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उदयपुर में पहलवानों की दंगल | उस्ताद श्री लक्ष्मण सिंह का अखाड़ा

हरियाणा के महावीर सिंह फोगाट को तो सब जानते होंगे? आखिर जानेंगे भी क्यों नहीं कुश्ती में उन्होंने देश भर में अपना नाम जो रोशन किया था । उदयपुर में भी कुछ इसी तरह की हस्ती रही थी । महावीर सिंह जी ने तो केवल अपनी बेटियों को कुश्ती के लिए प्रोत्साहित किया था । लेकिन इन्होंने पुरे शहर के लोगों का कुश्ती में प्रवेश कराया ।  इस हस्ती का नाम है उस्ताद श्री लक्ष्मण सिंह जी ।

दंगल फिल्म के बाद सबसे पहला सवाल यही आता है की क्या वाकई में ये सब असल जिंदगी में होता होगा? क्या पहलवानों की जिंदगी वैसी ही होती है जैसी फिल्मो में दिखायी गयी थी? वैसे इन बातों के अलावा और भी काफी सवाल मेरे मन में आये थे और उनमे से सबसे पहला ये था की आखिर उदयपुर में कुश्ती या wrestling की क्या स्थिति है? क्या यहाँ भी लड़के और लड़कियों को कुश्ती करने से रोका जाता है?

कुछ ऐसे ही सवाल हम सभी के मन में होते है । यही सवाल मुझे खींच कर ले गए उदयपुर के सबसे मशहूर अखाड़े पर जिसका नाम है ‘उस्ताद श्री लक्ष्मण सिंह का अखाड़ा

अखाड़े पर मेरी मुलाक़ात उस्ताद अर्जुन राजौला जी से हुई । उस्ताद की उम्र 64 साल की है और वह बचपन से ही कुश्ती करते हुए बड़े हुए है । इस मुलाक़ात में कई सवाल जवाब किये मैंने उस्ताद से अखाड़े और कुश्ती के बारे में और उन्होंने हर एक सवाल का काफी सटीक और बखूबी जवाब दिया । आइये पढ़ते है हमारी बातचीत के बारे में ।

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इस अखाड़े की स्थापना कब हुई?

“अखाड़े की स्थापना सन 1966 से भी पहले हुई थी । यह अखाड़ा पहले हाथीपोल में हुआ करता था उसके बाद अब स्वरुप सागर पुलिया के पास है । उस्ताद जी ने कहा की उदयपुर में 60 के दशक में करीब 27 अखाड़े हुआ करते थे । धीरे धीरे वे सब बंद होते गए और अब यह संख्या घट कर सिर्फ 5 रह गई है ।”

 

यहाँ पर क्या क्या कार्यकलाप होते है?

यहाँ की प्रमुख गतिविधि कुश्ती है और उसके अलावा सहस्त्रकला और प्राणायाम होते है ।

 

आपकी कितनी पीड़ियाँ कुश्ती में रह चुकी है?

“पूरा रजौरा खानदान कुश्ती के लिए ही जाना जाता है । ऐसा समझ लीजिये की कुश्ती का पर्यायवाची ही रजौरा है । राजौरा खानदान की 5-6 पीड़ियाँ कुश्ती में रही । अभी मेरे बेटे कुश्ती के कोच है और अब मेरे पोते भी कुश्ती के अभ्यास में ही लगे हुए है ।”

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इस अखाड़े की शुरुआत किसने और क्यों की? क्या रही इस अखाड़े के पीछे की कहानी?

इस अखाड़े की शुरुआत उस्ताद लक्ष्मण सिंह जी ने की थी । असल में उस ज़माने में कुश्ती सिर्फ महलों तक सीमित थी । सिर्फ राजसी लोगों को कुश्ती करने की इजाज़त दी जाती थी । इसके बाद हर समाज के लिए अलग अलग अखाड़े बने । हिन्दू के लिए अलग, मुस्लिम के लिए अलग और छुआछूत की परेशानी के कारण कई समाज के लोगो को अखाड़े में प्रवेश तक नहीं करने दिया जाता था । उस्ताद लक्ष्मण सिंह जी ने फिर इस अखाड़े का निर्माण किया जिसमे पहली बार हर जाति के लोगो को आने की इजाज़त थी । जिन लोगों को पहले किसी भी अखाड़े में नहीं आने दिया जाता था उन्हें भी इस अखाड़े ने स्वीकार किया । उस्ताद लक्ष्मण सिंह जी अपने समय में इतने शक्तिशाली और सज्जन आदमी थे की अखाड़े के पास में मौजूद पुल का नाम उन्ही के नाम पर रखा गया । इस तरह उस्ताद लक्ष्मण सिंह जी भी उदयपुर के महावीर सिंह फोगाट कहे जा सकते है ।

 

क्या उदयपुर में भी बहुत लोग कुश्ती में दिलचस्पी रखते है?

उदयपुर के लोग कुश्ती में ज्यादा दिलचस्पी नहीं रखते है । इसके पीछे कई कारण है । सबसे पहला तो क्रिकेट जैसे खेलों के चलन के बाद सभी उसी तरह के खेल खेलना चाहते है । बचपन से ही बच्चो के हाथो में बल्ला और गेंद थमा दिया जाता है जिससे आगे चलकर भी वे ऐसे ही खेलों में दिलचस्पी रखते है । ऐसे में कुश्ती को बिलकुल नज़रंदाज़ कर दिया जाता है ।

दूसरा कारण यह भी है कुश्ती जैसे खेल को कई मिथकों का सामना करना पड़ता है । लोग कहते है की कुश्ती करने से इंसान बेवकूफ़ हो जाता है । जबकि असल में कुश्ती एक ऐसा खेल है जिसमे बल के साथ साथ दिमाग का भी इस्तेमाल उतना ही ज़रूरी है जिससे वह एक अच्छी राजनीति बनाकर उस मैच को जीत सके । लोगों का ये भी मानना है की इससे शरीर को कई तरह के नुक्सान होते है । ऐसा नहीं है । एक पहलवान को उच्च आहार लेना होता है जिसमे घी, सूखे मावे जैसी चीज़े होती है । ऐसे में उनका शरीर और ज्यादा अच्छा और मजबूत हो जाता है ।

 

शहर के सभी युवा सदस्यों को आप क्या सन्देश देना चाहेंगे?

मैं शहर को सभी युवा और उनके माता पिता को भी यह कहना चाहूँगा की कुश्ती कोई बुरा खेल नहीं है । अगर आप स्वस्थ रहना चाहते है, अच्छे आचरण पाना चाहते है, अपने धर्म का पालन करना चाहते है तो कुश्ती ज़रूर कीजिये । कुश्ती आप में ब्रह्मचार्य की भावना पैदा करता है । इसमें आपको काफी उच्च आहार दिया जाता है जो की आपको बुरी आदतें जैसे धुम्रपान, शराब जैसी चीजों से दूर रखता है । उस्ताद श्री लक्ष्मण सिंह के अखाड़े में प्रवेश और अभ्यास करने के लिए किसी तरह का मूल्य नहीं लगता । लगता है तो सिर्फ कड़ी मेहनत और दृढ आत्मविश्वास ।

 

एक और सवाल पूछा मैंने उस्ताद अर्जुन से की जैसा की भारत में कई जगह होता है और हम फिल्मों में भी देखते ही हैं की लडकियों को कुश्ती नहीं करने दी जाती । उनके माता पिता उन्हें इस तरह के खेल नहीं खेलने देते तो इस पर आप क्या कहना चाहते है ?

उनके इस दिलचस्प जवाब को मैंने कैमरे में कैद कर दिया । अगर आप भी जानना चाहते है तो नीचे दिए हुए विडियो को देखिये ।

लक्ष्मण अखाड़े में जब मैं पहुची तब मुझे एहसास हुआ की वहां एक सिटी बेस्ड टूर्नामेंट चल रहा है । शायद ये मेरी अच्छी किस्मत रही होगी की मुझे इस तरह का मुकाबला देखने को मिला । वहां मैंने बच्चे, जवान, लड़के, लड़कियों सभी को कुश्ती करते हुए देखा । मुझे पता चला की इस मुकाबले में जीतने वाले लोग जिला स्तर पर कुश्ती के लिए अजमेर जायेंगे।

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कुछ ऐसे विचार रखने वाले पहलवानों को मैं दिल से सलाम करती हूँ । एक पहलवान की ज़िन्दगी बहुत ही मेहनत, दृढनिश्चय और आत्मबल से भरी होती है । कुश्ती कतई एक आसान खेल नहीं । इसमें भारी बल के साथ तेज़ दिमाग की आवश्यकता होती है ।

आप क्या सोचते है इस बारे में? हमसे शेयर करे नीचे दिए हुए कमेंट सेक्शन में । अगर आपके पास कोई फीडबैक है जो आप हम तक पहुचाना चाहते है तो मुझे मेल करे juhee@udaipurblog.com पर ।

                             Pictures and video by: Juhee Mehta

By Juhee Mehta

Literally, see characters of books in every person she meets. Apart from eating, she is found adventuring and talking to herself. Believes in magic and escape reality through words. If she possibly knows you, you might find yourself in her poems.

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