्ञ अनुष्ठान को रोकने की कसम खाई थी। राजा जन्मेजय ने यह यज्ञ अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए किया था क्योंकि नागों के राजा तक्षक ने राजा के पिता को मार डाला था। लेकिन श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन अस्तिका ने यज्ञ को रोक दिया था और इसी कारण से नाग पंचमी का निर्माण हुआ था।

इस त्योहार से सम्बंधित और भी कई सारी कहानी और किस्से है, जो हिन्दू पुराण साहित्य में मिलते है।

किसी राज्य में एक किसान रहता था। वह बहुत मेहनती था। उसके दो पुत्र और एक पुत्री थी। परिवार का पालन पोषण करने के लिए वह हल जोतता था। एक दिन गलती से हल जोतते समय उससे नागिन के तीन बच्चे कुचले गए। जब नागिन ने यह देखा तो वह रोने लगी और उसे बहुत क्रोध आया, तब उसने अपने बच्चों के हत्यारे से बदला लेने के बारे में सोचा। उसके बाद रात को वह नागिन किसान से बदला लेने के लिए उसके घर पहुंची और वहाँ जाकर उसने किसान, दोनों पुत्र और उसकी पत्नि को डस लिया।

अगले दिन नागिन किसान की बेटी को डसने के लिए किसान के घर पहुंची तो वहाँ जाकर उसने जो देखा, उसकी हैरानी की कोई सीमा नहीं रही। असल में किसान की बेटी नें नागिन के सामने दूध का कटोरा रख दिया और नागिन से हाथ जोड़कर माफी मांगी। किसान की बेटी का यह व्यवहार देख कर नागिन प्रसन्न हुई और उसने किसान के परिवार को फिर से जीवित कर दिया। ऐसा कहा जाता है कि जिस दिन ये घटना हुई उस दिन श्रावण शुक्ल पंचमी थी, जिसके चलते इस दिन को नाग पंचमी के रूप में जाना जाने लगा और नाग देवता व नागों की पूजा का आरंभ हुआ।

नागों का भारतीय इतिहास के साथ हमेशा से ही गहरा सम्बन्ध रहा है। महाराष्ट्र के नागपुर का नाम भी नाग शब्द से ही लिया गया है। पश्चिमी भारत में नाग पंचमी को ‘क्षेत्रपाल’ नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इसका अर्थ है “क्षेत्र का रक्षक”। कई सारी जगहों में साँपों को भुजंग भी कहा जाता है, इसी नाम पर एक शहर है उसका नाम भुज पड़ा है।

पूर्वी और पूर्वोत्तर राज्यों में मनसा नाम की सर्प देवी की पूजा की जाती है, जिन्हे ब्राह्मण ऋषि जरत्कारु की पत्नी कहा जाता है। इसलिए इस दिन देवी मनसा की मूर्ति जमीन में स्थापित कि जाती है और अत्यंत सम्मान और ईमानदारी से पूजा भी करते है।

गरुड़ और महान नाग के बीच लड़ाई को चिन्हित करने के लिए न केवल भारत, बल्कि नेपाल भी इस त्योहार को मनाता है। कहा जाता है की काठमांडू के चंगु नारायण मंदिर में शक्तिशाली पक्षी का एक मंदिर है जिसे स्वयं गरूड़ने स्थापित किया था। यह भी माना जाता है की नाग पंचमी के दिन उस पक्षी को पसीना आता है और उस पसीने का उपयोग कुष्ठ रोग को ठीक करने के लिए किया जाता है।

इन जीवों की पूजा से जुड़ी कई सारी कहानियां है। कुछ ज्योतिष से सम्बंधित कुछ इतिहास से सम्बंधित है। कुछ लोककथाओं पौराणिक कथाओं से सम्बंधित है। जो भी हो पर हमें इस अनोखे त्योहार को पूरे देश में हर साल बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाने का एक कारण अवश्य मिला है।