Categories
News

दुनिया के बेहतरीन शहरों में से उदयपुर 10वें नंबर पर

शहर के लिए यह काफी सुखद खबर होगी कि उदयपुर शहर को पूरे भारत के बेहतरीन शहरों में शामिल किया गया है। शहर ने बेहतरीन शहरों की सूची में शामिल होकर उदयपुर का नाम रोशन किया है। ट्रेवल मैगजीन “ट्रेवल एंड लेजर रीडर्स” ने दुनिया के 10 शहरों में उदयपुर को 10वीं रैंक दी है।

पूरे भारत में इस लिस्ट में केवल दो ही शहरों को चुना गया है, एक उदयपुर तो दूसरा जयपुर को। जयपुर शहर को 8वीं  रैंक दी गई है। इससे पहले भी उदयपुर ने कई बार बेस्ट जगहों में शहर का नाम रोशन किया है। उदयपुर की शांत झीले, पर्वत पहाड़, हेरिटेज, खानपान लोगों को अपनी तरफ आकर्षित कर ही लेता है। इस से पहले भी एशिया महाद्वीप में घुमनें के लिए सबसे बेहतरीन शहरों में उदयपुर का नाम था। 

पर्यटन विभाग कि उपनिदेशक शिखा सक्सेना का कहना है कि ट्रेवल मैगजीन के सर्वे में उदयपुर को फिर से चुना गया है। इस बार टॉप टेन में 10 जगह बनाई है। इसका श्रेय टूरिज्म से जुड़े हुए हर व्यक्ति को जाता है। उदयपुर की मेहमान नवाजी ही ऐसी है कि दुनिया का हर आदमी यहां खिंचा चला आता है। इन तमगों से इस साल पर्यटन सीजन अच्छा रहने की उम्मीद है। 

10 रैंकों की सूची इस प्रकार है-

  • ओक्साका,मेक्सिको
  • सैन मिगुएल, मेक्सिको 
  • उबुद, इंडोनेशिया 
  • फ्लोरेंस, इटली 
  • इस्तांबुल, तुर्की 
  • मेक्सिको सिटी, मेक्सिको 
  • चियांग माई, थाईलैंड 
  • जयपुर, भारत
  • ओसाका, जापान 
  • उदयपुर, भारत    

उदयपुर का नाम और भी कई सारी जगहों में शामिल है-

  • टूर एंड ट्रेवल कम्पनी ट्रेवल ट्राइंगल ने देश के बेस्ट सोलो फीमेल ट्रेवेल डेस्टिनेशन में उदयपुर को प्रदेश में सबसे सुरक्षित माना है।
  • ट्रेवेल एन्ड लेजर ने दुनिया के 20 शानदार शहरों में उदयपुर को दूसरा और जयपुर को 17वां स्थान दिया है।
  • अंतर्राष्ट्रीय वेडिंग प्लानिंग कंपनी दी नॉट ने यूनिक वेडिंग डेस्टिनेशन के लिए 11 देशों की सूचीं में भारत से केवल उदयपुर को चुना । 
  • इंटर माइल्स ने बेहतरीन 10 देशों में उदयपुर को 5वां सुन्दर शहर बताया। 
  • प्लेनेट डी की ट्रेवल लिस्ट दीं “16 मोस्ट सिटीज ऑन अर्थ” में उदयपुर को चौथा स्थान दिया गया। 
  • एमएसएन की लिस्ट में पूरी दुनिया के बेहतरीन 60 डेस्टिनेशन में भारत से एकमात्र उदयपुर को 11वां स्थान दिया। 
  • नेशनल जियोग्राफी व दी वॉल स्ट्रीट जर्नल ने 21 दिन की यात्रा में दुनिया के 8 देशों में से भारत से उदयपुर को चुना।
Categories
News

UIT 101 करोड़ रुपए करेगा खर्च

शहर में नगर विकास प्रन्यास द्वारा 101 करोड़ रुपए से भी ज़्यादा के कई निर्माण कार्य शुरू होंगे। बुधवार को कलेक्टर और UIT अध्यक्ष ताराचंद मीणा की अध्यक्षता में एक सामान्य बैठक हुई, जिसमें कई सारे महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए। इस बैठक में तय किया गया कि UIT के विभिन्न क्षेत्रों में घर-घर कचरा संग्रहण, न्यास रूपांतरित आवासीय कॉलोनियों की सड़कों, नालियों की सफाई, न्यास क्षेत्राधिकार के मुख्य मार्गों तथा बरसाती नालों की सफाई का कार्य नियमित रूप से नगर निगम के माध्यम से करवाया जाएगा । जिसमें MOU निष्पादित कर 4 करोड़ रूपए की प्रशासनिक एवं वित्तीय स्वीकृति जारी की गई है।

इसके साथ ही UIT की सीमा में आने वाली 167 कॉलोनियों की साफ़ सफाई अब नगर निगम के जिम्मे हो गई है। इसके बदले UIT निगम को एक साल के चार करोड़ रुपए देगा। शहर में साइबर पुलिस स्टेशन खोलने के लिए जमीं का आवंटन भी किया गया जिससे रानी रोड पर भारी वाहनों के दबाव को कम किया जा सके जिसमें DTO द्वारा निर्देश दिए जाएंगे।

कलेक्टर ने न्यास द्वारा किए जाने वाले विकास कार्यों के लिए 52 बिंदुओं पर चर्चा की है। मौके पर मौजूद सचिव बालमुकुंद असावा, एसइ के.आर. मीणा व विपिन जैन, वरिष्ठ नगर नियोजक अरविन्द सिंह कानावत सहित अधिकारी उपस्थित थे।

प्रोजेक्ट के लिए मंजूर कि गई राशि-

  • फतहसागर झील स्थित नेहरू गार्डन के निर्माण के लिए 5.96 लाख खर्च किए जाएंगे।
  • कई सारे कार्य शहर की सौंदर्यीकरण और जीर्णोद्धार के लिए पुरे किए जाएंगे, जिसके लिए 26.8 करोड़ रूपए मंजूर किए है।
  • ढीकली तालाब से अपरस्ट्रीम में राजस्व नाले के निर्माण के लिए 8.90 करोड़ रुपए।
  • रानी रोड को मॉडल रोड बनाने के लिए 12 करोड़ रूपए की तकनीकी मंजूरी दी गई।
  • महाराणा भूपाल स्टेडियम में खेलों के विकास कार्यों के लिए 174.99 लाख की स्वीकृति जारी।
  • स्मार्ट सिटी के लिए 15 करोड़ रुपए की मंजूरी दी गई।

सार्वजनिक कार्यों के लिए भूमि आवंटित-

  • मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थय अधिकारी कार्यालय निर्माण के लिए
  • साइबर पुलिस स्टेशन
  • प्राथमिक स्वास्थय केंद्र दरोली
  • ग्राम सेवा सहकारी समिति गुडली के गोदान निर्माण
  • वैद्यनाथ महादेव वृहत कृषि बहुउद्देशीय

चंडीगढ़ जैसे मॉडल की तैयारी –

कलेक्टर ने खेल गाँव की पहाड़ियों पर जल्द पौधरोपण करवाने के निर्देश दिए और कहा की मानसून के दौरान ही चंडीगढ़ की तरह स्थानीय प्रजातियों के फूलदार पौधे लगाए जाए। सुचना केंद्र के ऑडिटोरियम और पुस्तकालय के जीर्णोद्धार तथा शहर में महान विभूतियों की प्रतिमाओं के क्षतिग्रस्त पेडस्टल में सुधार के लिए भी निर्देश दिए गए।

हाईवे जैसी सड़कों की क्वालिटी –
कलेक्टर ने कहा की हमारी बनाई गई सड़क पर वाइट लाइन 15 दिनों से ज्यादा क्यों नहीं दिखती ? नेशनल हाईवे वाली क्वालिटी की वाइट लाइन करवाई जाए। खेल गाँव में एक और हॉकी एस्ट्रोटर्फ बनाने पर भी चर्चा हुई।

Categories
History and Culture

गुरु पूर्णिमा: जानिए मेवाड़ की अनोखी गुरु शिष्य की जोड़ी

हम सभी के जीवन में गुरु का बहुत विशेष महत्व होता है। हमारी भारतीय संस्कृति में गुरु को भगवान से भी ऊँचा दर्जा दिया गया है। एक गुरु का जीवन में होना बहुत मायने रखता है क्योंकि एक गुरु ही है जो शिष्यों को अंधकार से निकालकर प्रकाश की और ले जाता है, सही गलत का अर्थ समझाता है, जीवन में सही दिशा की और अग्रसर करता है। गुरु के ज्ञान और संस्कार की वजह से ही एक शिष्य का जीवन सफल होता है और वह ज्ञानी बनता है। गुरु किसी भी मंदबुद्धि शिष्य को ज्ञानी बना देते है।

गुरु की महत्वता को देखते हुए ही पुराने ग्रंथों व किताबों में गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश की उपाधि दी गई है।
हर व्यक्ति को जीवन में ज्ञान की बहुत आवश्यकता होती है तभी वह अपने जीवन में उन्नति के मार्ग पर चल पाता है। एक विद्यार्थी तभी चमक सकता है, जब उसे सही शिक्षक का प्रकाश मिलता है। एक व्यक्ति सभ्य और संस्कारवान सिर्फ उसके गुरु की वजह से ही बनता है। एक सभ्य और शिक्षित समाज के निर्माण में यदि सर्वाधिक योगदान किसी का होता है तो वे हमारे गुरु का होता है।

महाभारत के रचयिता एवं आदि गुरु वेद व्यास जी की जयंती को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता हैं। आषाढ़ माह की पूर्णिमा के दिन गुरु पूर्णिमा का यह त्यौहार मनाया जाता है। प्राचीनकाल से ही गुरु और शिष्य की जोड़ी चली आ रही है। इतिहास में भी हमें कई सारे गुरुओं का उल्लेख मिलता है – महाभारत काव्य में शिष्य अर्जुन, एकलव्य, कौरवों और पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य का उल्लेख है। कर्ण के गुरु परशुराम जी थे। चन्द्रगुप्त के गुरु चाणक्य थे। ऐसे ही हमें कई सारे गुरु शिष्य की जोड़ी की कई सारी कहानियों के बखान मिल जाएंगे।

क्या आप जानते है ऐसी ही गुरु शिष्य की एक अनोखी जोड़ी जो हमारे मेवाड़ के इतिहास जगत में भी है। विश्व प्रसिद्ध “महर्षि हरित राशि” और “बप्पा रावल” की जोड़ी । हरित राशि, बप्पा रावल  के गुरु थे। हरित राशि एकलिंगनाथ जी के बहुत बड़े भक्त थे और बप्पा रावल जिन्हे “कालभोज” के नाम से भी जाना जाता है।

बप्पा रावल वल्लभीपुर से आए थे, जो अब भारत के गुजरात राज्य में है। वह उदयपुर से 20 किलोमीटर दूर कैलाशपुरी गांव के पास महर्षि हरित राशि के आश्रम के छात्रों में से एक थे। अपनी मृत्यु से पहले, हरित राशी ने अपने सभी शिष्यों में से बप्पा रावल को “दीवान” के रूप में चुना और श्री एकलिंगजी नाथ की पूजा और प्रशासन के अधिकार की जिम्मेदारी सौंप दी। उदयपुर के उत्तर में कैलाशपुरी में स्थित इस मन्दिर का निर्माण 734 ई. में बप्पा रावल ने ही करवाया। इसके निकट हरीत ऋषि का आश्रम भी है।

bappa rawal
बप्पा रावल

बप्पा रावल पूर्ण रूप से से अपने गुरु के प्रति समर्पित थे। हरित राशि ने अपने पसंदीदा छात्र को मेवाड़ राज्य प्रदान किया और अपने राज्य के शासन के दिशा-निर्देश और मुख्य नियम तैयार करके दिए। इसके बाद बप्पा रावल 8वीं शताब्दी की शुरुआत में मेवाड़ के संस्थापक बने।

आज “महर्षि हरित राशि पुरस्कार” एक राज्य पुरस्कार है। वैदिक संस्कृति, प्राचीन ‘शास्त्र’ और ‘कर्मकांड’ के माध्यम से समाज को जगाने में स्थायी मूल्य के कार्य करने वाले विद्वानों को सम्मानित करने के लिए इस पुरस्कार की स्थापना की गई है।

हमारी यहां गुरु सम्मान की परम्परा हजारो सालों से चलती हुई आई है औरआज तक जीवित हैं। हमें हमारे जीवन में गुरु की महिमा को समझना चाहिए उनका आदर सत्कार करना चाहिए। एक गुरु ही है जो हमारे जीवन को बदल सकता है सत्य की राह दिखा सकता है। गुरु पूर्णिमा का पर्व एक इसी तरह का अवसर हैं जब हम गुरु दक्षिण देकर अपने प्रिय गुरु के प्रति श्रद्धा भाव प्रकट कर सके।

Categories
History and Culture

जानिए उदयपुर शहर के बीचों बीच बसा एक नगर ऐसा भी

व्यस्त ज़िन्दगी और शहर की चकाचौंध से कभी फुर्सत मिले तो ज़रा गाँव हो आना, कभी गाँव की याद आए तो वहां हो आना। शांत, खूबसूरत, प्राकृतिक आलोकिक, मनमोहक वातावरण में हो आना। 

हरे भरे घास के मैदान, खेत खलिहान, मंदिर, कुआँ, गाँव के वो कच्चे मकान ,गाय भैंस ,पशुपालन, फसल,चंचल हवा, पक्षियों की चहचहाट,गोबर से थपे कंडे,छोटा सा जलाशय जहाँ बच्चो को स्नान करते देख खुद के बचपन की स्मृति हो जाती है। 

हम सभी को गाँव बहुत प्यारा होता है, शहर मे व्यस्त हर इंसान छुट्टिया लेकर अपने गाँव जाना चाहता है ,वहाँ रहना चाहता है ,प्रकृति के जितना करीब रहता है उतना अच्छा महसूस करता है। गाँव के इलाकों में रहने वाले लोग शांतिपूर्ण जीवन जीते हैं लेकिन वे कई आधुनिक सुविधाओं से रहित होते हैं जो जीवन को आरामदायक बनाते हैं। यहां लोग एक साधारण जीवन जीते हैं और जो कुछ भी उनके पास होता है उसमें संतुष्ट रहते हैं। गांव आज भी भारतीय सभ्यता और संस्कृति के आधार स्तम्भ है। गाँव में परम्पराओ का निर्वाहन अच्छे से किया जाता है। 

गाँवों में त्योहार सामूहिक रूप से मनाए जाते हैं और इस तरह उस दौरान खुशी और खुशी दोगुनी हो जाती है। वे एक-दूसरे के साथ सद्भाव में रहते हैं। वे रिश्तों को महत्व देते हैं और उसी को बनाए रखने के प्रयास करते हैं। वे अपने पड़ोस में रहने वाले लोगों के बारे में अच्छी तरह से जानते हैं और उनकी ज़रूरत के समय में उनके द्वारा खड़े होते हैं।

आइये जानते है, उदयपुर शहर के बीचों -बीच बसी एक छोटी सी मानव बस्ती जो संपूर्ण गाँव का वर्णन करती है। वैसे तो यह गाँव शहर में है, इसका रास्ता भी शहर से जुड़ा है और यह पूरी तरह गाँव भी नहीं है, पर यह जगह गाँव का वर्णन जरुर करती है, गाँव होने का एहसास जरूर करवाती है । यह जगह प्रकृति के करीब है। इसके साथ ही इस जगह पर भ्रमण करके गाँव की कला, संस्कृति और परंपरा को अच्छी तरह समझ सकते है। गाँव को महसूस जरूर किया जा सकता है। 

यह एक ऐसी जगह है,जो है तो आम सड़क ही पर कुछ देर के लिए वहाँ से गुजरने पर संपूर्ण सुखद गाँव का अनुभव होता है। जिसे देख कर मन और दिल तरोताज़ा हो जाता है। इस जगह आकर संपूर्ण गाँव के निर्बाध दृश्य को देखा जा सकता है।

आइए जानते है शहर में ऐसी कोनसी जगह है जो गाँव का अनुभव करवाती है, यूनिवर्सिटी रोड से शोभागपुरा 100 फीट रोड, पेट्रोल पंप के सामने, अशोक नगर के आगे यह रास्ता निकल रहा है, जो सीपीएस स्कूल की तरफ निकल रहा है। यही वह जगह है जो गाँव का वर्णन करती है।

शाम के समय अगर वक्त मिले तो इस गांव में हो आना ज़रा इसे निहार आना, अपने बचपन की गलियों से मिल आना।

 

Categories
Events

आज से फतहसागर पर ड्रैगन बोट रेस

शहर के फतहसागर झील पर 13 व 14 जुलाई को ड्रैगन बोट रेस का आयोजन किया जाएगा। इसमें से भारतीय टीम का चयन किया जाएगा। इस खेल में राष्ट्रीय एंटी डोपिंग एजेंसी ( नाडा) मौजूद रहेगी, जो खिलाड़ियों के लिए प्रतिबंधित एवं शक्तिवर्धक दवाओं की जांच करेगी। इस अवसर पर पारंपारिक तरह से शहरवासी ड्रैगन बोट देखने का लुत्फ़ उठा सकेंगे। उदयपुर शहर अब तक स्पोर्ट्स से जुडी राष्ट्रीय स्तर की 5 बड़ी प्रतियोगिताएं करवा चुका है।

चेकोस्लोवाकिया में होने वाली अंतर्राष्ट्रीय ड्रैगन बोट प्रतियोगिता के लिए भारतीय टीम का चयन यही किया जा रहा है। राजस्थान के कयाकिंग एवं केनाइंग संघ अध्यक्ष आर.के. धाभाई ने बताया कि चयन प्रक्रिया दो दिन सुबह शाम के चार सत्रों में होगी, जिसमें 100 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतराष्ट्रीय खिलाड़ी भाग ले सकेंगे। बुधवार सुबह शाम के सत्र में 200 मीटर पुरुष,महिला व मिक्स रेस एवं फिजिकल टेस्ट होगा। यही रेस गुरुवार को 500/1000 मीटर की होगी।

यह सारे परीक्षण फतहसागर झील एवं लवकुश स्टेडियम में होंगे। इस बीच खिलाड़ियों को पानी में ड्रैगन बोट चयन प्रक्रिया और शारीरक क्षमता के कई सारे परीक्षणों से गुजरना होगा। राजस्थान कयाकिंग एवं केनोइंग संघ के सचिव महेश पिम्पलकर ने बताया कि आयोजन के शुरुआत में अध्यक्षता संभागीय आयुक्त राजेंद्र भट्ट तथा मुख्य अतिथि के रूप में विधायक प्रीति गजेंद्र सिंह शक्तावत रहेगी।

चयन समिति में मौजूद रहेंगे –
चेयरमैन स्टैंडिंग पेडल नवल सिंह चुण्डावत ने बताया कि चयन समिति में डॉ.बी.एस.वनार, महासचिव भारतीय कयाकिंग एवं केनाइंग संघ, दिलीप सिंह चौहान, चेयरमैन भारतीय ड्रैगन बोट, अजय अग्रवाल चेयरमैन राजस्थान ड्रैगन बोट, सुनील केवट अंतराष्ट्रीय खिलाड़ी एवं कोच, नाजिस मंसूरी राष्ट्रीय कोच, अनिल राठी भारतीय सेना के कोच तथा स्थानीय स्तर पर केनो स्प्रिंट कोच निश्चय सिंह चौहान, दीपक गुप्ता, रणवीर सिंह राणावत, कुलदीपक पालीवाल परीक्षणों में शामिल रहेंगे।

Categories
News

राजस्थान के आखिरी सफ़ेद बाघ की मौत

जयपुर स्थित नाहरगढ़ बायोलॉजिकल पार्क के सफ़ेद बाघ चीनू की मौत हो गई। वह प्रदेश का एकमात्र आखिरी सफ़ेद बाघ था जिसने रविवार को दोपहर में तड़प तड़प कर अपना दम तोड़ दिया। चीनू को पिछले साल 17 मार्च को ज़ू एक्सचेंज से जयपुर लाया गया था। वह छः दिन से बीमार था और उसने एक सप्ताह से खाना पीना भी छोड़ दिया था। क्षेत्रीय वन अधिकारी गौरव ने बताया की 5 दिन से जयपुर,चेन्नई,बरेली,ओडिशा इन जगह के विशेषज्ञों द्वारा चीनू का इलाज चल रहा था।

मेडिकल बोर्ड ने मौत का कारण हार्ट अटैक बताया है और यह भी बताया है कि बाघ की एक किडनी सामान्य की तुलना में बड़ी पाई गई थी। बाघ के सैम्पलों को बरेली स्थित IVRI में जांच के लिए भेजा गया था। वहां से रिपोर्ट मिलने के बाद ही मौत का कारण पूरी तरह स्पष्ट हो पाएगा।

नाहरगढ़ बायोलॉजिकल पार्क तीन साल से दुर्लभ वन्यजीवों के लिए मौत का स्थान बना हुआ है। यहाँ 27 सितम्बर 2019 को केनाइन डिस्टेंपर से बाघ सीता और 4 अगस्त 2020 को लेप्टोस्पायरोसिस से बाघ राजा की मौत हो गई थी। चीनू प्रदेश का आखिरी सफ़ेद बाघ था। अब प्रदेश में एक भी सफ़ेद बाघ नहीं बचा है।

Categories
Social

उदयपुर – अहमदाबाद के 32 किमी ट्रैक पर 24 तरह की कमियां

उदयपुर  -अहमदाबाद आमान परिवर्तन कार्य के दौरान सीआरएस निरिक्षण की रिपोर्ट में निकली कई सारी कमियां । खारवाचंदा से जयसमंद रोड के बीच 32 किलोमीटर ट्रैक पर कुल 24 तरह की कमियां पाई गई है। दो दिन के इस सीआरएस निरिक्षण की रिपोर्ट में कई सारी जगहों में भारी चूक होने जैसे स्थितियां पाई गई है। ट्रैक पर मिली इतनी कमियों को जल्द सुधार पाना मुश्किल है। ऐसे में कमियां सुधारे जाने पर इसकी रिपोर्ट चीफ रेलवे सुरक्षा कमिश्नर को भेजनी होगी। इसके बाद ही रेलवे बोर्ड की तरफ से नए ट्रैक पर ट्रैन संचालन की अनुमती दी जा सकेगी।

ये कमियां पाई गई-

  •  स्टेशन से स्टेशन और स्टेशन से ट्रैन तक के संचार सही नहीं पाए गए है।.
  • कई सारी जगहों पर मोबाइल नेटवर्क नहीं हैं।
  • लाइन पर 25 पीएसआर शुरू किए गए, लेकिन यहां पीएसआर के बोर्ड ही उपलब्ध नहीं है।
  •  कुछ स्थानों पर सुरक्षा के लिए बाड़ बंदी कराने की जरुरत बताई गई।
  •  जावर स्टेशन पर एफओबी का काम अधूरा है और रास्ता भी उपलब्ध नहीं है।
  •  टनल 2 में भी कमियों पर विशेषज्ञों से संरचनात्मक चीजों की जरुरत बताई।
  • तीन गर्डरों में भिन्नता होने पर जांच क बाद ही सुरक्षा प्रमाणित करने को कहा।
  •  मोड़ पर कई सारी कमियां पाई गई।
  •  ब्रीज पर अलाइनमेंट सही नहीं था। हुक,बोल्ट,क्लिप गायब थे व स्लीपरों में कट था।
  •  पूलों की पिचिंग में 35 किलों के पत्थर के बजाय छोटे पत्थर लगे मिले।
  •  कुछ जगहों पर लटकी हुई चट्टानों को असुरक्षित माना।
  •  कई जगहों पर ट्रैक पर किए गए जोड़ में गलतियां पाई गई।
  •  बरसात से मिट्टी पर कटाव देखा गया।
  •  एमएफपी और एसबीसी में पर्याप्त दुरी नहीं थी।
  •  जावर और पडला स्टेशन में प्लेटफार्म की ऊंचाई भी नियमानुसार नहीं थी।
  •  सभी पूलों पर गार्ड फ्लेयर को पुरे सेक्शन में बदलने की जरुरत।
  •  सुरंगों में बिजली आपूर्ति लोकल फीडर से थी।
  •  सुरंगों में मोबाइल नेटवर्क नहीं था।
  •  आरओबी के दोनों और रास्ते दिखाए गए थे,लेकिन मौके पर नहीं थे।
  •  आरओबी की दीवार 1.5 मीटर के मुकाबले 1.3 मीटर ही मिली।
  •  मल्टीसेल आरसीसी बॉक्स के बजाय छोटे और सिंगल आरसीसी बोक्स दिए गए।
  •  जावर स्टेशन पर एफओबी का काम अधूरा पाया गया। यहां पानी की आपूर्ति भी नहीं थी।
  •  घाट स्थानों पर नींव की गहराई नियमानुसार नहीं थी।
  •  जावर स्टेशन पर एफओबी का काम अधूरा है और रास्ता भी उपलब्ध नहीं है।
Categories
Festivals

Jagannath Rath Yatra in Udaipur

About the people of Mewar, it has been rightly said that they have saat vaar and nau tauhar that means that there are seven days in a week but nine festivals to celebrate. They are always so busy celebrating festivals that hardly does the din of one dies, preparations are afoot for celebrating the next one.

One such procession is the annual Jagannath Yatra that starts from the famous Jagdish Mandir. Related to the Yatra is a fascinating ritual. The idol of Bhagwan Jagannath, who is worshipped as a living being is bathed every day. However, on Jestha Shukla Poornima, he is bathed with water of 108 golden pitchers. He is also offered mango juice in big quantity. No wonder he gets sick. To keep him warm, he is shifted from his ‘Singhasan’ to a resting place in the same room. For the next fortnight, he is given ‘Kada’ by the priests and is looked after by sister Subhadra’s older brother Balbhadra and Sudharshan chakra. He is given only fruits to eat.

The devotees do not get his ‘darshan’. But they visit the temple regularly to find out how is he getting on. There is no ‘Puja archana’ with ringing of bells. When he gets well on Ashad Shukla Ekam, a big variety of food is offered to him. His mother Devki used to give him Dal & Bhaat (rice) and roti. He relished it. So his devotees bring these food items for him. Regular ‘pooja’ also starts on this day. The devotees waiting for a fortnight for darshan, the lord himself goes round the town to bless them.

According to Pandit Hukum Raj, the Mukhya Pujan of Jagdish Mandir, there is a long history of Jagannath Yatra. The tradition started about 365 years ago when the ‘Pran pratishtha’ of the Mandir was performed and the idol of the lord was taken only around the premises of the temple. When the state of Mewar was merged with greater Rajasthan, there were difficulties in the Yatra as earlier it took place in the presence of the erstwhile rulers. After the passing away of Maharana Bhupal Singh, efforts were made to revive it. Due to the efforts of Raghunand, the erstwhile ‘pujari’ of the temple, various sects of the Sanataris come forward together for the organization of the Yatri. The small beginning has now become a big event with the active participation of several communities. It was decided to take the procession around the city about twenty years ago. The old ‘rath’ (chariot) was taken down the stairs of the temple by Raghunandan which highly elated him and the idol mounted on a camel cart went round the various parts of the city.

Cleaning and beautification of the ‘rath’ started days in advance by a small team of specialists. The silver white chariot has wooden horses and this year, it was painted with color, oil paint. A couple of days before the yatra, after the ‘evening aarti’ and after sprinkling gangajal and goumutra and setting up Ganesh in Jagdish Chowk the chariot was brought there in parts.

This year for the lord’s ‘parikrama’ in the premises of the 300 year rath has been replaced by a new one and gifted by a devout couple of Udaipur. The ‘rath’ was taken out in a procession led by Goswami Vageesh Kumar of Dhwarkadheesh Mandir, Kankroli, Mahendra Singh Mewar and Vishwaraj Singh Mewar.

The ‘rath’ was mounted on a camel cart. Dhwarkadheesh Prabhu band was in attendance. Women dressed in saffron clothes, carrying pitchers on their head were part of the big procession. The colorful procession that started from Sheetlamata Mandir, Samore Bagh passed through Bhatiyani chohatta came to Jagdish mandir.

From Jagannath Dham located in Hiran Magri Sector 7 would start the Shahi Yatra of Jagannath Swami, Subhadara, Balbhadra and Sudharshan Chakra on the lines of the processing in Jagannath Puri, Odisha. It would start from the Mandir premises at 11 a.m and passing through Jodar Nursery, Savina chouraha, Phal-Subzi Mandir, Reti stand, Shiv Mandir, Macchla magra, Patel Circle, Kishan Pole, Rang Niwas and bhatiyani Chohatta join the main procession at Jagdish Chowk. There would be ‘aarti’ at different places including the Maha-aarti with 31,000 ‘dias’from 8:30 to 9:30 pm in Bapu Bazar, according to convenor Dr Pradeep Kumawat.

The preparation for the big event had started weeks in advance. Nimantran Patrika was prepared as the members of rathyatra samiti met the mahants of various sects. Political and social leaders and public in general to participate in the procession. The route of the yatra Ghantaghar, Bada Bazaar, mochiwada, Bhadbhuja Ghati, Bhopalwadi, Santoshi Mata mandir, teej ka chowk, Dhanmandi, Marshal chouraha, etc. has been decorated with flags. Several religious and social organizations would welcome the yatra at different places.

For the first time, a helicopter would shower 400 kg rose leaves at Jagdish chowk in 5 rounds. The yatra would be welcomed back at Jagdish mandir with aarti attended by thousands of devotees. Arrangement of mahaprasad for 8000 to 10,000 has also been made.


The eagerly awaited yatra not only brings about harmony among different sects but also provides an opportunity for worship that enhances the religious faith.

Categories
Social

जानिए PM मोदी ने क्यों सराहा उदयपुर की इस बावड़ी को ?

पीएम नरेंद्र मोदी के ‘मन की बात’ (MannKiBaat) से चर्चा में आई उदयपुर शहर की ऐतिहासिक धरोहर, “सुरतान बावड़ी”  जो 305 साल पुरानी है। रविवार को पीएम ने इस धरोहर को बचाने वाले युवाओं की इस पहल को सराहा है। पीएम ने उदयपुर के युवाओं के प्रयासों को सराहते हुये ट्वीट करके यह कहा की आज दुनियाभर में इस बदलाव की चर्चा हो रही है। 

 दरअसल उदयपुर शहर के बेदला गांव में बरसों पुरानी एक बावड़ी है, जिसका निर्माण बरसों पहले बेदला गांव के “राव सुल्तान सिंह” ने 1717 में  करवाया था। जिसके बाद इसे “सुल्तान बावड़ी व सुरतान बावड़ी” के नाम से जाना जाने लगा। पुराने समय में इस बावड़ी का पानी लोगो के घर सप्लाई होता था, तब तक इस बावड़ी की दशा सही थी। परन्तु धीरे-धीरे इस बावड़ी में लोगो ने कचरा फेंकना शुरू कर दिया जिससे ये बावड़ी वीरान हो गई और इस ऐतिहासिक बावड़ी की दुर्दशा ख़राब हो गई जिसे कोई देखता भी नहीं है। बावड़ी में जगह -जगह पेड़ पौधे उगे हुए हुए थे, पत्थर टूट रहे थे, जूते, प्लास्टिक, बैग,जैसे कूड़ा कचरा भरा था और बावड़ी का पानी भी पूरी तरह पीला पड़ चूका था। 

बरसों पुरानी पड़ी इस बावड़ी को शहर के कुछ जागरूक युवाओं ने इसकी कायाकल्प को पूरी तरह बदल दिया है। आर्किटेक्ट सुनील लढा करीब 9 माह पहले यहां घूमने आए और उनकी नजर इस बावड़ी पर पड़ी। सुनील लढा और अमित गौरव की टीम ने इस टूटी पड़ी बेजान वीरान बावड़ी को विलुप्त होने से बचाया है। आर्किटेक्ट होने के नाते सुनील लढा ने इस बावडी को एक आर्किटेक्ट के नजरिये से ही देखा और इसके पीछे की खूबसूरती को जान लिया और इसका कायाकल्प करने की ठान ली। इसके बाद सुनील ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट के जरिए इसे आम जनता में फैलाया और साफ़ सफाई में सहभागिता निभाने की अपील की। उनकी ये अपील रंग लाई और लोगो ने इस काम में उनकी मदद भी की। लोगो की सहभागिता की वजह से ये बावड़ी साफ़ हो गई और उसी दशा में आ गई जो आज से बरसों पहले थी।  

सुल्तान से सुरताल तक 

सुल्तान बावड़ी की सफाई के इस मिशन का नाम ‘सुल्तान से सुरताल तक’ दिया है। युवाओं के कड़े परिश्रम और मेहनत के साथ न सिर्फ बावड़ियों की कायाकल्प हुई बल्कि इसे, संगीत के सुर और ताल से भी जोड़ दिया गया है। ASAP अकादमिक फाउंडेशन के जनसमूह से जुड़े सुनील लढा ने ये भी बताया की बावड़ी की इस सफाई से पहले कागज़ पर इसका चित्र बनाया। फिर टीम के साथ इसकी जीर्णोद्धार की रूपरेखा तय की। श्रमदान करके इसे साफ़ तो कर लिया गया लेकिन उसके बाद युवाओं को जोड़ने के लिए यहाँ कभी म्यूजिक तो कभी पेंटिंग्स के इवेंट करने लगे। जल स्त्रोतों के प्रति, धर्म से जुड़ाव और बावड़ी को पवित्र रखने के लिए हरिद्वार से गंगा जल मंगवा कर ग्रामीणों के हाथ से ही इसमें प्रवाहित कराया गया। युवाओं को सुर और तान समेत अन्य एक्टिविटी से भी जोड़ा गया।

जागरूक लोगों का मकसद इसे जीवित करना था

ऐसे में आज उसकी स्थिति पहले की तुलना में काफी बेहतर नजर आती है। प्रधानमंत्री ने कहा कि इस सफल प्रयास की सबसे खास बात यह है कि इसकी चर्चा हर तरफ है, इसे विदेश से भी लोग देखने के लिए आने लगे हैं। मोदी जी ने ये भी कहा की आधुनिकता के इस दौर में हम धरोहरों और विरासतों को नहीं सहज पा रहे है। विलुप्त होती बावड़ियां इसका उदहारण है। देश में शायद ही ऐसा कोई गाँव या शहर होगा, जहां बावड़ियां न हो। आज इनकी स्थिति बदतर है। सरकारों को भी इन्हें सहेजने के प्रयासों में सफलता नहीं मिली। पीएम ने ये भी कहा की उदयपुर में बात सिर्फ सुरतान बावड़ी को साफ़ करने तक सिमित नहीं थी, जागरूक लोगों का मकसद इसे जीवित करना था।   

सुरतान बावड़ी पर तो एक शख्स की निगाह पड़ी जिस वजह से उसे उसकी वास्तविक हालत में लाया गया। पर न जाने शहर में ऐसी कितनी सारी ऐतिहासिक धरोहरे है, जिनकी दुर्दशा हो रही है जो जीर्ण-शीर्ण हालत में पड़ी है। जिस पर न तो आज दिन तक किसी की नज़र पड़ी और न ही इसके बारे में किसी को कुछ पता है और अगर नजर भी गई है तो किसी ने भी उस पर एक्शन नहीं लिया। उन युवाओं की तरह हम सब को भी हमारी ऐतिहासिक धरोहर के साथ-साथ शहर को स्वच्छ रखने लिए जागरूक होना ही होगा। उनके एक कदम ने आज उदयपुर का नाम पूरे भारत में रोशन किया है, तो शहर का एक-एक व्यक्ति अगर जागरूक होगा और ऐसे कदम उठाएगा तो हमारा शहर उदयपुर में स्वच्छता के मामले में नंबर वन बन सकता है। अगर जरुरत है तो हर इंसान को जागरूक होने की, आज तो सुरतान बावड़ी सामने आई है पता नहीं अब न जाने और भी कितनी सारी ऐसी ऐतिहासिक धरोहर है, जो सामने आ जाए।

Categories
Social

आखिर ये कुरीति थमने का नाम क्यों नहीं लेती ?

हिन्दू संस्कृति में एक व्यक्ति के जन्म से मृत्यु तक सोलह तरह के पर्व उत्सव होते है जिन्हें संस्कारों का नाम दिया जाता हैं। जिनमें विवाह एक महत्वपूर्ण संस्कार माना गया हैं, प्रत्येक दौर में विवाह को दो पवित्र भावनाओं के बंधन के रूप में स्वीकृति दी गई जो अगले सात जन्मों तक एक दूसरे का साथ निभाए। बदलते वक्त के साथ विवाह संस्कार में कई तरह की बुराइयां सम्मिलित हो गई और इन कुरीतियों के चलते विवाह व्यवस्था विकृति का शिकार हो गई। जिसका एक स्वरूप हम बाल विवाह अथवा अनमेल विवाह के रूप में देखते है। यह कुरीति भारतीय समाज के लिए अभिशाप साबित हो रहा हैं।

बाल विवाह की कुप्रथा-
ऐसा नहीं की यह कुप्रथा का प्रचलन भारतीय सामाजिक व्यवस्था में पहले से है, जब अंग्रेजी शासको ने भारत को बंधी बनाया था तब विदेशी शासक बेटियों को भोग की वस्तुए समझकर उन्हें ले जाते थे ऐसे में गरीब निम्न वर्गीय परिवार ने बेटियों का बचपन में विवाह करवाना शुरू कर दिया था और ऐसे दौर में यह कुप्रथा का प्रचलन शुरू हो गया। मध्यकाल में एक दौर ऐसा भी आया जब बेटी के जन्म को अशुभ माना जाने लगा। शिक्षा के अभाव तथा स्वतंत्रता न होने के कारण लड़कियाँ इसका विरोध भी नहीं कर पाती थी। छोटी उम्र में विवाह हो जाने के कारण दहेज भी कम देना पड़ता था। इस कारण से मध्यम तथा निम्न वर्गीय परिवारों में बाल विवाह की प्रथा ने अपनी जड़े गहरी जमा ली थोड़ी सी सहूलियत के लिए शुरू हुई ये प्रथाएं आज बेटी के जीवन का अभिशाप बन गई हैं। इस गलत परम्परा को निरंतर आगे बढ़ाया जा रहा हैं। बेटी को कम उम्र में ही ब्याह दिया जाता है जिससे कई तरह कि समस्याएं उत्पन्न होने लगती हैं। कम उम्र में विवाह से बालिका के शारीरिक मानसिक स्वास्थ्य में बाधक तो हैं ही साथ ही जल्दी संतानोत्पत्ति होने से जनसंख्या में भी असीमित वृद्धि हो रही हैं। इन सब कारणों से बाल विवाह एक सभ्य समाज के लिए अभिशाप ही हैं।

बाल विवाह को रोकने के लिए सरकार कितने कदम उठा रही है, कितने जागरूकता अभियान और योजनाएं आदि चला रही है लेकिन यह कुरीति आखिर थमने का नाम कहा लेती है। पारिवार के दबाव में भी कुछ लड़कियों के बाल विवाह हो जाते है, आधे लोग अपनी गरीबी की वजह से बाल विवाह करवा देते है और कुछ लोग दहेज़ कम देना पड़े इस वजह से।

इसी तरह अपने प्रदेश उदयपुर में भी यह प्रथा अभी तक बरकरार है, प्रदेश में हर चौथी महिला का बाल विवाह हो जाता है। यह खुलासा राष्ट्रीय स्वास्थय सर्वेक्षण (एनएचएफएस -5) की रिपोर्ट साल 2019-2021 में हुआ। रिपोर्ट के मुताबिक राजस्थान का देश में बाल विवाह का 7वां नंबर है। कुल 25.4 प्रतिशत महिलाओं के बाल विवाह हुए हैं। प्रदेश में 2018 से 2021 के दौरान कुल 1216 बाल विवाह हुए है सबसे ज्यादा मामला अलवर, जोधपुर और उदयपुर में आए है।

उदयपुर में 64 बाल विवाह हो चुके है। ये मामला शहरी क्षेत्रों में 15.1 प्रतिशत और ग्रामीण इलाके में 28.3 प्रतिशत तक रहा। इस से पहले की रिपोर्ट साल 2015-2016 में महिला बाल विवाह में यह मामला 35.4% रहा। हाल ही जारी रिपोर्ट में संभाग के चित्तौडगढ़ में 42.6 % सबसे ज्यादा बाल विवाह के मामले सामने आए है, भीलवाड़ा में 41.8%, झालावर में 37.8% ,उदयपुर में 18.2%, गंगानगर में 13.6%, कोटा में 13.2%, और पाली में 11.8% रहा।

बाल विवाह में आई गिरावट –
सरकार ने बाल विवाह के खिलाफ कई अभियान बनाए है, बाल संरक्षण की अध्यक्ष संगीत बेनीवाल बताती है कि बाल विवाह के मामले रोकने के लिए नए -नए कार्यक्रम पर काम हो रहा है। ” चुप्पी तोड़ो, हमसे बोलो”, बाल विवाह अपराध है और बाल विवाह को न जैसे कार्यक्रम के जरिए एनजीओ स्वयंसेवी संगठन के माध्यम से इसे रोकने में लगे हुए है ग्रामीण क्षेत्रो में लगातार जागरूकता अभियान चलाए जा रहे है इस से बाल विवाह के मामले में गिरावट आई है, बच्चे अब खुद ही सतर्कता रखने लगे है और ऐसी स्थिति में वे स्वयं ही थाने चले जाते है और पुलिस प्रशासन को सुचना देते है या कॉल कर देते है।

अब बच्चे भी हो रहे है जागरूक –
पिछले साल नवंबर में एक बच्ची का बाल विवाह होना था उसने हिम्मत करके इसकी सुचना दी थी तब अध्यक्ष संगीता बेनीवाल ने लड़की के परिजनों को समझाया भी था पर उसके परिजन के नहीं मानने पर बच्ची को बालिका गृह में रखा गया था।

बाल विवाह के मामलों में कमी –
देश में लड़कियों की शादी की सही उम्र 18 वर्ष है और लड़के की 21वर्ष। पिछले साल के मुताबिक अभी की रिपोर्ट दोनों का अगर आंकलन किया जाए तो पिछली रिपोर्ट से इस बार 10% कमी आई है। पिछली सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक़ महिला बाल विवाह 35.4 % रहा और अब यह आंकड़ा 25.4% फीसदी रहा।

कम उम्र में बच्चों की शादी कर देने से उनके स्वास्थ्य, मानसिक विकास और खुशहाल जीवन पर असर पड़ता है। यह उम्र उनके खेलने कूदने की होती है, इस तरह उनकी जल्दी शादी करवा कर शादी के इस बंधनो में बाँध देना कहा तक सही है ? पढ़ने लिखने की उम्र में उन पर घर परिवार के काम का बोझ डाल देना कहां तक सही है ? सपनो के पंख को खुलने से पहले ही उन्हें इस प्रकार तोड़ देना कहा तक उचित है ? क्या उनसे इस प्रकार उनका बचपन छीन लेना कहा तक सही है ?

कितने ग्रामीण इलाको में ऐसी लडकियां है जो होशियार है, जीवन में बहुत कुछ बड़ा हासिल कर सकती है पर परिवार की नासमझी की वजह से और ग्रामीण इलाका जहां लोग इतने शिक्षित नहीं होते है ऐसे में उनके सपनो को उनके अंदर तक ही सीमित रख दिया जाता है और उनकी प्रतिभा को बहार दिखाने पर उन्हे गलत साबित कर दिया जाता है। किताबे थमाने की उम्र में वरमाला थमा दी जाती है। बस्तो के बोझ को उठाने की जगह घर परिवार की जिम्मेदारियों का बोझ उठाने को दे दिया जाता है। अशिक्षित समाज में लड़कियों को पढ़ाना आज भी एक प्रश्न हैं।

बाल विवाह की समस्या को रोकने के उपाय-
समय समय पर समाज सुधारकों ने इस तरह की कुप्रथाओं को मिटाने के प्रयास किये हैं। हमारी संसद ने भी बाल विवाह निषेध के लिए कठोर कानून बनाए हैं और लड़के तथा लड़की के विवाह की न्यूनतम आयु निर्धारित की हैं । विवाह की न्यूनतम आयु से पूर्व होने वाले विवाह को बाल विवाह माना जाता है तथा यह गैर कानूनी अपराध की श्रेणी में गिना जाता हैं। बाल विवाह की शिकायत प्राप्त होने पर दोनों पक्षकारों को कड़ी सजा तथा जुर्माने का प्रावधान होने के बावजूद हमारे देश में बाल विवाह आज भी हो रहे हैं।

ग्रामीण इलाको में तो नासमझी, अशिक्षित, शिक्षा का अभाव, कुप्रथाए जो चली आ रही है इस वजह से मान सकते है की बाल विवाह हो रहे है पर यह शहरी इलाको में भी ऐसे हाल क्योँ है। बाल विवाह हमारे आधुनिक समाज में गहरे तक व्याप्त ऐसी कुप्रथा है जिसका दुष्परिणाम लड़के तथा लड़की दोनों को भुगतना पड़ता हैं। इस प्रथा के चलते समाज में कई बुराइयाँ उत्पन्न हो चुकी हैं। आज के समय में बाल विवाह समस्या का निवारण बेहद जरुरी हो गया हैं इसके बिना बेटियों को इस अभिशाप से मुक्त नहीं किया जा सकता हैं।