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एक सुखद एहसास दे गया ULF, वो एहसास जो अगले साल इसे और बड़ा बनाने का हौसला देगा

शुक्रिया उदयपुर 🙂

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शुक्रिया उन सभी का जिन्होंने हमारी इस ज़िद को अपनी ज़िद माना और इसे साकार कर दिखाया। उदयपुर ब्लॉग की ओर से हम उन सभी लोगो का आभार व्यक्त करते है जिन्होंने ULF को सफल बनाने के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष दोनों रूप में सहयोग किया। हम यहाँ के प्रशासन का भी शुक्रिया अदा करते है जिन्होंने ULF में आए लोगो की सुरक्षा में कोई कसर नहीं छोड़ी हम साथ ही साथ हमारे सहयोगियों का भी आभार व्यक्त करते है जिन्होंने इतने बड़े फेस्टिवल को सफल बनाने के लिए हमारी हर पल मदद की। ये सब तभी संभव हो पाता है जब इतना जन-समर्थन आप लोगो के साथ खड़ा हो, जैसा की हमारे साथ था। ये सब व्यक्त करना मुश्किल लग रहा है क्यूंकि मन में जो विचार उठ रहे है उन्हें शब्द नहीं मिल पा रहे है। शब्द कम पड़ गए। जो उम्मीदें हमने शुरू में रखी वो सभी पूरी तरह से कामयाब रही।

हमें पूरी उम्मीद है आपने आर्टिस्ट परफॉरमेंस शुरू होने से ग्राउंड में पहले से चल रही एक्टिविटीज़ का भरपूर आनंद लिया होगा। फेस्टिवल को मैनेज करने के चक्कर में हम आप लोगो के साथ मज़े तो नहीं कर पाए पर आप लोगो को एन्जॉय करते देखना एक सुखद अनुभव था। ‘पापोन’ तो खैर इस फेस्टिवल की जान थे। ‘स्वराग’ को आपने भरपूर सराहा ही।

7000 से भी ज्यादा की अटेंडेंस एक सपना जैसा था। 3-टियर सिटीज में ये सब मुमकिन करना थोड़ा मुश्किल ज़रूर रहता है पर उदयपुर तुमने कर दिखाया। अब जब हम फोटोज़ में मुस्कराते चेहरे और झूमते युवाओं को देख रहे है तो अपनी ख़ुशी आप लोगो के साथ साझा करने से खुद को रोक नहीं पा रहे है। आपके चेहरों की मुस्कान, आप लोगो को इस कदर बेफिक्र होकर झूमते देखना, दो अनजान लोगो को एक स्टाल पर साथ बात करते हुए खाते हुए देखना ही तो हमारी सफलता है, यही तो हमारा हौसला है, यही तो हमें ताकत देगा कि अगले साल इसे और बड़े स्तर पर ले जाए चाहे कुछ भी हो जाए।

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इस 7000 के आकडे को 10,000 करना या उससे भी ज्यादा। ये सब ख्वाब है जो देखने चाहिए जैसे कि ये देखा था और पुरे करने में जुट गए। वैसे ही और ख्वाब बुनेंगे उन्हें पूरा करने में लग जाएँगे। ये सब भी आप ही की वजह से होगा। अंत में विदा लेने से पहले हम आप सभी लोगो का एक बार फिर से तह-ए-दिल से शुक्रिया अदा करते है।

“शुक्रिया तेरा तिरे आने से रौनक़ तो बढ़ी

वर्ना ये महफ़िल-ए-जज़्बात अधूरी रहती”

By Shubham Ameta

Theatre Practitioner
Documentary Writer
Blogger

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