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अंधविश्वास का बुरा प्रभाव, दादी ने डाली पोते की जान खतरे में

अन्धविश्वास, जिसके नाम में ही उसका अर्थ है, अँधा, अज्ञानी, यानि किसी चीज को जाने पहचाने, बिना सोचे समझे, विचार किये बिना, उस पर आँखे बंद करके विश्वास कर लेना। अँधा मतलब वह व्यक्ति जिसे कुछ नहीं दिखाई देता उसी प्रकार अन्धविश्वास में डूबा हुआ व्यक्ति भी किसी भी बात पर बिना प्रतिक्रिया दिए हुए सोचे समझे बिना उस पर विश्वास कर लेता है। यह परंपरा अब बरसो से चली आ रही है और लोग इसके साथ आज दिन तक चल ही रहे है। कुछ मान्यताए ऐसी होती है न जो परिवार के बड़े बुजुर्ग करते आ रहे होते है और हम बचपन से उन्हें देखते आ रहे होते है तो हम उसी प्रकार उस परिस्थिति के अनुसार चल देते है और आज दिन तक चलते आ रहे है। जैसे की कही जाने से पहले अगर किसी ने छींक दिया या अगर बिल्ली ने रास्ता काट दिया तो आज भी हमारे दिमाग में एक पल के लिए यह आ ही जाता है की कही अब हमारा काम बिगड़ न जाए। अब तो हम पढ़े लिखे शिक्षित है पर आज भी हमारी मानसिकता कही न कही ऐसी है की अगर हमारे साथ ऐसी कुछ घटना होती है तो यही ख्याल दिमाग में आता है की कही मेरा काम बिगड़ न जाए।

अंधविश्वास अधिकतर कमजोर व्यक्तित्व, कमजोर मनोविज्ञान एवं कमजोर मानसिकता के लोगों में देखने को मिलता है। जीवन में असफल रहे लोग अधिकतर अंधविश्वास में विश्वास रखने लगते हैं एवं ऐसा मानते हैं कि इन अंधविश्वासों को मानने एवं इन पर चलने से ही शायद वह सफल हो जाएं। इसके साथ ही और न जाने कैसे कैसे अन्धविश्वास और कुप्रथाए है जो ग्रामीण इलाको में चलती आ रही है, जिसमें लोग भोपो और ढोंगी बाबाओ पर आँख मूंद के भरोसा कर लेते है। राजस्थान के कुछ ग्रामीण इलाको में आज भी ऐसे गाँव है, जहां अंधविश्वास ने अपना कोहराम बिछा रखा है अंधविश्वासो में ऐसे चकनाचूर हो गए है की किसी की तकलीफ का एहसास तक नहीं होता और नन्हे मुन्ने नवजात मासूमो तक को इस अन्धविश्वास ने नहीं छोड़ा।

कुछ ग्रामीण इलाको में अन्धविश्वास में पड़े लोगो ने चिमटे से दाग देना यह बिमारी का इलाज माना हैं, अब सवाल यह उठता है की किसी को चिमटे से दाग देकर किसी बीमारी को कैसे ठीक किया जा सकता है ? किसी वैज्ञानिक ने तो आज दिन तक इसका कोई वैज्ञानिक परिणाम नहीं बताया। 21वी सदी के राजस्थान की ऐसे कल्पना किसी ने की भी नहीं होगी। चिकित्सा व्यवस्थाओ को चाक चौबंद करने के दावों के बीच नन्हे मासूम बच्चो को अभी भी डाम लगा कर ठीक करने की ऐसी खबरें रूंह कँपा देती है।

उदयपुर स्थित एमबी हॉस्पिटल में आए दिन ऐसे मामले सामने आ रहे है, डाम लगाने से बीमारी ठीक हो जाने का अन्धविश्वास मासूमो की जान खतरे में डाल रहा है। भीलवाडा में भी एक ऐसी रूह कंपा देने वाली खबर सामने आई है जिसमे अपने 8 माह के पोते को सांस लेने में तकलीफ और सर्दी जुकाम सही नहीं होने पर दादी ने उसे चार जगह सात डाम लगा दिए। एक छोटे से नाजुक त्वचा वाले मासूम को चिमटे से दाग देना कहाँ तक सही है, ये और बीमारी को सही करेगा या हालत खराब। डाम लगाना, चिमटा दागना से बीमारी ठीक हो जाना ऐसा अंधविश्वास बच्चो की जान खतरे में डाल रहा है। आए दिन अस्पतालों में ऐसे मामले सामने आ रहे है ,जिसमे कई बच्चो की जान चली जाती है।

अंधविश्वास से बचने के लिए आवश्यकता है अपने मन, मस्तिष्क, सोच एवं मनोविज्ञान को मजबूत करने की। अक्सर लोग, अंधविश्वासी, सुनी-सुनाई बातों के आधार पर होते हैं। कभी बिल्ली के रास्ता काटने पर उस रास्ते से बाहर जाकर देखिए, आप पर किसी तरह का कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ेगा। इसी प्रकार अन्य अंधविश्वासों पर भी प्रयोग करके देखिए, आप अपने आप इन अंधविश्वासों से बाहर निकल आएंगे। अगर आपके साथ इन अंधविश्वासों पर प्रयोग करते समय कोई अनहोनी होती है, तो यह महज एक संयोग ही होगा। इसमें कोई सच्चाई नहीं होगी।

 

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